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भारत के राष्ट्रपति ने ‘15वें फिक्की उच्चतर शिक्षा शिखर सम्मेलन’ को संबोधित किया

राष्ट्रपति भवन : 27.11.2019

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (27 नवंबर, 2019) नई दिल्ली में ‘15वें फिक्की उच्चतर शिक्षा शिखर सम्मेलन’ को संबोधित किया। यह सम्मेलन, मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सहयोग से भारतीय वाणिज्य और उद्योग महासंघ द्वारा आयोजित किया जा रहा है।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि भविष्य की दुनिया ज्ञान, मशीन-संचालित-बुद्धिकौशल और डिजिटल तरीके से संचालित होगी। इस परिवर्तन के लिए स्वयं को तैयार करने और इसके असीम अवसरों से लाभ उठाने के लिए, हमें अपनी उच्चतर शिक्षा को नए पाठ्यक्रमों और गहन शोध की दिशा में उन्मुख करते हुए पुनर्व्यवस्थित करना होगा। हमारी पाठ्यचर्या में विचारोन्‍मेष, नवाचार और विचार-परिपाक को प्रधानता दी जानी चाहिए। भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा वैज्ञानिक मानव संसाधन पूल है। यदि हम शिक्षा और उद्योगक्षेत्र के बीच मजबूत संपर्क स्थापित कर पाते हैं, तो हम दुनिया के ‘अनुसन्धान एवं विकास’ का केन्द्र बन सकते हैं। और विज्ञान के साथ-साथ, उदार कला और मानविकी पर भी समान रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए चाहिए क्योंकि प्रौद्योगिकी के परिणाम अंततः लोगों, समुदायों और संस्कृतियों के लिए प्रासंगिक होने चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि जिज्ञासा, समीक्षात्मक चिन्‍तन और मुद्दों तथा स्थितियों की रूप-रेखा और कारणों को देखने और समझने की समग्र संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। हमारे विद्यार्थियों के दिमाग में रचनात्मकता, कल्पनाशीलता और विचारों की ग्रहणशीलता को मुक्‍त बनाए रखना होगा और इसके उल्‍लास को फलने-फूलने देना होगा। इस प्रकार के शैक्षिक पुनर्जागरण की प्रस्‍थान के लिए, हमें कई मोर्चों पर : शैक्षिक नेतृत्व के स्तर पर; विद्यार्थी-शिक्षक सम्बन्ध के स्तर पर; और प्रौद्योगिकी एकीकरण के स्तर पर नई अवधारणाओं के बारे में व्यवहारिक समझ और दिमागी खुलेपन की आवश्यकता होगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि उच्चतर शिक्षा की दुनिया अति व्‍यापक है। इसे और विकसित होने और हमें सशक्त करने योग्‍य बनाने के लिए, हमें सभी हितधारकों अर्थात् नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, उद्यमियों और अन्य लोगों के समर्थन की आवश्यकता है। हमारे देश की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता को देखते हुए, सरकारी संस्थाएं इस कार्य में प्रमुख भूमिका निभाएंगी। लेकिन इसके साथ-साथ निजी क्षेत्रों को भी इन राष्ट्रीय प्रयासों में योगदान देना जारी रखना होगा।