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भारत के राष्ट्रपति ने ‘ऑल इण्डिया स्टेट ज्यूडीशियल एकेडमीज़ डायरेक्टर्स रिट्रीट’ का उद्घाटन किया

राष्ट्रपति भवन: 06.03.2021

न्‍याय व्‍यवस्‍था का उद्देश्‍य केवल विवादों को सुलझाना नहीं, बल्कि न्‍याय की रक्षा करने का होता है और न्याय की रक्षा का एक उपाय, न्याय में होने वाले विलंब को दूर करना भी है। न्याय के वितरण में देरी जैसी बाधाओं को दूर करके इसे लागू किया जा सकता है,भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने कहा। वे आज (6 मार्च, 2021)को मध्य प्रदेश के जबलपुर में ऑल इण्डिया स्टेट ज्यूडीशियल एकेडमीज़ डायरेक्टर्स रिट्रीट के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन कर रहे थे।

राष्ट्रपति को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि न्याय व्‍यवस्‍था में टैक्नोलॉजी का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ा है। देश में 18,000 से ज्‍यादा न्‍यायालयों का कंप्‍यूटरीकरण हो चुका है। लॉकडाउन की अवधि में, जनवरी, 2021 तक पूरे देश में लगभग 76 लाख मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्ट्स में की गई। उन्होंने कहा कि ने‍शनल ज्‍यूडीशियल डेटा ग्रिड, यूनिक आइडेंटिफिकेशन कोड तथा क्‍यूआर कोड जैसी पहलों की सराहना विश्‍व स्‍तर पर की जा रही है। अब ई-अदालत ,वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-प्रोसीडिंग्‍स, ई-फाइलिंग और ई-सेवा केन्‍द्रों की सहायता से जहां न्याय-प्रशासन की सुगमता बढ़ी है, वहीं कागज के प्रयोग में कमी आने से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण संभव हुआ है।

राष्ट्रपति ने कहा कि निचली अदालतें देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग है। उस में प्रवेश से पहले, सैद्धांतिक ज्ञान रखने वाले क़ानून के विद्यार्थियों को कुशल एवं उत्कृष्ट न्यायाधीश के रूप में प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी न्यायिक अकादमियां कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अब जरूरत है कि देश की अदालतों, विशेष रूप से जिला अदालतों में लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाने के लिए न्यायाधीशों के साथ ही अन्यन्यायिक एवं अर्ध-न्यायिकअधिकारियों के प्रशिक्षण का दायरा बढ़ाया जाए।

राष्ट्रपति ने कहा कि ‘शीघ्र न्याय’ प्रदान करने के लिए,व्यापक न्यायिक प्रशिक्षण की जरूरत के साथ-साथ टैक्नोलॉजी के अधिकाधिक प्रयोग की संभावनाएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। अब मुकदमों की बढ़ती संख्या के कारण, कम समय में ही मुद्दों की बारीकियों को समझना और सटीक निर्णय लेना जरूरी हो जाता है।उन्होंने कहा कि नए-नए कानूनों के लागू होने, मुकदमेबाजीकी प्रकृति में व्यापक बदलाव आने और समय-सीमा में मामलों को निपटाने की आवश्यकता ने भी न्यायाधीशों के लिए यह जरूरी बना दिया है कि वे विधि और प्रक्रियाओं का up-to-date ज्ञान रखें।

राष्ट्रपति ने कहा कि ‘हम, भारत के लोगों’ की, न्यायपालिका से बहुत अपेक्षाएं हैं। समाजन्यायाधीशों से ज्ञानवान, विवेकवान, शीलवान, मतिमान और निष्पक्ष होने की अपेक्षा करता है।‘न्याय-प्रशासन’ में संख्या से अधिक महत्व गुणवत्ता को दिया जाता है। और, इन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण पद्धतियों को, ज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा न्यायिक कौशल को अद्यतन रखना तथा लगातार बदल रही दुनिया की समुचित समझ बहुत जरूरी होती है। इस प्रकार, आरंभिक स्तर और सेवा के दौरान प्रशिक्षण के माध्यम से इन अपेक्षाओं को पूरा करने में, राज्य न्यायिक अकादमियों की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो जाती है।

राष्ट्रपति को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णयों का अनुवाद, नौ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया। कुछ उच्च न्यायालय भी स्थानीय भाषा में निर्णयों का अनुवाद कराने लगे हैं।उन्होंने इस प्रयास से जुड़े सभी लोगों को हार्दिक बधाई दी और सभी उच्च न्यायालयों से आग्रह किया कि वे सर्वोच्च न्यायालय की तरह राज्य की आधिकारिक भाषाओं में सार्वजनिक जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित अपने निर्णयों के प्रमाणित अनुवाद भी साथ-साथ उपलब्ध व प्रकाशित कराएं।

राष्ट्रपति ने कहा किआज भी, हर व्यक्ति का अंतिम सहारा और भरोसा न्यायपालिका ही है। देश के साधारण से साधारण नागरिक का भरोसा न्याय-व्यवस्था में बनाए रखने के लिए, राज्य के सभी अंगों को निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करना चाहिए:-

·जैसे - शीघ्र, सुलभ और किफायती न्याय प्रदान करने की दृष्टि से टैक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ाने, प्रक्रिया और काग़जी कार्रवाई को सरल बनाने तथा लोगों को उनकी अपनी भाषा में न्याय दिलाने के लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं?

·इसी प्रकार, वैकल्पिक न्याय जैसे आर्बिट्रेशन, मीडिएशन, लोक-अदालतों के दायरे का विस्तार और ट्रिब्यूनल्स की कार्य-प्रणाली में अपेक्षित सुधार किस प्रकार किए जा सकते हैं?

·तथा, उच्च न्यायालयों तथा जिला अदालतों की कार्रवाई में राज्य की अधिकृत भाषा के प्रयोग को और बढ़ावा किस प्रकार दिया जा सकता है?

·और, सरकारी मुकदमों की संख्या कम करने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जा सकते हैं?

राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय व्‍यवस्‍था का उद्देश्‍य केवल विवादों को सुलझाना नहीं,बल्कि न्‍याय की रक्षा करने का होता है और न्याय की रक्षा का एक उपाय,न्याय में होने वाले विलंब को दूर करना भी है।

ऐसा नहीं है कि न्याय में विलंब केवल न्यायालय की कार्य-प्रणाली या व्यवस्था की कमी से ही होता हो। वादी और प्रतिवादी, एक रणनीति के रूप में,बारंबार स्‍थगन का सहारा लेकर, कानूनों एवं प्रक्रियाओं आदि में मौजूदलूप-होल्सके आधार पर मुकदमे को लंबा खींचते रहते हैं। उन्होंने कहा किअदालती कार्रवाई और प्रक्रियाओं में मौजूद इनलूप-होल्सका निराकरण करने में न्यायपालिका को, सजग रहते हुए सक्रियभूमिका निभानी आवश्यक हो जाती है। राष्ट्रीय एवं अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर होने वालेनवाचारोंको अपनाकर औरसर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।उन्होंने विश्वास व्यक्त किया किदो दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन में न्यायिक प्रशासन के इन सभी पहलुओं पर गहराई से विचार-विमर्श किया जाएगा और कार्रवाई के बिन्दु तय किए जाएंगे।