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भारत के राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह का वर्चुअल उद्घाटन किया

राष्ट्रपति भवन : 26.11.2020

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्दने आज (26 नवंबर,2020) संविधान को अंगीकृत किए जाने की 71वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह का वर्चुअल उद्घाटन किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि सर्वोच्च न्यायालय ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ई-फाइलिंग जैसे प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों का उपयोग करते हुए इस वैश्विक महामारी के बीच भी अपना कार्य करते हुए न्याय उपलब्ध कराना जारी रखा है। उन्होंने सभी को न्याय दिलाने के कर्तव्य के निर्वहन की राह में बीच कोरोनोवायरस को बाधा नहीं बनने देने के लिए बार,बेंच और न्यायिक अधिकारियों की सराहना की। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के कारण उत्पन्न समस्या की स्थिति से वास्तव में इस कार्य को पूरा करने और न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए और अधिक रचनात्मक तरीके खोजने में हमें सहायता मिल सकती है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने श्रेष्ठतर मानकों और उदात्त आदर्शों के लिए ख्याति अर्जित की है। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए ऐतिहासिक निर्णयों ने हमारे देश के कानूनी और संवैधानिक ढांचे को मजबूती प्रदान की है और इसकी पीठ तथा बार अपनी बौद्धिक गहनता और विधायी विद्वता के लिए विख्यात है। उन्होंने विश्वास जताया कि यह न्यायालय हमेशा न्याय का रक्षक बना रहेगा।

इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि हमारा संविधान अपनी तरह का सबसे बड़ा दस्तावेज है, राष्ट्रपति ने कहा कि यदि प्रावधान सुविचारित हों तो इसकी मोटाई कोई समस्या नहीं है। संविधान की प्रशंसा करते हुए,उन्होंने कहा कि हमारे समय के इस महान ग्रंथ की आत्मा को इसकी उद्देशिका में अत्यंत सुगमता-पूर्वक प्रकट किया गया है। उन्होंने कहा कि केवल 85 शब्दों में लिखी उद्देशिका मेंउन मूल जीवन-मूल्यों को सामने रखा गया है जिनको लेकर है जिसके माध्यम से हमारा स्वतंत्रता संग्राम,हमारे संस्थापक महापुरुषों की दूरगामी सोच, हर भारतीय के सपने और आकांक्षाएं आगे बढ़ीं। उन्होंने कहा कि हमारे समक्ष अब यही दायित्व है कि हम इन महान आदर्शों को जीवन के पाथेय के रूप में पहचानें, अर्थात्इन्हें अपने रोजमर्रा के जीवन में उतारें। उन्होंने पूछा कि न्यायपालिका के लिए इसके क्या मायने हैं। उद्देशिका में, अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुरक्षित करने के संकल्प की बात कही गई है। उन्होंने यह बात दोहराई कि न्याय की धारणा का तात्पर्य है न्याय तक पहुंच उपलब्ध कराना। दूसरे शब्दों में, न्याय केवल उस सीमा तक उपलब्ध कराया जा सकता है जिस सीमा तक यह लोगों की पहुँच में हो।

सार्वजनिक जीवन में आचरण के बारे में बोलते हुए,राष्ट्रपति ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के उस समय के उद्गार उद्धृत किए, जब उनका नाम भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में घोषित किया गया था। उन्होंने कहा था "मैंने हमेशा यह माना है कि बधाई का समय तब नहीं होता जब किसी व्यक्ति को किसी पद पर नियुक्त किया जाता है,बल्कि तब होता है जब वह उस पद से सेवामुक्त हो रहा होता है, और उन बधाइयों के लिए मैं तब तक इंतजार करना चाहूंगा, जब तक कि वह पल न आ जाए कि आपके द्वारा प्रदत्त इस पद से मैं अवकाश प्राप्त कर रहा होऊंगा, यह तब देखना होगा कि क्या मैं उस विश्वास और सद्भावना के योग्य रहा,जो मुझे सभी इष्टमित्रों और शुभचिंतकों से एकसमान प्राप्त हो रही है।”राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च संवैधानिक पदों को धारण करने वालों की ऐसी ही आकांक्षा होनी चाहिए और उन्हें पक्षपात और पूर्वाग्रहों से हमेशा ऊपर उठकर कार्य करते हुए उदाहरण प्रस्तुत करने का भरसकप्रयास करना चाहिए। राष्ट्रपति ने सामान्य रूप से संविधान में तथा विशेष रूप से उद्देशिका में प्रतिष्ठापित विचारों के अनुरूप, हमारे संस्थापक महापुरुषों के आदर्शों का बेहतर ढंग से अनुपालन करने के लिए आत्ममंथन करने का आग्रह किया और आगे कहा कि राजेन बाबू के उनके ये उद्गार हम सभी पर लागू होते हैं।