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भारत के राष्ट्रपति ने पुणे में 'राष्ट्रीय बैंक प्रबंधन संस्थान' के स्वर्ण जयंती समारोह को संबोधित किया; उन्होंने वैश्विक मानकों के बैंकिंग संस्थानों में सेवा प्रदान करने के लिए एनआईबीएम से प्रशिक्षित मानव संसाधनों का पूल तैयार करने का आग्रह किया

राष्ट्रपति भवन : 12.02.2020

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द आज (12 फरवरी, 2020) महाराष्ट्र के पुणे में ‘राष्ट्रीय बैंक प्रबंधन संस्थान’ (एनआईबीएम) के स्वर्ण जयंती समारोह में शामिल हुए और उन्होंने सभा को संबोधित किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि बैंक हमारी अर्थव्यवस्था का आधार हैं। इस भूमिका में उनकी दक्षता के कारण लोगों के मन में उनके प्रति विश्वास और सम्मान का भाव पैदा हुआ है। हमारे संविधान में सभी नागरिकों को आर्थिक न्याय मुहैया कराने का वचन दिया गया है। इस संवैधानिक प्रतिबद्धता को पूरा करने में बैंकों को महत्वपूर्ण माध्यम माना गया। राष्ट्रपति ने कहा कि बैंकों ने अपनी पारंपरिक भूमिका से परे वित्तीय मध्यस्थ के रूप में अपने इस दायित्व को अच्छी तरह से निभाकर सराहना अर्जित की है। उन्होंने कहा कि बैंकिंग, जो कभी केवल अभिजात्य वर्ग का शगल हुआ करती थी, उसे हमारे बैंकों ने आम आदमी को उपलब्ध सेवा के रूप में बदलने का सराहनीय कार्य किया है। गरीबों और जरूरतमंदों के बैंक खाते में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत धन के सीधे अंतरण के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद बैंकों को समता के साथ विकास सुनिश्चित करने के सामाजिक दायित्व का हिस्सा भी माना जाता था। देश की आर्थिक प्रणाली में बैंकों के महत्व को ध्यान में रखते हुए, 1949 में बैंकिंग विनियमन अधिनियम लागू किया गया था। हमारे राष्ट्र के संस्थापकगण, बैंकों की उस भूमिका के प्रति बहुत सचेत थे जो इन्हें लोक-न्यास धारकों के रूप में निभानी होती है। उन्होंने सभी बैंकरों से आग्रह किया कि वे हमारे लिए निर्धारित इसी कसौटी पर अपने कार्यों को कसें। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक धन के संरक्षक के रूप में, अर्थव्यवस्था में बैंकों की महत्वपूर्ण विश्वासप्रद जिम्मेदारी है। उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए सभी संभव विवेकपूर्ण उपाय करने होंगे कि किसी भी तरह से इस विश्वास को धक्का न लगने पाए। हाल ही में बैंक जमा पर बीमा कवरेज को 1 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रु. करने का प्रस्ताव बचतकर्ताओं को आश्वस्त करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत अब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है। भारत की विकास गाथा में बैंक निरंतर सहभागी रहे हैं। जब भारत 5-ट्रिलियन-डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहता है, तब इस कार्य में बैंकिंग क्षेत्र को भी बड़ी उछाल की तैयारी कर लेनी चाहिए। इस लक्ष्य की प्राप्ति में मुख्य रूप से "बैंकिंग विद अनबैंक्ड" अर्थात बैंकिंग की सुविधा से वंचित लोगों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ना और "सिक्योरिंग दी अनसिक्योर्ड" अर्थात आर्थिक रूप से असुरक्षित लोगों को आर्थिक सुरक्षा देना शामिल है। राष्ट्रपति ने एनआईबीएम से आग्रह किया कि इस अभियान में प्रशिक्षित मानव संसाधनों का एक ऐसा पूल उन्हें तैयार करना होगा, जो वैश्विक मानकों के बैंकिंग संस्थानों में सेवा प्रदान करने के लिए कुशल हों।

राष्ट्रपति ने कहा कि यदि बैंकों की पहुँच गहनतर तथा बैंकिंग व्यवस्था कुशलतर हो जाए, तो भारत को अपनी भावी विकास यात्रा में बहुत सहायता मिलेगी। हमारी अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार को देखते हुए, हमें यह लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए कि दुनिया के शीर्ष 100 बैंकों में भारत का केवल एक नहीं बल्कि अधिक बैंकों के नाम शामिल हों।