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मशोबरा मंथन-राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द

राष्ट्रपति भवन : 24.05.2018

1. आज सुबह जल्दी उठकर मैं अपने पोते और पोती के साथ सुबह की सैर के लिए 5:00 बजे शिमला जल संग्रहण क्षेत्र तथा वन्‍यजीवअभयारण्य के लिए निकल पड़ा। मैं पिछले 5 दिन से मशोबरा में ठहरा हुआ हूं और यह अभयारण्य मशोबरा से बाहर निकलते ही सामने है। शिमला पक्षी विहार शहर से बहुत नजदीक है लेकिन शहर के शोरगुल से बहुत दूरभी है। इसकी परिकल्‍पना एक वन के रूप में की गई थी। सोचा गया था कि यहां पर फूल-पौधे होंगे और शिमला के लिए एक बड़ा जल- स्रोत तैयार हो सकेगा।

2. यहां आकर मैं प्रकृति की शोभा देखकर मंत्रमुग्ध रह गया। मैंने यहां छिप कर चिड़ियों को देखा, उनकी जादुई आवाज सुनी, छोटे-छोटे लुभावने जीव-जन्‍तुओं की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली देखी। सीधे तनकर खड़े देवदार और ओक के वृक्ष देखे,छोटे बच्चों की खिल-खिलाहट सुनी और महसूस किया कि मशोबरा का अपना अलग ही स्वर्ग है। मैंने प्रकृति को उसके भव्‍यतम रूप में देखा। मैंने यह भी अनुभव किया कि यहां प्रकृति किस तरह से मनुष्य की चिंता करती है, यह वन किस तरह से शिमला और इसकी जनता का पोषण करता है। यह वन बिल्कुल उसी तरह हमारी देख-भाल करता है जैसे कोई मां अपनी संतान कीभरण-पोषण करती है। प्रकृति हमें प्यार करती है और हम उसे प्यार करते हैं।

3. कभी कभी ऐसा भी होता है कि किसी साधारण सी यात्रा में भी कोई बड़ा विचार पनप जाता है। यहां आकर अनेकों विचार मेरे मन में आए। मैंने सोचा कि यह धरती मां कितनी अच्‍छी तरह से हमारा पोषण करती है। लेकिन हम इसके पोषण के लिए क्या करते हैं? हम इसके लिए क्‍या कर सकते हैं? अगर हमें यह सुनिश्चित करना है कि यह प्रकृति एक संसाधन के रूप में, स्रोत के रूप में, मित्र के रुप में हमारी आने वाली पीढ़ियों को उपलब्ध रहे, तो इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? क्या आने वाली पीढ़ियों के प्रति, अपनी संतति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हैया नहीं?

4. आगामी 2 अक्टूबर के दिन हमसब महात्मा गांधी जी की 150वीं जयंती मनाने जा रहे हैं।यह एक राष्ट्रीय पर्व है।2022 में हमारी आजादी की 75वीं वर्षगांठ भी एक राष्ट्रीय पर्वके रूप में मनाई जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन महत्वपूर्ण अवसरों पर देश में अनेक सार्थकयोजनाएँ आरंभकी जाएंगी। 2047 में जब भारत की आजादी के 100 वर्ष पूरे होंगे, उस समय का भारत कैसा होगा?जब 2069में हम गांधी जी की 200वीं जयंती मना रहे होंगे,उस समय का भारत कैसा होगा?

5. हमारे पास आज इन प्रश्नों के बहुत स्पष्ट उत्तर नहीं है। लेकिन सामाजिक, बौद्धिक,नैतिक और प्रकृति एवं पर्यावरण के क्षेत्रों में जो कुछ भी निवेश आज की पीढ़ी कर रही है, उसी पर हमारे इन सवालों का जवाबनिर्भरहै। हम लोग ही यह तय करेंगे कि अगले25 से 50वर्षों में इस भारत का निर्माण करने वाले लोगों के पास कैसी ताकत होगी, कैसी क्षमता होगी। हम लोग ही यह तय करेंगे कि हजारों हजार वर्षों से जो नदियां, जो पहाड़ और जो जंगल हमें इस प्रकृति ने अपनी पूरी भव्‍यता में उपलब्ध कराएं हैं, वही नदियां, वही पहाड़ और जंगल क्या हमारी आने वाली पीढ़ियों को इसी भव्य रूप में उपलब्ध रह पाएंगे?

