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भारत के राष्ट्रपति भारत के संविधान को अंगीकृत किए जाने की 70वीं वर्षगांठ के आयोजन में शामिल हुए

राष्ट्रपति भवन : 26.11.2019

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने भारतीय संसदीय समूह द्वारा आयोजित संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में, भारत के संविधान को अंगीकृत किए जाने की 70वीं वर्षगांठ के आयोजन में आज (26 नवंबर, 2019) शामिल हुए।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि ‘भारत का संविधान’ विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र का आधार-ग्रंथ है। यह हमारे देश की लोकतान्त्रिक संरचना का सर्वोच्च कानून है जो निरंतर हम सबका मार्गदर्शन करता है। यह संविधान हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का उद्गम भी है और आदर्श भी।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान में भारतीय लोकतन्त्र का दिल धड़कता है। इस जीवंतता को बनाए रखने के लिए, संविधान निर्माताओं ने, भावी पीढ़ियों द्वारा, समयानुसार आवश्यक समझे जाने वाले संशोधनों के लिए भी, प्रावधान शामिल किए। आज हमारे संविधान निर्माताओं के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का अनुकूल अवसर है, जिन्होंने हमें संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से क्रांतिकारी बदलाव लाने की व्यवस्था दी।

राष्ट्रपति ने कहा कि 70 वर्ष की अवधि में भारतीय संविधान ने जो उपयोगिता व सम्मान हासिल किया है, उसके लिए सभी देशवासी बधाई के हकदार हैं। साथ ही, केन्द्र व राज्य सरकार के तीनों अंग अर्थात विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सराहना के पात्र हैं। संघ और राज्यों के तालमेल को आगे बढ़ाते हुए, ‘सहकारी संघवाद’ यानि को-ऑपरेटिव फेडरलिज़्मतक की हमारी यह यात्रा संविधान की गतिशीलता का उदाहरण है।

राष्ट्रपति ने कहा कि कर्तव्य और अधिकार के विषय में महात्मा गांधी ने कहा था कि, "अधिकारों की उत्पत्ति का सच्चा स्रोत कर्तव्यों का पालन है। यदि हम सब अपने कर्तव्यों का पालन करें, तो अधिकारों को ज्यादा ढूंढने की जरूरत नहीं रहेगी। लेकिन, यदि हम कर्तव्यों को पूरा किए बिना अधिकारों के पीछे दौड़े, तो वह मृग-मरीचिका के पीछे पड़ने जैसा ही व्यर्थ सिद्ध होगा।”राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी संसद ने मूल कर्तव्यों के प्रावधानों को संविधान में शामिल करके यह स्पष्ट किया है कि नागरिकों को, अपने अधिकारों के बारे में सचेत रहने के साथ-साथ, अपने कर्तव्यों के प्रति भी जागरूक रहना है।

राष्ट्रपति ने कहा कि अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हमारे संविधान में, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का मूल अधिकार भी है और सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने तथा हिंसा से दूर रहने का कर्तव्य भी। अतः ‘अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता’ का गलत अर्थ लगाकर, यदि कोई व्यक्ति, किसी सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने जा रहा है, तो उसे ऐसे हिंसात्मक व अराजकता-पूर्ण काम से रोकने वाले व्यक्ति, जिम्मेदार नागरिक कहलाएंगे।जरूरत इस बात की है कि हम सब, अपने कर्तव्यों को निभाकर, ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करें, जहां अधिकारों का प्रभावी संरक्षण हो सके।