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भारत के राष्ट्रपति, मैसूर के महाराजा जयचामराजा वाडियार के जन्म शताब्दी समारोह में शामिल हुए; उन्होंने कहा कि उनकी जन्मशती के अवसर पर हम अपने दैनिक जीवन में उनके जीवन-मूल्यों और उनकी विचारधारा को अपनाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।

राष्ट्रपति भवन : 10.10.2019

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द मैसूर में आज (10 अक्टूबर, 2019) मैसूर के महाराजा जयचामराजा वाडियार के जन्म शताब्दी समारोह में शामिल हुए और सभा को संबोधित किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि मैसूर साम्राज्य के 25वें महाराज, महाराजा वाडियार असाधारण शासक और कुशल प्रशासक थे। वे प्रसिद्ध दार्शनिक, संगीत-वेत्ता, राजनीतिक विचारक और परोपकारी व्यक्ति थे। जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, तो वे भारतीय रियासतों के शासकों में से उस पहले शासकवृंद में शामिल थे जिन्होंने भारत संघ में शामिल होने के प्रस्ताव को स्वीकार किया। महाराजा ने 9 अगस्त 1947 को इस विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए और केन्द्र सरकार ने 16 अगस्त को इसे स्वीकार कर लिया। इस प्रकार से उन्हें, लोकतंत्र की दिशा में भारत की परिवर्तन यात्रा के अगुवाकारों में गिना जाना चाहिए।नव स्वतंत्र राष्ट्र की एकता और अखंडता में उनके अग्रणी योगदान को कभी भुलाया नहीं जाएगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि महाराजा जयचाम राजा वाडियार स्वयं न केवल भारतीय दर्शनशास्त्र के असाधारण विद्वान थे बल्कि उन्होंने ‘जयचाम राजा ग्रंथ रत्न माला’ के माध्यम से शोधवृत्ति को भी बढ़ावा दिया। उद्यमिता के क्षेत्र में भी उनका समर्थन एक प्रेरणास्पद गाथा है।मैसूर राज्य के शासक के रूप में उन्होंने, 1940में ‘हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट’ नामक कंपनी के रूप से बेंगलुरु में एक उद्योग की स्थापना को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया जो आगे चलकर ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स’ के रूप में विकसित हुई।

राष्ट्रपति को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि महाराजा ने ‘केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान’ (सीएफटीआरआई) आरम्भ करने के लिए मैसूर में भव्य चेलुवंबा हवेली दान में दे दी थी। उन्होंने कहा कि महाराजा द्वारा दिए गए इस प्रकार के दानों के माध्यम से बेंगलुरु में ‘राष्ट्रीय क्षय रोग संस्थान’ और मैसूर में ‘अखिल भारतीय वाक् एवं श्रवण संस्थान’ की स्थापना में सहायता मिली।

राष्ट्रपति ने कहा कि महाराजा वाडियार जैसे दिग्गज नेताओं ने उस जीवनशैली को मूर्त रूप दिया, जैसा जीवन हम आज जी रहे हैं।अपने दैनिक जीवन में उनके जीवन-मूल्यों और उनकी विचारधारा को अपनाकर उनकी जन्मशती के अवसर पर हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं।