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भारत के राष्ट्रपति ने ‘द हिन्दू’ की चौथी वार्षिक विचार गोष्ठी - 'द हडल' को संबोधित किया; उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की संकल्पना सुविज्ञ नागरिकों – अर्थात निष्पक्ष पत्रकारिता के बिना अधूरी है

राष्ट्रपति भवन : 22.02.2020

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (22 फरवरी, 2020) बेंगलुरु में ‘द हिन्दू’ की चौथी वार्षिक विचार संगोष्ठी - 'द हडल' को संबोधित किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि ‘द हिन्दू’ द्वारा आयोजित ‘द हडल’ में भाग लेकर उन्हें प्रसन्नता हुई, यह एक ऐसा नाम है जो न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है, बल्कि सभ्यतागत संदर्भ में विश्व का अद्वितीय इतिहास भी समेटे हुए है। उन्होंने कहा कि ‘द हिन्दू’ प्रकाशन समूह ने अपनी जिम्मेदार और नैतिकतापूर्ण पत्रकारिता के माध्यम से इस महान देश के सार-तत्व को ग्रहण करने के अथक प्रयास किए हैं। उन्होंने पत्रकारिता के पाँच मूल सिद्धांतों - सत्य-उजागर करना, स्वतंत्रता और निष्पक्षता, न्याय, मानवीयता तथा सामाजिक भलाई में योगदान के प्रति उनके आग्रह की सराहना की।

राष्ट्रपति ने कहा कि सच्चाई तक पहुँचने के लिए वाद-विवाद और चर्चा करने की परम्परा भारत के सामाजिक मानस में अनन्त काल से रची बसी हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सत्य की धारणा परिस्थितियों के अनुसार संस्कारित होती चलती है। सत्य को छिपाने वाली स्थितियों को, बहस, चर्चा और वैज्ञानिक प्रवृत्ति के माध्यम से विचारों के प्रतिवाद द्वारा प्रभावी रूप से दूर किया जा सकता है। पूर्वाग्रह और हिंसा से सत्य की खोज का वातावरण बिगड़ जाता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सत्य कभी-कभी, हठधर्मिता और व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से विकृत हो जाता है। गांधीजी के 150वीं जयंती वर्ष में, आइए हम इस प्रश्न पर विचार करें: क्या स्वयं सत्य को ही एक विचारधारा के रूप में आगे बढ़ाना उचित नहीं होगा? गांधीजी ने हमें सत्य की खोज में निरंतर आगे बढ़ने का एक ऐसा रास्ता दिखाया है, जिसमें अंततः ब्रह्मांड के हर सकारात्मक गुण को समाहित कर लेने की संभावना है।

राष्ट्रपति ने कहा कि इंटरनेट और सोशल मीडिया ने पत्रकारिता का लोकतंत्रीकरण और लोकतंत्र को पुनर्जीवित किया है। यह प्रक्रिया चल रही है, लेकिन अपने वर्तमान चरण में, इसने कई चिंताओं को भी जन्म दिया है। नया मीडिया तेज और लोकप्रिय है तथा इसमें लोगों के पास यह चुनने का विकल्प है कि वे क्या देखना, सुनना या पढ़ना चाहते हैं। लेकिन किसी समाचार रिपोर्ट को अधिप्रमाणित करने का कौशल, इन वर्षों में केवल परम्परागत मीडिया ने विकसित कर पाया है, और यह एक खर्चीला कार्य है। राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि हम शीघ्र ही इस दुविधा से मुक्त होकर आदर्श स्थिति पर पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि इस बीच, पारंपरिक मीडिया को समाज में अपनी भूमिका पर आत्मनिरीक्षण करना होगा और पाठकों का पूर्ण विश्वास पुनः अर्जित करने के तरीके खोजने होंगे। लोकतंत्र की संकल्पना सुविज्ञ नागरिकों – अर्थात निष्पक्ष पत्रकारिता के बिना अधूरी है।