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राष्ट्रपति ने कहा कि जब महामारी ने पूरी दुनिया में मानव जीवन और अर्थव्यवस्थाओं को तबाह कर दिया है, तब बुद्ध का संदेश ज्ञान के ज्योति-पुंज की तरह राह दिखा रहा है

राष्ट्रपति भवन : 04.07.2020

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने कहा कि आज, जब महामारी ने पूरी दुनिया में मानव जीवन और अर्थव्यवस्थाओं को तबाह कर दिया है, तब बुद्ध का संदेश ज्योति-पुंज की तरह राह दिखा रहा है। भगवान बुद्धने लोगों से कहा था कि आनंद प्राप्त करने के लिए उन्हें तृष्णा, घृणा, हिंसा, ईर्ष्या और अन्य अनेक दुर्गुणों का त्याग करना होगा। लोलुपता से ग्रस्त, पश्चाताप-रहित मानव-जाति हिंसा और प्रकृति के विनाश की उसी पुरानी राह पर चल रही है, जो बुद्ध के संदेश के सर्वथा विपरीत है। हम सभी को यह एहसास है कि कोरोनावायरस का प्रकोप कम होते ही हमें, अपने सम्मुख विद्यमान जलवायु परिवर्तन की अति गंभीर चुनौती का सामना करना है।

राष्ट्रपति आज (4 जुलाई, 2020) राष्ट्रपति भवन में ‘धर्म चक्र दिवस’ के अवसर पर ‘इंटरनेशनल बुद्धिस्टकॉन्फेडरेशन’ द्वारा आयोजित ‘वर्चुअल कार्यक्रम’ में संबोधन कर रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि धम्म का उद्भव-स्थल होने पर भारत को गर्व है। भारत में, हम बौद्ध धर्म को परम सत्य की नवीन अभिव्यक्ति के रूप में देखते रहे हैं। बोधि प्राप्त होने तथा उसके बाद के चार दशकों से भी लंबी अवधि के दौरान बुद्ध ने जो उपदेश दिए, वे बौद्धिक उदारता और आध्यात्मिक विविधता की भारतीय परंपरा के अनुरूप थे। आधुनिक युग में, भारत की दो असाधारण महान विभूतियों - महात्मा गांधी और बाबासाहब आंबेडकर - ने बुद्ध के उपदेशों से प्रेरणा प्राप्त करके राष्ट्र की नियति को स्वरूप प्रदान किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि उनके पद-चिह्नों पर चलते हुए, हमें गौतम बुद्ध के आह्वान पर ध्यान देने और इस श्रेष्ठ मार्ग का अनुसरण करने के आग्रह को स्वीकार करना चाहिए। अल्पकालीन और दीर्घकालीन, दोनों ही दृष्टियों से यह संसार दुखों से भरा हुआ लगता है। तीव्र अवसाद से पीड़ित होकर, जीवन की क्रूरताओं से मुक्ति पाने के लिए, बुद्ध की शरण में आए राजाओं और संपन्न लोगों की अनेक कहानियां उपलब्ध हैं। पहले से चली आ रही मान्यताओं को बुद्ध के जीवन से चुनौती मिली क्योंकि वे यह मानते थे कि इस संसार की अपूर्णताओं के बीच रहते हुए भी दुखों से मुक्ति प्राप्त करना संभव है।