भारत के राष्ट्रपति ने संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन किया; उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय की अवधारणा अब प्रदूषण और स्वास्थ्य जैसे आधुनिक नागरिक-सम्बद्ध मानदण्डों तक विस्तारित हो गई है
राष्ट्रपति भवन : 26.11.2018
भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने नई दिल्ली में आज (26 नवम्बर, 2018) हमारे संविधान का अंगीकरण 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकृत किये जाने की वर्षगांठ मनाने के लिए, उच्चतम न्यायलय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन कियाl
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान स्वतंत्र भारत का आधुनिक पावन ग्रंथ हैlयह हमारा ‘सुप्रीमा लेक्स’ है। फिर भी, यह अनुच्छेदों और उपखण्डों के संग्रह से कहीं अधिक हैlजैसे समाज के रूप में आज हमारा अस्तित्व है, और जैसा बेहतर समाज हम बनना चाहते हैं;उसके संदर्भ में हम भारतीयों के लिए एक प्रेरणा दायक और जीवंत दस्तावेज है।
राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान सभा में डॉ. बी. आर. अंबेडकर और उनके साथी निश्चित रूप से बड़े हृदय वाले और उदार दृष्टिकोण के थेl उन्होंने संविधान के संशोधन में लचीलेपन की अनुमति दी और विभिन्न विचार धाराओं के प्रति सामंजस्यवादी दृष्टिकोण अपनाया। इन सबसे ऊपर, उन्होंने स्वतंत्रता और आजादी, न्याय और भाई चारे, निष्पक्षता और समानता के सीमांतों के विस्तार के लिए भावी पीढ़ियों की समझदारी पर विश्वास जताया। उन्होंने भावी पीढ़ियों पर, न केवल संविधान के पाठ के संशोधन के बारे में अपितु परिवर्तनशील समय के लिए इसे रचनात्मक रूप से पुनः परिकल्पित और पुनः परिभाषित किए जाने के संबंध में भी भरोसा जताया।यदि हम इसी भावना को जारी रख सकें, तो संविधान अनन्त काल तक भारत का हित साधन करता रह सकेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान के वास्तविक संरक्षक अंतत: भारत के लोग ही हैं। उन्हीं में ही सार्वभौमिकता निहित है और उन्हीं के नाम पर ही संविधान अंगीकृत किया गया थाlसंविधान से नागरिकों का सशक्तिकरण होता है,किंतु नागरिक भी अपनी कथनी और करनी से इसे अधिक सार्थक बनाने के लिए इसका अनुपालन कर, इसका समर्थन कर, इसका संरक्षण कर और इसे संजो कर संविधान को सशक्त बनाते हैंlसंविधान किसी एक की जागीर नहीं है-बल्कि यह सभी की साझी पूंजी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान में संभवत: सबसे अधिक प्रेरणादायक शब्द है "न्याय”।"न्याय” एक अकेला शब्द हैl परन्तु,"न्याय”एक जटिल और मुक्तिकारी अभिव्यक्ति हैlऔर "न्याय” हमारे संविधान और राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का साधन और साध्य दोनों हैlन्याय को- समाज के विकास और इसकी बदलती धारणाओं, जीवन शैलियों और प्रौद्योगिकियों के एक वृहतर परिपेक्ष्य में भीदेखा जाना चाहिएl
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश के विविध इतिहास और हमारे अतीत में कभी-कभी दिखाई देने वाली असंतुलन तथा ऊंच नीच की व्यवस्था के बावजूद सामाजिक न्याय सदा हमारे राष्ट्र निर्माण की कसौटी रहा हैlसर्वाधिक आम तौर पर इसका तात्पर्य है किसामाजिक असंतुलन को समाप्त किया जाए तथा भिन्न-भिन्न समुदायों और समूहों के परस्पर विरोधी दावों और जरूरतों के बीच सामंजस्य पैदा किया जाए। सामाजिक न्याय का मतलब है- सभी को समान अवसर उपलब्ध कराना। न्याय की यह अवधारणा 1949 में भी मान्य थी और मोटे तौर पर आज भी प्रासंगिक है। फिर भी, 21वीं सदी में कुछ नई चुनौतियां सामने आई हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक न्याय की अवधारणा के मूल में समुत्थानशीलता की शक्ति है किंतु इस पर अब नए तरीकों से विचार किए जाने की आवश्यकता है। उत्पन्न होने वाली नई परिस्थितियों, जो हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान निर्माण के समय विद्यमान नहीं थीं, अथवा जिनके बारे में सोचा नहीं गया था, पर इसे नए सिरे से लागू किए जाने की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में, सामाजिक न्याय का विचार भी स्वच्छ वायु; कम प्रदूषित शहरों और कस्बों, नदियों और जलाशयों; साफ-सुथरी और स्वास्थ्यपूर्ण जीवन परिस्थितियों और हरित एवं पर्यावरण अनुकूल उन्नति और विकास जैसे आधुनिक नागरिक-सम्बद्ध मानकों तक विस्तारित हुआ है। ये सभी सामाजिक न्याय के ढांचे के भीतर,पर्यावरण और जलवायु संबंधी न्याय के निहितार्थ हैंlयदि कोई बच्चा वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा से पीड़ित होता है,तो मैं इसे सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने में हुई चूक मानूंगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिकी का न्याय पर जो प्रभाव दिखाई दे रहा है उससे प्रौद्योगिकी के उत्तरोत्तर प्रगामी प्रयोग की चाह पैदा हो रही है। प्रौद्योगिकी न्याय को बढ़ावा देने के साथ–साथ इसके लिए चुनौती भी हैl यह हमें प्रौद्योगिकी न्याय को आर्थिक न्याय के भाग के रूप में देखने के लिए चेता रही हैlहमारे गरीब और पिछड़े हुए देशवासियों की प्रौद्योगिकी तक पहुँच के सन्दर्भ में यह एकदम सही हैl
राष्ट्रपति ने कहा कि नवाचार ने समाज के वंचित वर्गों के लाभ के कार्य भी किए हैं। इसका एक उदाहरण प्रौद्योगिकी-समर्थित आधार संबद्ध प्रत्यक्ष लाभ अंतरण का भारत का अनुभव है। इससे भारत के कल्याणकारी कार्यक्रमों में से भ्रष्टाचार, लाभ का सही व्यक्ति तक न पहुंच पाने और कम पहुंचने तथा लाभ से वंचित रह जाने की समस्याएं समाप्त हुई हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि नवाचार और प्रौद्योगिकी से लाभ हुए हैं किंतु इससे पहुंच और निजता जैसे सवाल भी खड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए वृहत्तर जनहित के लिए डेटा के उपयोग और डेटा निजता के बीच प्राथमिकता तय करने का असमंजस सामने है। इन प्रतिस्पर्धी अनिवार्यताओं के बीच ही कहीं पर न्याय की प्रतिस्पर्धी धारणा भी मौजूद है और ऐसे मुद्दे हमारे सामने शायद 21वीं सदी के दौरान बने रहेंगे।
यह विज्ञप्ति 1315 बजे जारी की गईl