6. हमने बहुत तरक्की की है। अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं। लेकिन अभी बहुत कुछ ऐसा है जो प्राप्‍त किया जाना बाकी है, किया जाना बाकी है। जैसे-जैसे कोई समाज विकसित होता है वैसे-वैसे उसके लक्ष्य भी सटीक और संक्षिप्त होते जाते हैं, निश्चित होते जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में यह गौरव का भाव मौजूद है कि यहाँ के स्कूलों में बेटे और बेटियों की शिक्षा के लिए, उनको स्कूल तक पहुंचाने के संदर्भ में महत्वपूर्ण प्रगति कीगयीहै। दूसरे राज्‍य भी हैं जिन्होंने स्कूलों में बच्चों के दाखिले के मामले में सराहनीय प्रगति की है। लेकिन हमारा अगला लक्ष्य स्कूलों के नामांकन से आगे शिक्षा के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों पर होना चाहिए।

7. हमारे बच्चे कक्षाओं तक पहुंच तो रहे हैं लेकिन वहां जाकर वे कितना कुछ सीख पा रहे हैं?कितना ज्ञान अर्जित कर पा रहे हैं? आने वाले चौथे औद्योगिक युग के लिए हम उन्हें किस प्रकार तैयार कर पा रहे हैं? कितना तैयार कर पा रहे हैं? ये सवाल ऐसे हैं जो हर मां बाप को परेशान कर रहे हैं। इसी प्रकार से अगर सोचें तो जिस प्रकार से स्कूलों का प्रसार स्थान स्थान पर हो गया है,क्या हैल्‍थकेयर भी इसी प्रकार से आधारभूत सुविधा के रूप में अपनी जनता को उपलब्ध नहीं कराई जानी चाहिए?ये मुद्दे समाधान चाहते हैं,हर भारतीय के लिए हमें इन मुद्दों से जूझना होगा और ऐसा करते हुए क्षेत्र के आधार पर,धर्म के आधार पर, किसी प्रकार के भेदभाव को पास फटकने नहीं देना है। ये सुविधाएं सब को देनी होंगी चाहे हमारे किसान भाई बहिन हों या फिर औद्योगिक नगर हों। सब को हैल्‍थकेयर उपलब्‍ध करानी होगी।

8. यहां पर भी प्रकृति हमें एक संदेश देती है। जिसप्राकृतिक क्षेत्र में मैं आज गया था, वहां एक दूसरे के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता। यहां पर जल सभी के लिए उपलब्ध है,यहां के पेड़ सभी को छाया देते हैं, यहां की साफ हवा सभी को पोषण देती है,भाईचारा और करुणा तो मानो प्रकृति के स्वभाव में है। जो कुछ भी हम एक समाज के रूप में करते हैं, वह सब करते हुए हमें उसी करुणा को, भाईचारे को,मानवीयता को और परस्पर गरिमा को, सम्मान के भाव को अपनी आशाओं में और भारत के प्रति अपने सपनों में शामिल करना होगा।

9. इस सब के मूल में मेल मिलाप की भावना है, सब को एक सूत्र में पिरोने वाली भावना है। प्रकृति हमें एक दूसरे पर निर्भरता सिखाती है, मधुमक्खी को पोषण फूल से मिलता है, जल सभी जीवों की प्यास बुझाता है,और वृक्ष पक्षियों और जीव-जंतुओं का स्वागत बांह पसार कर करते हैं। मेलजोल में एकात्मकता में एक प्रकार का संगीत महसूस होता है। ऐसा लगता है कि जैसेकोई ईश्‍वरीय बंधन है,इन सबके बीच। जीवधारी चाहे छोटा हो या बड़ा, शांत हो या शोर मचाने वाला,सभी को मिलजुल कर साथ-साथ पुष्पित-पल्लवित होने देती है हमारी प्रकृति। आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती है। मानव जाति को भी प्रकृति से यह गुण सीखना चाहिए।

10.भारत को प्रकृति से अनुपम वरदान मिला है। इसलिए आइए हम सब मिलकर उस एकात्मकता को और हर एक व्यक्ति को अपनी यह आकांक्षा पूरी करने, अपने सपनों और अपने भाग्य के लिखे को पूरा कर पाने में सहायक बनें। इसे हमें एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप देना होगा। भारत का ऋण है हमारे ऊपर। हमें अपने वर्तमान का यह ऋण चुकाना है। आइए धरती मां का, प्रकृति का यह ऋण हम उतारकर जाएं।

समाप्त