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भारत के राष्ट्रपति ने चौथे अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन किया; और कहा कि हमारी एक्ट ईस्ट नीति का लक्ष्य न केवल आर्थिक अवसरों का आदान-प्रदान करना बल्कि भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के लोगों के सपनों और आशाओं का समेकन करना है

राष्ट्रपति भवन : 11.01.2018

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द आज (11 जनवरी, 2018 ) राजगीर, बिहार में चौथे अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि यह सम्मेलन सही समय पर हो रहा है। हम आसियान-भारत संवाद साझीदारी की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। जनवरी का महीना भारत-आसियान रिश्तों का उत्सव है। आसियान के सभी 10 देशों के नेता नई दिल्ली में भारत के गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी को समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। आज यह सम्मेलन भारत और आसियान की स्थायी मैत्री और साझे मूल्यों तथा उपमहाद्वीप और दक्षिणपूर्व एशिया दोनों की आध्यात्मिक विरासत और ज्ञान का प्रमाण है।

राष्ट्रपति ने कहा कि यह सम्मेलन धर्म और धम्म की भिन्न परंपराओं के साझे आधार और समानताओं की जानकारी बढ़ाने का प्रयास है। हम इन्हें अनेक नामों से जानते हैं, परन्तु ये हमें एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं। वे अनेक पथों पर नहीं अपितु एक ही समेकित लक्ष्य की ओर ले जाने वाले पथ पर ले जाते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि यह शब्द लोकप्रिय होने से बहुत पहले, बौद्ध धर्म वैश्वीकरण के प्रारंभिक रूप और हमारे महाद्वीप के परस्पर संयोजन का आधार था। इसने बहुलवाद और विचार विविधता को बढ़ावा दिया। इसने विभिन्न विचारों और उदारवादी अभिव्यक्तियों को स्थान दिया। इसने व्यक्तिगत जीवन, मानव साझीदारियों तथा सामाजिक और आर्थिक व्यवहार में नैतिकता पर बल दिया। इसने प्रकृति और पर्यावरण के साथ मिलकर रहने, कार्य करने और सहयोग करने के सिद्धांतों पर जोर दिया। इसने साथी समुदायों के साथ ईमानदार, पारदर्शी और परस्पर लाभकारी व्यापारिक और कारोबारी संपर्क की प्रेरणा दी।

राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा अनुमान है कि विश्व की वर्तमान जनसंख्या का आधे से अधिक हिस्सा ऐसे भागों में रह रहा है जो ऐतिहासिक रूप से भगवान बुद्ध के ज्ञान द्वारा प्रभावित रहा है और अनेक प्रकार से प्रभावित कर रहा है और जिसे मानवता के सम्मुख एक आदर्श माना जाता है। इसी सूत्र से हम सभी बंधे हुए हैं। यही संकल्पना हमें 21वीं शताब्दी में प्रेरित करेगी। इसे ही सचमुच ‘एशिया का प्रकाश’ कहा जाता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की एक्ट ईस्ट नीति को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह एक राजनयिक पहल से कहीं अधिक है। इसका लक्ष्य अधिक व्यापार और निवेश ही नहीं है। वास्तव में ये सभी आकांक्षाएं भारत और इसके समस्त साझीदार देशों के लोगों की समृद्धि और खुशहाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तथापि एक्ट ईस्ट नीति का लक्ष्य मात्र आर्थिक अवसरों का आदान-प्रदान करना नहीं है बल्कि भारत और दक्षिणपूर्व एशिया तथा धर्म-धम्म पहचान वाले एशिया के दूसरे भागों में रहने वाले करोड़ों लोगों के सपनों और उम्मीदों को एक साथ जोड़ना है। हमारे अतीत का एक ही उद्गम है, और हमारा भविष्य भी आपस में जुड़ा हुआ है। यह सम्मेलन और नया नालंदा विश्वविद्यालय उसी साझी भावना के प्रतीक हैं। हमारे आर्थिक और राजनयिक प्रयासों को इसी उद्गम से पे्ररणा ग्रहण करनी चाहिए।

यह विज्ञप्ति 1615 बजे जारी की गई