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भारत के राष्ट्रपति ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ के ‘अखिल भारतीय विधिक जागरूकता और पहुँच अभियान' के उदघाटन कार्यक्रम में शामिल हुए

राष्ट्रपति भवन : 02.10.2021

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अपने समय का कुछ निश्चित हिस्सा कमजोर वर्गों के लोगों को नि:शुल्क सेवाएं प्रदान करने के लिए निर्धारित करना चाहिए। वे आज (2 अक्टूबर, 2021) विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित समारोह में ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ के ‘अखिल भारतीय विधिक जागरूकता और पहुँच अभियान’ के शुभारंभ के अवसर पर संबोधन दे रहे थे।

गांधी जयंती के अवसर पर इस जागरूकता अभियान का शुभारम्भ करने पर, ‘नालसा’ की सराहना करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि महात्मा गांधी, वंचितों को न्याय प्राप्त कराने में सहायता देने वाली सेवाओं सहित हर प्रकार की ‘मानव-सेवा’ के प्रतीक हैं। 125 वर्ष से भी अधिक समय पूर्व, गांधीजी ने कुछ ऐसे उदाहरण पेश किए थे जो आज भी पूरे विधिक जगत के लिए प्रासंगिक हैं। उन्होंने गांधीजी को उद्धृत करते हुए कहा कि "सर्वाधिक निर्धन व्यक्ति को सर्वोत्तम प्रतिभाशाली कानूनी सलाहकार की सेवा उचित दरों पर उपलब्ध होनी चाहिए।” राष्ट्रपति ने कहा कि कानूनी बिरादरी, विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के नामित वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा बापू की इस सलाह का पालन किया जाना चाहिए। ऐसे अधिवक्ताओं को अपने समय का एक निश्चित भाग कमजोर वर्गों के लोगों को नि:शुल्क सेवाएं प्रदान करने के लिए निर्धारित करना चाहिए।

राष्ट्रपति ने उपेक्षित और वंचित वर्गों हेतु निष्पक्ष और सार्थक न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक समावेशी विधिक प्रणाली को बढ़ावा देने के ‘विज़न’ दृष्टिकोण के लिए नालसा की सराहना की। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि नालसा द्वारा न्याय के लिए एकसमान और निर्बाध पहुंच उपलब्ध कराने के हमारे संवैधानिक उद्देश्य की दिशा में काम किया जा रहा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र जैसे मध्यस्थता, सुलह और लोक अदालतें हमें शांति और न्याय के हमारे प्राचीन जीवन-मूल्यों की याद दिलाती हैं। आधुनिक भारत में भी, अपनी स्वतंत्रता के बाद से, हम न्यायिक अभिजात-तंत्र के युग से न्यायिक लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ने लगे। 25 वर्ष पूर्व इस व्यवस्था के आरम्भ से ही, नालसा इस यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान, लोक अदालतों द्वारा 1,11,00000 से अधिक लंबित और वाद-पूर्व मामलों का निपटारा किया गया है। उन्होंने कहा कि लोक अदालतों द्वारा इस तरह के निस्तारण से न्यायिक व्यवस्था पर बोझ कम होता है। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एन.वी. रमना और न्यायमूर्ति यू.यू. ललित को लोक अदालत प्रणाली में नई ऊर्जा का संचार करने और इसके माध्यम से हमारे नागरिकों को त्वरित न्याय दिलाने में मदद करने के लिए बधाई दी।

राष्ट्रपति ने कहा कि विधिक सेवा संस्थाओं की संरचना इस प्रकार की है कि इनसे हमारी न्यायिक रूपरेखा को समर्थन मिलता है और इससे हमारा न्यायिक ढांचा राष्ट्रीय, राज्य, जिला और उप-मंडल स्तरों पर मजबूत होता है। कमजोर वर्ग के लोगों के बड़े समुदाय तक इस सेवा की पहुँच के लिए यह समर्थन और शक्ति महत्वपूर्ण है। उन्होंने विधिक सेवा प्राधिकरणों से नागरिकों, विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के बीच उनके अधिकारों और हकदारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए विशेष प्रयास करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि जागरूकता की कमी से राज्य द्वारा बनाई गई कल्याणकारी नीतियों के कार्यान्वयन में बाधा आती है, क्योंकि वास्तविक लाभार्थी अपनी हकदारी से अनभिज्ञ रहते हैं।

इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले विधि महाविद्यालयों के विद्यार्थियों का उल्लेख करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे विद्यार्थियों के युवा कंधों पर भविष्य के भारत को आकार देने की जिम्मेदारी है। विधि महाविद्यालयों को विधिक सेवाएं प्रदान करने के लिए गांव गोद लेने चाहिए। गरीब और ग्रामीण आबादी के लिए कानूनी सेवाओं से संबंधित परियोजना रिपोर्ट, विधि-विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम का हिस्सा होनी चाहिए। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि कानून के विद्यार्थियों की इस युवा पीढ़ी से ऐसे भारत के निर्माण में योगदान प्राप्त होगा जो सामाजिक-आर्थिक विकास मानकों के संदर्भ में वैश्विक समुदाय के लिए आदर्श होगा।