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भारत के राष्ट्रपति श्री रामानुज सहस्राब्दी समारोह में शामिल हुए और हैदराबाद में श्री रामानुजाचार्यजी की स्वर्णिम प्रतिमा का अनावरण किया

राष्ट्रपति भवन : 13.02.2022

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (13 फरवरी, 2022) हैदराबाद में श्री रामानुजाचार्यजी की स्वर्णिम प्रतिमा का अनावरण करने के बाद श्री रामानुज सहस्राब्दी समारोह की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि श्री रामानुजाचार्य जैसे संत-कवि और दार्शनिकों ने भारत की सांस्कृतिक पहचान, सांस्कृतिक निरंतरता और सांस्कृतिक एकता का सृजन और पोषण किया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि श्री रामानुजाचार्य जैसे संत-कवि और दार्शनिकों ने सांस्कृतिक-मूल्यों पर आधारित राष्ट्र की अवधारणा विकसित की। राष्ट्र की यह संस्कृति-आधारित अवधारणा पश्चिमी विचारधारा में परिभाषित अवधारणा से भिन्न है। सदियों पहले भारत को एक सूत्र में पिरोने वाली भक्ति परंपरा का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इस परंपरा को श्री रामानुजाचार्य से प्रेरित उन भक्ति संप्रदायों के रूप में देखा जा सकता है, जो तमिलनाडु के श्रीरंगम और कांचीपुरम से लेकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी तक फैले हुए थे। इस प्रकार से भारतीयों की भावनात्मक एकता सदियों पुरानी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सौ वर्षों से भी अधिक लंबी अपनी जीवन-यात्रा के दौरान श्री रामानुजाचार्यजी ने भारत के आध्यात्मिक और सामाजिक स्वरूप को वैभव प्रदान किया। लोगों में भक्ति और समानता का संदेश प्रसारित करने के लिए, उन्होंने देश भर में यात्रा की। श्री रामानुज का 'विशिष्टा द्वैत' न केवल दर्शन के क्षेत्र में विलक्षण योगदान है, अपितु उन्होंने दैनिक जीवन में भी दर्शन की प्रासंगिकता को दिखाया है। पश्चिमी देशों में जिसे दर्शन शास्त्र कहा जाता है, वह केवल विद्वानों के अध्ययन के विषय के रूप में सिमट कर रह गया है। लेकिन हम जिसे 'दर्शन' कहते हैं, वह कोई शुष्क विश्लेषण का विषय नहीं है; यह दुनिया को देखने का एक तरीका है और एक जीवन शैली भी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि श्री रामानुजाचार्य ने दक्षिण की समृद्ध भक्ति परंपरा को, विशेषकर आलवार संत कवियों की परंपरा को बौद्धिक आधार प्रदान किया। तथाकथित पिछड़ी जातियों के लोगों के लिए वैष्णव धर्म के द्वार खोलने का कार्य श्री रामानुजाचार्य ने ही किया। उन्होंने समझाया कि भक्ति सभी जाति-भेदों से ऊपर है। उन्‍होंने बलपूर्वक कहा कि ईश्वर की आराधना का सबको समान अधिकार है। उन्होंने तत्कालीन समाज-व्यवस्था में समता का संचार किया। उन्होंने वेदान्त की बौद्धिकता में भक्ति के रस का मिश्रण किया, और बुद्धि को हृदय से जोड़ा तथा अमूर्त को मूर्त से जोड़ा। उन्होंने सब कुछ छोड़ कर ईश्वर की शरण में जाने की भावना को जगाने का प्रयास किया। उन्होंने भक्ति द्वारा मुक्ति का मार्ग दिखाया।

राष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक न्याय के पक्षधर, हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पी, बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि हमारे आधुनिक गणराज्य के मौलिक संवैधानिक आदर्श भारत की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित हैं। बाबासाहब ने बड़े सम्मान के साथ श्री रामानुजाचार्य के समतावादी आदर्शों का उल्लेख भी किया था। अतः, समानता की हमारी अवधारणा पश्चिमी देशों से प्रतिपादित नहीं है। समानता की हमारी यह अवधारणा भारत की सांस्कृतिक धरती पर विकसित हुई है। "वसुधैव कुटुम्बकम" का हमारा शाश्वत दर्शन समता पर आधारित है। समता हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है। कानून के समक्ष समता, सभी प्रकार के भेदभाव का निषेध, अवसर की समानता, अस्पृश्यता का उन्मूलन - ये सभी मौलिक अधिकार हमारे संविधान में निहित हैं। समतामूलक समाज की स्थापना का संवैधानिक उद्देश्य प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा जनकल्याण के अनेक कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि समस्त प्राणियों के कल्याण हेतु कार्य करना भी हमारे देश का प्रमुख जीवन-मूल्य रहा है। सबके हित का यही आदर्श श्रीरामानुजाचार्य के विशिष्टा-द्वैत पर आधारित भक्ति मार्ग में भी दिखाई देता है। आज हमारा संविधान हमारे देश की व्यवस्था का आधार है। सदियों पहले मंदिर और मठ, संस्कृति और कार्य-व्यवस्था के प्रमुख केंद्र हुआ करते थे। उस परिवेश में समानता की स्थापना करने के लिए श्रीरामानुजाचार्य ने समाज के पिछड़े वर्गों को मंदिरों और मठों की व्यवस्था में सहभागी बनाया। इस प्रकार, हमारे संविधान के समता-मूलक आदर्श श्रीरामानुजाचार्य के विचारों और कार्य-प्रणाली में स्पष्ट दिखाई देते हैं।

भक्ति और समता के महानतम ध्वज-वाहक,श्रीरामानुजाचार्य की सहस्राब्दी समारोह के शुभ अवसर पर, राष्ट्रपति ने सभी देशवासियों, विशेषकर श्री रामानुज के श्रद्धालुओं को हार्दिक बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस यात्रा के दौरान आज उन्हें देश की आध्यात्मिक व सामाजिक परंपरा के एक महान अध्याय से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ है।

वेद साहित्य में ऋषियों द्वारा देवताओं से की गयी प्रार्थना "अश्मा भवतु ते तनु:” अर्थात् ‘आपका शरीर दृश्यमान बने जिससे कि हम सहज भाव में आपका दर्शन कर सकें' का उल्लेख करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि ईश्वरीय गुणों से युक्त विभूतियों को मूर्त रूप में देखने की यह भावना ही श्री रामानुजाचार्य की इस विशाल प्रतिमा के निर्माण की प्रेरणा रही है। उन्होंने जीयर स्वामीजी और स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी के निर्माण से जुड़े सभी लोगों की सराहना की। उन्होंने कहा कि जिस लगन और निष्ठा के साथ उन लोगों ने इस मूर्ति का निर्माण किया है, उसी भावना के साथ उन्हें नर-नारायण की सेवा तथा कल्याण हेतु देशव्यापी योजनाओं की परिकल्पना करते हुए उन योजनाओं को कार्यरूप प्रदान करना चाहिए। इस तरह केप्रकल्पों से समता-मूलक समाज के निर्माण की दिशा में हमारे राष्ट्रीय प्रयासों को बल मिलेगा।