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भारत के राष्ट्रपति ने फिक्की महिला संगठन के 34वें वार्षिक सत्र को संबोधित किया; उन्होंने कहा कि ईमानदार नागरिक ही बैंक का कर्ज न चुकाने वालों का बोझ सहन करते हैं; उन्होंने ‘मुद्रा’ ऋणधारकों के अदायगी रिकॉर्ड की सराहना की

राष्ट्रपति भवन : 05.04.2018

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (05 अप्रैल, 2018) नई दिल्ली में फिक्की महिला संगठन के 34वें वार्षिक सत्र में भाग लिया और उसे संबोधित किया।

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश में आधी संख्या महिलाओं की है। वे कार्य-स्थल पर और घर में बहुत से अलग-अलग तरीकों से हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान देती हैं। परंतु जब कारोबार या वाणिज्य की बात आती है तो यह खेदजनक है कि महिलाओं को उनका यथोचित प्राप्य नहीं दिया है। हमें ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि हमारी बेटियां और बहिनें अधिक से अधिक संख्या में कार्यबल में शामिल हों। हमें कामकाजी महिलाओं की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए घर में,समाज में और कार्यस्थल पर समुचित, उत्साहवर्धक और सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने के कड़े प्रयास करने होंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि यदि और अधिक महिलाएं कार्यबल का हिस्सा बन जाएं तो परिवार की आय और हमारा सकल घरेलू उत्पाद बढ़ जाएगा। हम और समृद्ध राष्ट्र बन जाएंगे। इससे भी बढ़कर हम, अधिक समतापूर्ण समाज बन जाएंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमें जमीनी स्तर पर अपनी बेटियों व बहनों तक उद्यमिता के जादू को ले जाना चाहिए और स्टार्ट-अप में मदद करनी चाहिए। यह सही है कि इसमें सरकार की भूमिका है परंतु सिविल समाज और कारोबार तथा फिक्की महिला संगठन जैसे संगठनों की भी भूमिका है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने सामान्य नागरिकों विशेषकर महिलाओं के बीच उद्यम की संस्कृति को बढ़ावा देने के निर्णायक कदम उठाए हैं। महिलाओं,अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए अप्रैल, 2016 में स्टैंड-अप इंडिया पहल शुरू की गई थी। लगभग 45,000 ऋण मुख्य रूप से एकल स्वामित्व वाले उद्यमों को वितरित किए गए हैं। इनमें से लगभग 39,000 ऋण महिलाओं को दिए गए जो एक बड़ा हिस्सा है। ‘मुद्रा’ योजना के अंतर्गत, पिछले तीन वित्तीय वर्षों के दौरान, लगभग 117 मिलियन ऋणों को मंजूरी दी गई। इनमें से करीब 88 मिलियन ऋण महिला उद्यमियों को प्रदान किए गए और उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि दिसम्बर, 2017 तक ‘मुद्रा’ योजना के अंतर्गत गैर-निष्पादक आस्तियों की संख्या मंजूर ऋण के आठ प्रतिशत से भी कम है।

राष्ट्रपति ने कहा कि कारोबार में वास्तविक नाकामी की घटनाएं घट सकती हैं। परंतु बैंक ऋण चुकाने में जानबूझकर और आपराधिक चूक हो तो हमारे भारतीय परिवारों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। निर्दोष नागरिक को नुकसान होता है और आखिरकार ईमानदार करदाता बोझ सहन करता है। यह सराहनीय है कि हमारे देश के जमीनी स्तर पर, छोटे गांवों में और पारंपरिक रूप से पिछड़े और वंचित समुदायों में ‘मुद्रा’ उद्यमी अपना ऋण चुकाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ने आग्रह किया कि फिक्की महिला संगठन के सदस्यों को यह गौर करना है कि वे अधिकतर महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे इन कारोबारों को अपनी मूल्य शृंखलाओं का अभिन्न अंग कैसे बना सकती हैं। किस प्रकार वे विक्रेताओं,सहायक उपक्रमों,आपूर्तिकारों, वितरकों या किसी अन्य रूप में इन लघु स्टार्ट अप में साझीदार बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा हमारी अर्थव्यवस्था में महिलाओं को केवल शामिल करने पर ही नहीं बल्कि उन्हें सशक्त बनाने के लिए महिला अनुकूल और लैंगिक-संवेदी आपूर्ति शृंखलाओं के सृजन की दिशा में मज़बूत कदम उठाए जाने चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि यह समय, भारत के लिए असीम अवसरों का समय है। यदि हमारे संस्थान और हमारे समाज विधि के लेखे और न्याय की भावना के प्रति सच्चे हों तो हम प्रत्येक भारतीय को उसकी क्षमता साकार करने में मदद कर सकते हैं। और हम एक विकसित भारत का निर्माण कर सकते हैं। असहमति हो सकती है परंतु दूसरे व्यक्ति की गरिमा के प्रति सम्मान होना चाहिए- हमें गरिमा और सज्जनता; व्यवस्था और विधि अनुरुप शासन;निष्पक्षता व न्याय;उद्यमशीलता और आकांक्षाएं इन सभी को हासिल करना है। हम इसमें भेदभाव नहीं कर सकते।

राष्ट्रपति ने कहा कि यहां हममें से प्रत्येक की एक निश्चित भूमिका है। फिक्की महिला संगठन का प्रत्येक सदस्य व्यक्तिगत रूप से और फिक्की महिला संगठन एक संस्था के रूप में भारतीय कारोबार में और भारतीय समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।

यह विज्ञप्ति 1200 बजे जारी की गई।