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भारत के राष्ट्रपति ने केवड़िया में 80वें 'अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन' का उद्घाटन किया

राष्ट्रपति भवन : 25.11.2020

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने केवड़िया, गुजरात में आज (25 नवंबर, 2020) ‘80वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन’ के उद्घाटन के अवसर पर कहा कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में, ‘वाद’ को ‘विवाद’ न बनने देने के लिए ‘संवाद’ का माध्‍यम ही, सबसे अच्‍छा माध्‍यम होता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में, सत्ता पक्ष के साथ-साथ प्रतिपक्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए इन दोनों में सामंजस्य, सहयोग एवं सार्थक विचार-विमर्श आवश्‍यक है।पीठासीन अधिकारियों का यह दायित्‍व है कि वे, सदन में, जन-प्रतिनिधियों को स्‍वस्‍थ बहस के लिए, उपयुक्त वातावरण उपलब्‍ध कराएं और शिष्‍ट संवाद तथा चर्चा को प्रोत्‍साहित करें।

राष्ट्रपति ने कहा कि निष्पक्षता और न्याय-भावना से काम करना, हमारी संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार है। सदन केअध्‍यक्ष का आसन, उनकी गरिमा और दायित्‍व - दोनों का प्रतीक होता है, जहां बैठकर वह, पूरी निष्‍पक्षता और न्‍याय-भावना से कार्य करते हैं। यह निष्‍पक्षता, सम‍दर्शिता और न्‍यायप्रियता का आसन है और पीठासीन अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि उनका व्यवहार भी, इन्हीं आदर्शों से प्रेरित होना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था, जनता के कल्याण का, सर्वाधिक प्रभावी माध्यम सिद्ध हुई है। इसलिए, संसद एवं विधान मंडल का सदस्य होना, गौरव की बात है। सभी सदस्यों को और पीठासीन अधिकारियों को, जनता की भलाई तथा देश की तरक्की के लिए, एक दूसरे की मर्यादा बनाए रखनी चाहिए।पीठासीन अधिकारियों की गरिमा का ध्यान रखने से, सांसदों और विधायकों का, अपना सम्मान भी बढ़ता है और लोगों के मन में, संसदीय लोकतंत्र के प्रति, आदर-भाव बना रहता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की संसद और विधानसभाएं, हमारी संसदीय व्यवस्था का आधार हैं। उन पर, देशवासियों की नियति के निर्धारण का, महत्‍वपूर्ण दायित्‍व है। पिछले कुछ दशकों में, आम जन-मानस की आशाओं, आकांक्षाओं और जागरूकता में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इसलिए संसद एवं विधानमंडलों की भूमिका व जिम्‍मेदारियां और भी बढ़ गई हैं। जन-प्रतिनिधियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे, लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सदैव निष्‍ठावान रहें। लोकतांत्रिक संस्‍थाओं और जन-प्रतिनिधियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती, जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की है।

इस वर्ष सम्मेलन में ‘सशक्त लोकतंत्र हेतु विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का आदर्श समन्वय’ विषय पर विचार-विमर्श किया जाएगा। इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति ने कहा राज्य के तीनों अंग – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका – परस्पर सामंजस्य से काम करती हैं और इस परम्परा की जड़ें भारत में मजबूत हो चुकी हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इन दो दिनों में आप सभी के विचार-मंथन से, जो निष्कर्ष प्राप्त होंगे, उनको अपनाने से, हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को और भी मजबूती मिलेगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था, अंतत: लोक-कल्याण, विशेष रूप से ग़रीबों, पिछड़ों एवं वंचितों के उत्थान और देश की प्रगति के परम ध्येय से संचालित होती है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि शासन के तीनों अंग मिलकर, इस ध्येय को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करते रहेंगे।