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भारत के राष्ट्रपति ने डॉ. बी.आर. आम्बेडकर की 127वीं जयंती के अवसर पर महू में समारोह को संबोधित किया

राष्ट्रपति भवन : 14.04.2018

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द ने बाबा साहेब डॉ. बी.आर. आम्बेडकर की 127वीं जयंती के अवसर पर आज (14 अप्रैल, 2018) महू (मध्य प्रदेश) में एक समारोह को संबोधित किया। इससे पहले उन्होंने महू में डॉ. आम्बेडकर के स्मारक पर प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। ऐसा करके, राष्ट्रपति कोविन्द डॉ. आम्बेडकर की जयंती पर उनके जन्म स्थान (महू) पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले भारत के पहले राष्ट्रपति बन गए।

जन समूह को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर के मार्गदर्शन में निर्मित भारत के संविधान का महानतम योगदान सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि से हटकर सभी भारतीयों को समान नागरिक बनाने का है। इस मौलिक अधिकार से सुनिश्चित हुआ कि प्रत्येक भारतीय को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। इसके समानांतर, संविधान ने सार्वभौमिक मताधिकार की शुरूआत की और सामाजिक पृष्ठभूमि या आर्थिक हैसियत से हटकरप्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार प्रदान किया।

राष्ट्रपति कोविन्द ने कहा कि इन दोनों अधिकारों का हमारे समाज के गरीब, पारंपरिक रूप से पिछड़े और कमजोर वर्गों के लिए विशेष महत्व है। डॉ. आम्बेडकर द्वारा रेखांकित शिक्षा के महत्व के साथ-साथ, ये अधिकार हमारे संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त अन्य सभी अधिकारों के समुचित प्रयोग के लिए महत्वपूर्ण हैं । हमारा देश लोकतांत्रिक परंपराओं से संचालित होता है-चुनाव आयोजित किए जाते हैं, सरकारें बनती हैं और नागरिकों के भविष्य को आगे बढ़ाया जाता है। लोगों में, चुनौतियों और अवसरों के प्रति तथा अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को बुद्धिमत्तापूर्वक प्रयोग करने के प्रति जागरूकता होनी जरूरी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि एक बेहतर और न्यायोचित समाज के निर्माण की दिशा में प्रयास करते हुए डॉ. आम्बेडकर ने अहिंसा और सार्वजनिक जीवन में सहृदयता के मूल्यों पर बल दिया। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए संघर्ष किया परन्तु उनका पथ संवाद के माध्यम से सहमति पर जोर देते हुए, हमेशा अहिंसक बना रहा। वह मानते थे कि यह देश हमारा है, हम सभी के लिए और समाज के निर्बल वर्गों को न्याय दिलाने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, वह सामाजिक सौहार्द पर चलकर प्राप्त किया जा सकता है। संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में, डॉ. आम्बेडकर ने कहा था, अब जबकि हमारे पास विरोध व्यक्त करने के संवैधानिक तरीके मौजूद हैं, हमें व्यवधानकारी तौर-तरीकों से बचना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान हमारे लिए एक पवित्र ग्रंथ है। यह पारंपरिक रूप से पिछड़े और उपेक्षित तबकों को देश के सर्वोच्च पदों की आकांक्षा करने और उन तक पहुंचने की ताकत प्रदान करता है। यह डॉ. आम्बेडकर के प्रयासों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है कि आज ऐसे वर्गों के लोग एक आधुनिक और बेहतर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर इस बात पर अक्सर बल दिया करते थे कि भारतीय होना ही उनकी पहली, दूसरी और अंतिम पहचान है। आज प्रत्येक नागरिक को इस भावना को आत्मसात करने की जरूरत है। समानता और भाईचारे से सौहार्द पैदा होता है। इसलिए, सभी नागरिकों, विशेषकर युवाओं को, भाईचारे के उस पथ का अनुसरण करना चाहिए जो डॉ. अम्बेडकर ने हमें दिखाया था।

यह विज्ञप्ति 1700 बजे जारी की गई