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भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय विधि दिवस सम्मेलन का उद्घाटन किया

राष्ट्रपति भवन : 25.11.2017

भारत के राष्ट्रपति, श्री रामनाथ कोविन्‍द ने आज (25 नवंबर, 2017) नई दिल्ली में भारत के विधि आयोग और नीति आयोग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित राष्ट्रीय विधि दिवस सम्मेलन का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि विधि और संविधान का संबंध सहजीवी है। हमारा संविधान हमारे कानूनों का प्रमुख स्रोत तो है ही, वह विधि के धर्म में सहज विश्वास करने वाले लोकाचार और जीवन-मूल्य व्यवस्था का संरक्षक भी है।राष्ट्रीय विधि दिवस पर, हम संविधान सभा के उन सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने हमें यह ऊर्जावान और प्रेरक दस्तावेज प्रदान किया जिसे हम ‘संविधान’ कहते हैं। हम विशेष रूप से ‘प्रारूप समिति’ के अध्यक्ष और एक मायने में हमारे संविधान के प्रमुख निर्माता डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के प्रति समादर व्यक्त करते हैं।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि आज का सार्वजनिक जीवन, एक शीशे का घर है। पारदर्शिता और संवीक्षा की मांग निरंतर की जा रही है। हमारी विधिक बिरादरी को लोकतांत्रिक व्यवस्था के सबसे बड़े हितधारक यानी-जनता की इन जायज मांगों पर ध्यान देने की जरूरत है। राज्य के तीनों अंगों-न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका पर सदाचार की मिसाल बनने का दायित्व है। उन्हें एक दूसरे के सुपरिभाषित कार्य क्षेत्रों का उल्लंघन न करने की सावधानी बरतनी होगी और कोई ऐसा अवसर नहीं देना चाहिए जहां किसी कदम को उल्लंघन समझ लिया जाए जब कि ऐसे उल्लंघन का कोई इरादा हो ही नहीं। ऐसा अनेक परिस्थितियों में ऐसा हो सकता है। उदाहरण के लिए, जब किसी सुविचारित निर्णय की पर्याप्त जानकारी और विवेचना को दर किनार करते हुए असंगत टिप्पणियॉं और इतरोक्तियां सार्वजनिक वाद-विवाद पर हावी हो जाती हैं।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि हमारे अधीनस्थ न्यायालयों, उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के 17,000 न्यायाधीशों में से लगभग 4,700 अर्थात् मोटे तौर पर चार में से एक, महिला न्यायाधीश हैं। इसके अलावा, खास तौर से उच्च न्यायपालिका में अन्य पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों जैसे पारंपरिक रूप से कमजोर तबकों का प्रतिनिधित्व अस्वीकार्य रूप से कम है। किसी भी रूप में गुणवत्ता से समझौता किए बिना, हमें इस स्थिति से निपटने के दीर्घकालिक उपाय करने होंगे। हमारे अन्य सार्वजनिक संस्थानों की भांति, हमारी न्यायपालिका को भी हमारे देश की विविधता और हमारे समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्‍व करने की समझदारी दिखानी होगी।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि जिला और सत्र न्यायाधीशों को तैयार करने और उनके कौशल को बढ़ाने का पावन कर्तव्य उच्चतर न्यायपालिका का है। इस प्रकार से, उनमें से अधिक से अधिक न्यायाधीश तरक्की करके उच्च न्यायालय तक पहुंच सकते हैं। इससे हमारी निचली अदालतों और उनके फैसलों के प्रति भरोसा बढ़ेगा और हमारे उच्च न्यायालयों का बोझ हल्का होगा।

न्‍याय पहुंच प्रणाली की सुदृढ़ता के मुद्दे पर बोलते हुए, राष्‍ट्रपति ने जोर देकर कहा कि तीव्र न्याय अधिक कुशलता के साथ सुनिश्चित करना जरूरी है।उन्‍होंने कहा कि हम अपने न्यायालयों और उनकी स्वतंत्रता पर गर्व करते हैं परन्तु विरोधाभास यह है कि गरीब लोग अकसर लम्बी प्रक्रिया और खर्च की चिन्ता में कानूनी लड़ाई से पीछे हट जाते हैं। कभी-कभी धनी लोग साधारणत: जिन मुद्दों का समाधान होता नहीं देखना चाहते हैं, वे इन मुद्दों के समाधान में देरी करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया और इसकी जटिलताओं का इस्तेमाल करते हैं। इस विरोधाभास पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि यह समय तीव्र संचार और प्रौद्योगिकी का है। हमें न्याय संदाय प्रक्रिया को तेज करने के लिए इन साधनों का प्रयोग करना चाहिए।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि भारत के बारे में यह बात प्रसिद्ध हो गई है कि यहां की विधिक प्रणाली महंगी है। कुछ हद तक इसके लिए इसके लिए देरी का कारण जिम्मेवार है, परन्तु इसके पीछे प्रश्न यह भी है कि न्याय के लिए फीस चुकाने की क्षमता कितने लोगों में है। कोई अपेक्षाकृत गरीब व्यक्ति वित्तीय या ऐसी ही अन्‍य परेशानियों के कारण निष्पक्ष सुनवाई के लिए न्याय का दरवाजा नहीं खटखटा सकता, यह बात हमारे संवैधानिक मूल्यों और हमारे गणतांत्रिक लोकाचार के विरुद्ध है। यह हमारी सामूहिक चेतना पर एक बोझ है। उन्‍होंने कहा कि मैं इसका जवाब ढूंढ़ने की जिम्मेदारी अपनी विधिक बिरादरी पर, हमारे वकीलों और अधिवक्ताओं और हमारे बार एसोसिएशनों पर डालता हूं।

राष्‍ट्रपति ने कहा कि पहुंच का संबंध कानूनों को सरल बनाने और अप्रचलित कानूनों को रद्द करने से भी है। इस क्षेत्र में विधि आयोग ने हमारे देश की प्रचुर सेवा की है। उन्‍होंने कहा कि सरकार ने लगभग 1800 कानूनों की पहचान की है जिन्हें विधि संहिताओं से निकाल बाहर करने की ज़रूरत है। पिछले तीन वर्षों में संसद ने लगभग 1200 अप्रचलित और अनावश्यक कानूनों को रद्द किया है। उन्‍होंने कहा कि इससे विधि संहिताओं का बोझ कम होगा और शासन में सरलता को बढ़ावा मिलेगा।

यह विज्ञप्ति 1150 बजे जारी की गई।