भारत के राष्ट्रपति ने ‘आदि शंकराचार्य: हिन्दुइज्म्स’ ग्रेटेस्ट थिंकर’ पुस्तक की प्रथम प्रति ग्रहण की
राष्ट्रपति भवन : 21.04.2018
भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (21 अप्रैल, 2018) राष्ट्रपति भवन में लेखक, श्री पवन वर्मा से ‘आदि शंकराचार्य: हिन्दुइज्म्स’ ग्रेटेस्ट थिंकर’ पुस्तक की प्रथम प्रति ग्रहण की। इस अवसर पर उपस्थित गणमान्यों में डॉ. मुरली मनोहर जोशी और श्री डी.पी. त्रिपाठी शामिल थे।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि 1200 वर्ष पहले केरल में जन्मे आदि शंकराचार्य की छाप अभी भी सम-सामयिक भारत पर और वास्तव में हमारे देश के सभी हिस्सों पर स्पष्ट रूप से देखी जाती है। हमारे लम्बे और समृद्ध इतिहास की सबसे अधिक प्रभावी विभूतियों में वे शामिल रहे हैं। वह आध्यात्मिक पुरोधा, वेदांतिक दार्शनिक, सन्यासी, विद्वान और शोधकर्ता थे। उनका योगदान केवल धार्मिक या आध्यात्मिक क्षेत्र में ही नहीं है बल्कि वे दैनिक जीवन में भी मार्शदर्शक बने हुए हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि आधुनिक प्रौद्योगिकी ब्रह्मांड के हमारे ज्ञान में विस्तार कर रही है परंतु हमारी प्राचीन प्रज्ञा हमें वर्तमान अधुनातन अन्वेषणों और आविष्कारों के साथ हमारे अस्तित्व को समन्वित करने में मदद करती है। इसीलिए 21वीं शताब्दी का भारत उपनिषदों और इंटरनेट दोनों का संगम है। दोनों ही भारतीय अस्मिता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने इसे सहजभाव से समझा। आज से बहुत पहले 8वीं शताब्दी में ही, उन्होंने अपने युग की वास्तविकताओं के साथ भारत की प्राचीनतम दार्शनिक परंपराओं के गौरव को जोड़ा। उन्होंने उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में चार पीठों की स्थापना की। ये पीठ अलग-अलग थीं और हैं और साथ ही एकरूप थीं और आज ही हैं। यही भारत की विशेषता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि इन पीठों की यात्रा को केवल तीर्थयात्रा के रूप में नहीं देखना चाहिए। यह वास्तव में भारतीय सभ्यता और हमारे विविध समाज के सीमान्तों की सांस्कृतिक खोज है।
यह विज्ञप्ति 1840 बजे जारी की गई।