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भारत के राष्ट्रपति ने संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन किया; राष्ट्र के तीन स्तंभों स्वतंत्रता, समानता और भाइचारे के लिए आग्रह किया

राष्ट्रपति भवन : 26.11.2017

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (26 नवम्बर, 2017) नई दिल्ली में 26 नवम्बर, 1949 को हमारे संविधान के अंगीकरण की वर्षगांठ मनाने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान गतिहीन नहीं हैं बल्कि एक सजीव दस्तावेज है। संविधान सभा को यह जानकारी थी कि संविधान को नए सूत्रों में पिरोना होगा। एक गतिशील विश्व में, यह लोग और समग्र राष्ट्र की सेवा करने का सर्वोत्तम तरीका होगा। इसी प्रकार, वर्षों के दौरान, संसद द्वारा संविधान में बहुत से संशोधन किए गए हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान कोई अमूर्त आदर्श नहीं है, हमें हमारे देश की प्रत्येक गली, प्रत्येक गांव और प्रत्येक मोहल्ले में जनसाधारण के जीवन को सार्थक बनाना होगा। इसे किसी भी तरह से उनके दैनिक जीवन के साथ जोड़ना होगा और इसे अधिक सुविधाजनक बनाना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि संवैधानिक परियोजना का मूल केंद्र एक-दूसरे के बीच, संस्थानों के बीच, नागरिकों की अच्छाई तथा भावी पीढि़यों की प्रज्ञा में विश्वास था। विश्वास की यह भावना, संवैधानिक शासन में निहित है। जब सरकार नागरिकों पर अपने दस्तावेज स्वयं सत्यापित करने का विश्वास करती है तो यह संविधान की भावना के अनुरूप है। जब केंद्र सरकार राज्य सरकारों को वित्तीय शक्ति प्रदान करके और सहकारी संघवाद के मिशन को आगे बढ़ाकर उन पर विश्वास करती है तभी हम संविधान की भावना के साथ कार्य कर रहे होते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुभव किया था कि संविधान, चाहे कितना बढि़या लिखा गया हो और कितना बड़ा हो, अमल में लाए और मूल्यों का अनुकरण किए बिना उसका कोई अर्थ नहीं है। इसलिए हमने भावी पीढि़यों पर विश्वास जताया है। संविधान लोगों को उतना ही सशक्त बनाता है जितना लोग संविधान को सशक्त बनाते हैं। जब व्यक्ति और संस्थाएं पूछती हैं कि संविधान ने उनके लिए क्या किया है और इसने उनकी क्षमता को कैसे बढ़ाया है; उन्हें यह भी विचार करना चाहिए कि उन्होंने संविधान को कायम रखने के लिए क्या किया है? उन्होंने इसके मूल्यों के समर्थन के लिए क्या किया है? संविधान का अर्थ हम लोग हैं और ‘हम लोग संविधान’ हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान ने राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र का श्रेष्ठ ढांचा निर्मित किया है। यह श्रेष्ठ ढांचा स्वतंत्रता, समानता और भाइचारे के तीन सिद्धांतों या स्तंभों पर टिका हुआ है। राष्ट्र की तीन शाखाओं- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के संबंधों को खोजते हुए इनके जटिल और नाजुक संतुलन का ध्यान रखना जरूरी है। सभी एक समान हैं। उन्हें इसकी स्वतंत्रता के प्रति जागरूक होना चाहिए तथा उनकी स्वायत्ता की रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। तथापि उन्हें किसी भी दो भाषाओं के कार्यक्षेत्र में अनजाने में हस्तक्षेप करके शक्तियों के पृथक होने की व्यवस्था को भी नहीं बिगाड़ना चाहिए। तीनों शाखाओं के बीच संवाद में संयम और विवेक रखना चाहिए। इससे राष्ट्र की तीनों एक समान शाखाओं जिनका संविधान में एक निश्चित दायित्व है, के बीच समन्वय को बढ़ावा मिलेगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी प्रमुख निष्ठा हमारे संविधान के मूल्यों तथा हमारे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के फायदों को समाज के निचले पायदान तक ले जाने की होनी चाहिए। इसके लिए, हमें अधीनस्थ संस्थानों के स्तर को उठाने का निरंतर प्रयास करना चाहिए और उन्हें सभी क्षेत्रों की उच्च संस्थाओं के बराबर लाना चाहिए।

राष्ट्रपति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति श्री दीपक मिश्र से ‘द कॉन्सटीट्यूशन एट 67’ और ‘इंडियन ज्यूडिसियरीः एन्यूल रिपोर्ट 2016-17’ पुस्तकों की प्रथम प्रतियां प्राप्त कीं।

यह विज्ञप्ति 1400 बजे जारी की गई