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भारत के राष्ट्रपति ने छठे ‘भारत जल सप्ताह-2019’ का उद्घाटन किया

राष्ट्रपति भवन : 24.09.2019

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (24 सितंबर, 2019) नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में छठे ‘भारत जल सप्ताह-2019’ का उद्घाटन किया। ‘भारत जल सप्ताह-2019’ का विषय ‘जल सहयोग - 21वीं सदी की चुनौतियों से मुकाबला’ है और इसका आयोजन जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि यदि हमें जल से संबंधित चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करना है तो भिन्न-भिन्न हितधारकों के बीच सहयोग होना महत्वपूर्ण है। जल से सम्बंधित मुद्दे इतने बहुआयामी और जटिल हैं कि केवल सरकार द्वारा या किसी एक देश के द्वारा इनका समाधान संभव नहीं है। जल के मामले में सम्पूर्ण मानवजाति के सतत् भविष्य के निर्माण में सहायता के लिए सभी देशों और उनके जल समुदायों को साथ मिलकर काम करना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि हम प्रायः अपने "कार्बन फुटप्रिंट" को कम करने की बात करते हैं। अब समय आ गया है जब हमें अपने "वाटर फुटप्रिंट" को कम करने की बात करनी चाहिए। हमारे किसानों, कॉरपोरेट नेताओं और सरकारी निकायों को भिन्न-भिन्न फसलों और उद्योगों के "वाटर-फुटप्रिंट" पर सक्रिय रूप से विचार करने की आवश्यकता है। हमें ऐसी कृषि और औद्योगिक प्रथाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जिनके ‘वाटर फुटप्रिंट’ कम से कम हों।

राष्ट्रपति ने कहा कि भूजल संसाधनों का प्रबंधन और मानचित्रण भी जल प्रशासन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। बोरिंग मशीनों के व्यापक उपयोग के कारण भू-जल का अनियंत्रित और अतिशय दोहन हुआ है। हमें अपने भू-जल का मूल्य पहचानना होगा और इस ओर अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारा बहुमूल्य वर्षा जल बर्बाद न हो। हमें अपने मौजूदा जलाशयों, बांधों, अन्य जल निकायों का उपयोग करके और अपने घरों व आस-पड़ोस में जल संचयन उपायों को अपनाकर वर्षा जल को संग्रहीत और एकत्र करने की आवश्यकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि पानी से संबंधित भिन्न-भिन्न मुद्दों की समस्या का समाधान ढूंढ़ते हुए भी, हमें जल संरक्षण के अपने पुराने आजमाए हुए तौर-तरीकों का भी ध्यान रखना चाहिए। आधुनिक प्रौद्योगिकी और तकनीकों के साथ अपने पारंपरिक ज्ञान के सम्मिश्रण से हमें जल के सन्दर्भ में सुरक्षित राष्ट्र बनने में सहायता मिल सकती है। उन्होंने सभी हितधारकों का आह्वान किया कि सभी राज्यों, सार्वजनिक और निजी संगठनों तथा लोगों के बीच मजबूत सहयोग कायम रखते हुए जल से संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करने का संकल्प लें । उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों में, स्वच्छ भारत अभियान में समाज के सभी वर्गों के लोगों के साथ-साथ संगठनों की भी भागीदारी देखने को मिली। इन लोगों और संगठनों ने यह जिम्मेदारी संभाली और इसे अपना व्यक्तिगत मिशन बनाया। हम सभी को ‘जल शक्ति अभियान’ के प्रति भी वैसा ही समर्पण और प्रतिबद्धता दिखाने की जरूरत है।

राष्ट्रपति ने कहा कि ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ में गंगा का निरंतर और स्वच्छ प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए कई परियोजनाओं पर काम करना होगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गंगा और हमारी अन्य नदियों को स्वच्छ बनाना, केवल सरकार का मिशन नहीं हो सकता। यह हमारा सामूहिक प्रयास और हमारा सामूहिक संकल्प बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि नागरिक होने के नाते हमें इस अभियान में योगदान देना चाहिए। उदाहरण के लिए, हमने हाल ही में गणेश चतुर्थी मनाई है और कुछ ही दिनों बाद नवरात्रि पर्व आने वाला है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि नदियों में विसर्जित की जाने वाली देवताओं की मूर्तियाँ पर्यावरण अनुकूल सामग्री से बनी हों। इससे नदियों को स्वच्छ रखने में सहायता मिलेगी और जलीय जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।