भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नए भवन परिसर का शिलान्यास किया
राष्ट्रपति भवन : 11.09.2021
भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने कहा यदि हमें अपने संविधान के समावेशी आदर्शों को प्राप्त करना है तो न्याय-पालिका में भी महिलाओं की भूमिका को बढ़ाना ही होगा। वे आज (11 सितंबर, 2021) उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नवीन भवन परिसर के शिलान्यास समारोह में अपना संबोधन दे रहे थे।
सन 1921 में भारत की पहली महिला अधिवक्ता, सुश्री कोर्नीलिया सोराबजी को एनरोल करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय का उल्लेख करते हुए, राष्ट्रपति ने उस निर्णय को महिला सशक्तीकरण की दिशा में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का भविष्योन्मुखी निर्णय करार दिया। उन्होंने कहा किपिछले महीने, उच्चतम न्यायालय में तीन महिला न्यायाधीशों सहित 9 न्यायाधीशों की नियुक्ति के साथ न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी का एक नया इतिहास गढ़ा गया। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय में नियुक्त कुल 33 न्यायाधीशों में चार महिला न्यायाधीशों की उपस्थिति न्यायपालिका के इतिहास में आज तक की सर्वाधिक संख्या है। उन्होंने कहा कि इन नियुक्तियों से भविष्य में एक महिलामुख्य न्यायाधीश बनने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सही मायने में न्याय-पूर्ण समाज की स्थापना तभी संभव होगी जब अन्य क्षेत्रों सहित देश की न्याय व्यवस्था में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। उन्होंने इस बात को नोट किया कि आज उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को मिलाकर महिला न्यायाधीशों की कुल संख्या 12 प्रतिशत से भी कम है। उन्होंने कहा कि यदि हमें अपने संविधान के समावेशी आदर्शों को प्राप्त करना है तो न्याय-पालिका में भी महिलाओं की भूमिका को बढ़ाना ही होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने न्याय पाने के लिए गरीब लोगों के संघर्ष को नजदीक से देखा है। न्याय-पालिका से सभी को उम्मीदें तो होती हैं,फिर भी,सामान्यतया लोग न्यायालय की सहायता लेने से हिचकिचाते हैं। न्याय-पालिका के प्रति लोगों के विश्वास को और अधिक बढ़ाने के लिए इस स्थिति को बदलना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सभी को समय से न्याय मिले,न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो,सामान्य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में निर्णय देने की व्यवस्था हो, और खासकर महिलाओं तथा कमजोर वर्ग के लोगों को न्यायिक प्रक्रिया में भी न्याय मिले,यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है। यह संभव तभी होगा जब न्याय व्यवस्था से जुड़े सभीप्रतिभागी अपनी सोच व कार्य संस्कृति में आवश्यक बदलाव लाएं और संवेदनशील बनें।
राष्ट्रपति ने कहा कि जन-साधारण में न्याय-पालिका के प्रति विश्वास और उत्साह को बढ़ाने के लिए लंबित मामलों के निस्तारण में तेजी लाने से लेकर अधीनस्थ न्यायपालिका (Subordinate Judiciary) की दक्षता बढ़ाने तक कई पहलुओं पर अनवरत प्रयासरत रहना समय की मांग है। अधीनस्थ न्यायपालिका के लिए पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था कराने,जजों की नियुक्ति द्वारा वर्किंग जजों की संख्या में समुचित वृद्धि करने तथा बजट के प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने से हमारी न्याय प्रक्रिया को मजबूत आधार मिलेगा।उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय राज्य सरकार के सहयोग से ऐसे सभी क्षेत्रों में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करेगा।
राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के लिए प्रयागराज के चयन के संबंध में कहा कि प्रयागराज की एक प्रमुख पहचान शिक्षा के केंद्र के रूप में रही है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की महत्वपूर्ण भूमिका तथा शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रयागराज की प्रतिष्ठा को देखते हुए इस विधि विश्वविद्यालय के लिए प्रयागराज ही सर्वोत्तम स्थान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि कानून के शासनपर आधारित व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण लीगल एजुकेशन का महत्वपूर्ण योगदान होता है विश्वस्तरीय विधि शिक्षा हमारे समाज और देश की प्राथमिकताओं में से एक है। नॉलेज इकॉनॉमी के इस युग में हमारे देश में नॉलेज सुपर-पावर बनने की महत्वाकांक्षी नीति को कार्यरूप दिया जा रहा है।उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी संस्थान के लिए आरंभ में ही सभी पद्धतियों को सुविचारित रूप से स्थापित करना अपेक्षाकृत सरल होता है। व्यवस्था के निर्मित हो जाने के बाद उसमें सुधार करने की प्रक्रिया जटिल होती जाती है। इसलिए उन्होंने उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में आरंभ से ही विश्व के सर्वश्रेष्ठ विधि विश्वविद्यालयों की पद्धतियों और प्रणालियों का अध्ययन करके श्रेष्ठतम व्यवस्थाओं को अपनाए जाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि आधुनिक सुविधाओं के निर्माण, विद्यार्थियों के चयन, अध्यापकों की नियुक्ति, पाठ्यक्रम के निर्धारण, शिक्षा-प्रविधि की शैलियों के चयन आदि सभी आयामों में विश्व की श्रेष्ठतम पद्धतियों को कार्यान्वित करके एक विश्व-स्तरीय संस्थान का निर्माण किया जाना चाहिए।