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भारत के राष्ट्रपति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के 94वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित किया

राष्ट्रपति भवन : 18.11.2017

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (18 नवम्बर, 2017) दिल्ली विश्वविद्यालय के 94वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में भाग लिया और उसे संबोधित किया।

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय अनेक प्रकार से भारत का विश्वविद्यालय है। हमारे देश का हर एक राज्य और प्रांत यहां प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक वर्ष हजारों जिज्ञासु युवा बालक व बालिकाएं दिल्ली की यात्रा करते हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय या इससे संबंधित कॉलेजों में आवेदन करते हैं। यह विश्वविद्यालय पूर्वोत्तर के बहुत से युवा विद्यार्थियों के लिए बड़ा आकर्षण है। वे विश्वविद्यालय के कैम्पस और दिल्ली शहर की समृद्धि और जीवंतता को बढ़ाते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि हम ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं जहां कृत्रिम बुद्धि हमारे समाज के कार्यों बल्कि विचारों को भी बदल रही है। हम संज्ञानात्मक मशीनों वाले समाज के किनारे पर खड़े हैं। इसलिए हमारे सम्मुख बहुत सारी चुनौतियां और हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे हमारे अग्रणी संस्थानों को भी स्वयं को ढालने की आवश्यकता होगी। इसे शैक्षिक विषयवस्तु और उपलब्धता तंत्र दोनों में नवान्वेषण करना होगा। क्षेत्रों के बीच पारंपरिक बाधाएं, जिन्हें कभी अभेद्य माना जाता था, अब टूट रही हैं। यदि हमें अगले 25 या 30 वर्षों की आवश्यकताओं को पूरा करना है तो हमें नए पाठ्यक्रम और कार्यक्रम बनाने होंगे। इनमें से कुछ के लिए एक विधात्मक या अंतर विधात्मक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

राष्ट्रपति ने कहा कि व्यक्तिगत कक्षाओं की क्षमता पूरी तरह सीमित है। हमें यह खोजना होगा कि हम किस प्रकार विद्वता और शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर सकते हैं। विश्व के अधिकांश विश्वविद्यालयों की तरह दिल्ली विश्वविद्यालय ने व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम आरंभ करने के लिए कदम उठाए हैं। हमारे देश में ब्राडबैंड की मौजूदगी के बढ़ने के कारण, राष्ट्रपति भावी वर्षों में व्यापक मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम मंच में बहुत बड़ी उम्मीदें देखते हैं। इसमें ज्ञान के प्रचार-प्रसार में उत्साहवर्धक संभावना है।

राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा के अनेक उद्देश्य हैं। यह विद्यार्थियों को नौकरी के बाजार के लिए तैयार करती है। परंतु यह उच्च शिक्षा का एक ही उद्देश्य है। अंततः विश्वविद्यालय वास्तव में तभी सार्थक बन सकते हैं जब वे शिक्षण कार्य तथा ज्ञान के अन्वेषण को बढ़ावा दें। अपारंपरिक नवान्वेषण वास्तविक रूप से विश्वस्तरीय उच्च शिक्षा प्रणाली और संस्थान की परीक्षा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे विश्वविद्यालयों की इन विभिन्न जरूरतों के बीच सही संतुलन ढूंढना अत्यावश्यक है। तत्काल जीत का अपना महत्व है परंतु विश्वविद्यालयों को एक ज्ञानसंपन्न समाज के निर्माण के दीर्घकालिक लक्ष्य से अपनी नजर नहीं हटानी चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि कॉलेज के प्रधानाचार्यों और वरिष्ठ शिक्षकों के अनेक पद खाली हैं। उन्हें विश्वास है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और कॉलेज प्रबंधन शीघ्र इन पदों को भरने के लिए सभी कदम उठा रही है।

यह विज्ञप्ति 1400 बजे जारी की गई