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भारत के राष्ट्रपति ने मानवाधिकार दिवस समारोह में भाग लिया

राष्ट्रपति भवन : 10.12.2021

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने कहा कि मानवाधिकार दिवस के अवसर पर हमें इस बात पर मनन करने का अवसर प्राप्त होता है कि मनुष्य होने का क्या अर्थ है और मानव जाति की आधारभूत गरिमा को बढ़ाने में हमारी भूमिका क्या है। हमारे अधिकार हमारे साझा उत्तरदायित्व भी हैं। वे आज (10 दिसंबर, 2021) नई दिल्ली में मानवाधिकार दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणा-पत्र में उन विविध अधिकारों और स्वतंत्रताओं का वर्णन किया गया है जिन पर प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है। ये अधिकार अहस्तांतरणीय हैं, जो पूरी तरह से इस तथ्य पर निर्भर करते हैं कि जातीयता, लिंग, राष्ट्रीयता, धर्म, भाषा और अन्य विभाजनों से परे प्रत्येक व्यक्ति मनुष्य है। इस घोषणा-पत्र के साथ, वैश्विक समुदाय ने आधारभूत मानवीय गरिमा को औपचारिक मान्यता दी, यद्यपि यह सदियों से हमारी आध्यात्मिक परंपराओं का हिस्सा रहा है।

राष्ट्रपति ने नोट किया कि इस वर्ष के मानवाधिकार दिवस की विषय-वस्तु 'समानता' है। उन्होंने कहा कि सार्वभौम घोषणापत्र के अनुच्छेद 1 में कहा गया है, "सभी मनुष्यों को गरिमा और अधिकारों के मामले में जन्मजात स्वतन्त्रता और समानता प्राप्त है।" उन्होंने कहा कि समानता मानव अधिकारों की आत्मा है। जबकि मानव गरिमा के संपूर्ण सम्मान के लिए पहली शर्त है- भेदभाव-रहित वातावरण, तथापि दुनिया अनगिनत पूर्वाग्रहों से भरी हुई है। दुर्भाग्यवश, इनसे व्यक्तियों को अपनी क्षमता की पूर्ण प्राप्ति में बाधा का सामना करना पड़ता है और इस प्रकार यह समग्र रूप में, समाज के लिए अहितकर है। मानवाधिकार दिवस हमारे लिए सामूहिक रूप से विचार करने और ऐसे पूर्वाग्रहों को दूर करने के तरीके खोजने का आदर्श अवसर है जो मानवता की प्रगति में बाधक ही बनते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि आज के दिन विश्व में 'स्वस्थ पर्यावरण और जलवायु संबंधी न्याय के अधिकार' पर भी बहस और चर्चा की जानी चाहिए। प्रकृति के क्षरण से जलवायु में अपरिवर्तनीय बदलाव आ रहे हैं और हमें इसके हानिकारक प्रभाव दिखने आरम्भ हो चुके हैं। दुनिया इस कठोर वास्तविकता के प्रति जागरुक हो रही है, लेकिन अभी भी निर्णायक रूप से बदलाव लाने का संकल्प लेना शेष है। प्रकृति को औद्योगीकरण के दुष्‍प्रभावों से बचाकर हमें अपने बच्चों के प्रित अपना दायित्‍व निभाना है। समय हाथ से निकला जा रहा है। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि भारत ने घरेलू और साथ ही, हाल ही में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में अपनी ओर से ऐसी पहलें की हैं, जिससे पृथ्वी की सेहत की बहाली के दूरगामी परिणाम प्राप्त होंगे। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में भारत का नेतृत्व और हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के अनेक उपाय विशेष रूप से प्रशंसनीय हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि मानवता इतिहास की सर्वाधिक भीषण महामारी से जूझ रही है। अभी महामारी का अंत नहीं हुआ है, तथा वायरस और मानव जाति की रेस में वायरस एक कदम आगे प्रतीत हो रहा है, दुनिया ने अब तक विज्ञान और वैश्विक साझेदारी में अपना भरोसा बनाए रखकर इसका सामना किया है। उन्होंने कहा कि हालांकि महामारी का दुष्प्रभाव सम्पूर्ण मानवता पर सर्वत्र पड़ता है, लेकिन यह भी देखा गया है कि समाज के कमजोर वर्गों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव आनुपातिक रूप से अधिक पड़ता है। इस संदर्भ में, भारत, स्वाभाविक चुनौतियों के बावजूद, टीकों की निशुल्क और सार्वभौमिक उपलब्धता की नीति अपनाकर लाखों लोगों की जान बचाने में सफल रहा है। इतिहास में सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के साथ, सरकार लगभग एक अरब लोगों को वायरस से सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम रही है। उन्होंने लोगों के जीवन के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार को बनाए रखने के अपने साहसी प्रयासों के लिए डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और अन्य सभी 'कोरोना योद्धाओं' की प्रशंसा की।

राष्ट्रपति ने कहा कि इस अदृश्य शत्रु के साथ वर्तमान युद्ध ने हमें अनेक आघात पहुंचाए हैं। कुछ अत्यधिक कठिन समय में, सरकारी संस्थाओं ने ऐसी स्थितियों से निपटने के भरसक प्रयास किए, जिसके लिए जितनी भी तैयारी कर ली जाती वह अपर्याप्त ही रहती। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महामारी से प्रभावित समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के लोगों के अधिकारों के लिए अपनी गहरी चिंता व्यक्त करने के साथ कई परामर्श भी जारी किए, जो हमारी प्रतिक्रिया में सुधार करने में सहायक सिद्ध हुए। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मानवाधिकारों को मजबूती प्रदान करने की दिशा में, सिविल सोसाइटी, मीडिया और अलग-अलग आंदोलनकारियों सहित अन्य हितधारकों के साथ मिलकर काम किया है।