भारत के राष्ट्रपति ने पुरी में गौड़ीय मठ और मिशन के संस्थापक आचार्य, श्रीमद् भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद के 150वें जन्म दिवस के तीन वर्ष तक चलने वाले समारोहों की श्रृंखला का उद्घाटन किया
राष्ट्रपति भवन : 20.02.2022
भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने कहा कि हमारे देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में विविध परम्पराएं और धार्मिक प्रणालियाँ प्रचलित हैं। परन्तु इन आस्थाओं के पीछे एक ही सोच निहित है, और वह है - ईश्वर भक्ति के साथ-साथ पूरी मानवता को एक परिवार समझते हुए सबके कल्याण के लिए कार्य करना। वे आज (20 फरवरी, 2022) ओडिशा के पुरी में गौड़ीय मठ और मिशन के संस्थापक श्रीमद् भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की 150वीं जयंती के अवसर पर तीन वर्ष तक चलने वाले समारोहों की श्रृंखला के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन कर रहे थे।
राष्ट्रपति ने कहा कि वह परमशक्ति अपने सभी रूपों में पूजनीय है। परन्तु, भारत में भक्ति-भाव से ईश्वर को पूजने की परंपरा बहुत महत्वपूर्ण रही है। हमारी यह भारत भूमि धन्य है जहां अनेक महान विभूतियों ने लोगों को निस्वार्थ उपासना का मार्ग दिखाया है। ऐसी महान विभूतियों में भी चैतन्य महाप्रभु को विशेष दर्जा प्राप्त है। उनकी विलक्षण भक्ति से प्रेरित होकर ही बड़ी संख्या में लोगों ने भक्ति का मार्ग चुना।
राष्ट्रपति ने कहा कि श्री चैतन्य महाप्रभु कहा करते थे कि मनुष्य को चाहिए कि अपने को तिनके से भी छोटा समझते हुए विनीत भाव से भगवत नाम का स्मरणकरे। उसे वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु होना चाहिए, मिथ्या प्रतिष्ठा की भावना से रहित होना चाहिए और अन्यलोगों को सम्मान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। मनुष्य में यह भाव होना चाहिए कि ईश्वर सदैव कीर्तनीय हैं अर्थात व्यक्ति को सदैव ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह भावना भक्ति मार्ग के सभी अनुयायियों में मिलती है। राष्ट्रपति ने कहा कि श्री चैतन्य महाप्रभु का ईश्वर के प्रति निरंतर प्रेम-भाव तथा समाज को समानता के धागे से जोड़ने का उनका अभियान उन्हें भारतीय संस्कृति और इतिहास में अद्वितीय प्रतिष्ठा प्रदान करता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भक्ति-मार्ग के संतों की यह विशेषता उस समय के प्रचलित धर्म, जाति और लिंग भेद तथा धार्मिक कर्म कांडों से परे थी। अतः इससे हर वर्ग के लोगों ने प्रेरणा तो ली ही, इस मार्ग में शरणागत भी हुए। इसी प्रकार गुरु नानक ने भक्ति-मार्ग पर चलते हुए एक समता मूलक समाज के निर्माण हेतु प्रयास किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की भक्ति-मार्ग की विशेषता मात्र आध्यात्मिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु मानवता की सेवा को साकार करने वाली हर व्यक्ति की जीवन-शैली में भी देखने को मिलती है। सेवा-भाव को हमारी संस्कृति में सर्वोपरि स्थान दिया गया है। हमारे डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य-कर्मियों ने भी कोविड महामारी के दौरान इस सेवा-भाव का प्रदर्शन किया। कोरोना वायरस से वे लोग संक्रमित भी हुए लेकिन उतनी विषम परिस्थितियों में भी, उन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और त्याग व साहस के साथ लोगों के उपचार में जुटे रहे। हमारे अनेक कोरोना योद्धाओं ने अपनी जान भी गंवाई परन्तु उनके सहकर्मियों का समर्पण अटल बना रहा। पूरा देश ऐसे योद्धाओं का सदा ऋणी रहेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि श्री चैतन्य महाप्रभु के अतिरिक्त भक्ति आन्दोलन की अन्य महान विभूतियों ने हमारी सांस्कृतिक विविधता में एकता को शक्ति प्रदान की। भक्ति समुदाय के संत अपनी शिक्षाओं में एक-दूसरे का विरोध नहीं करते थे, अपितु प्रायः एक-दूसरे की कृतियों से प्रेरित होते थे। स्वामी विवेकानंद ने 1893 में अपने भाषण में विश्व समुदाय के समक्ष भारत के आध्यात्मिक संदेश को प्रस्तुत करते हुए कहा कि जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां अंततः समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है, ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगें लेकिन अंत में सब ईश्वर तक ही पहुँचते हैं। आध्यात्मिक एकता का भारत का यह सिद्धांत रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद द्वारा प्रसारित किया गया था जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी अपनाया था।
राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि गौड़ीय मिशन मानव कल्याण के अपने उद्देश्य को सर्वोपरि रखते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु की वाणी को विश्वभर में प्रसारित करने के अपने संकल्प में सफल होगा।