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भारत के राष्ट्रपति भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में शामिल हुए

राष्ट्रपति भवन : 27.11.2021

भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने कहा, "संविधान दिवस हमारे लोकतंत्र का एक महान पर्व है। यह उन ज्ञात और अज्ञात महान पुरुषों और महिलाओं के प्रति अपनी कृतज्ञता जताने का दिन है, जिनके कारण हमारे लिए स्वतंत्र गणराज्य में साँस लेना संभव हो सका। यह "उनके द्वारा दिखाए मार्ग पर चलते रहने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराने का भी दिन है।" वे आज (27 नवंबर, 2021) नई दिल्ली में संविधान को अंगीकृत किए जाने की वर्षगांठ के उपलक्ष में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में समापन भाषण दे रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान हमारी सामूहिक यात्रा का रोडमैप है। इसके मूल में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना है। उद्देशिका में न्याय की धारणा का विस्तार इसके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं को शामिल करने के लिए किया गया है। भारत के हम सभी नागरिकों के लिए, संविधान का उद्देश्य भी इन्ही पहलुओं को सुरक्षित करना है। न्याय ही वह महत्वपूर्ण धुरी है जिसके चारों ओर लोकतंत्र घूमता है। राज्य की तीनों संस्थाओं - न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका – के सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व में होने पर यह और भी मजबूत हो जाती है। संविधान में, प्रत्येक संस्था का अपना निश्चित दायरा होता है जिसके भीतर वह कार्य करता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय परंपरा में न्यायाधीशों की परिकल्पना एक ऐसे 'स्थितप्रज्ञ' के रूप में की जाती है जो सत्यनिष्ठा और वैराग्य की प्रतिमूर्ति हों। हमारे यहाँ ऐसे दिग्गज न्यायाधीशों का समृद्ध इतिहास रहा है, जो अपनी विलक्षण विद्वता और दोषरहित-आचरण से परिपूर्ण उक्तियों के लिए विख्यात हैं, और जो आने वाली पीढ़ियों के लिए कसौटी बन गए हैं। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि भारतीय न्यायपालिका उन उच्चतम मानकों को बनाए हुए है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्यायपालिका ने अपने लिए काफी उच्च मानक तय किया हुआ है। इसलिए, न्यायाधीशों के लिए यह भी आवश्यक हो जाता है कि वे न्यायालयों में अपनी टिप्पणियाँ देते समय परम विवेक से काम लें। किसी भी असावधानीपूर्ण टिप्पणी, भले ही नेक इरादे से की गई हो, से न्यायपालिका को नीचा दिखाने के लिए, इसके गलत अर्थ निकालने की गुंजाइश पैदा हो जाती है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हम एक ऐसे शानदार इतिहास के उत्तराधिकारी हैं, जिसमें दिग्गज विधिवेत्ताओं ने न केवल राष्ट्रीय आंदोलन को दिशा दी, बल्कि निस्वार्थ लोकप्रिय व्यक्ति के प्रतिमान भी गढ़े। न्यायपालिका ने आरम्भ से ही अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए आचरण के उन उच्चतम मानकों का लगातार पालन किया। लोगों की नजर में यह सर्वाधिक विश्वसनीय संस्था है। उन्होंने कहा कि इसीलिए उन्हें इस बात से अगाध पीड़ा हुई है, कि हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर न्यायपालिका के विरुद्ध कुछ अपमानजनक टिप्पणियों के मामले सामने आए हैं। इन प्लेटफार्मों ने सूचनाओं को लोकतांत्रिक बनाने का अद्भुत कार्य किया है,फिर भी इनका एक स्याह पक्ष भी है। उनके द्वारा दी गई पहचान की गोपनीयता का कुछ गलत व्यक्तियों द्वारा फायदा उठाया जाता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह एक प्रकार की पथ-भ्रष्टता है और इस प्रकार के कृत्य जल्द ही समाप्त हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि वे इस पर विचार करते रहे हैं कि इस घटना के पीछे आखिर क्या उद्देश्य हो सकता है। उन्होंने पूछा कि क्या हम एक स्वस्थ समाज के लिए सामूहिक रूप से इसके पीछे के कारणों का पता लगा सकते हैं।

न्याय प्राप्त करने में होने वाले खर्च के बारे में राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे जैसे विकासशील देश में, नागरिकों का बहुत छोटा सा वर्ग न्यायालय का दरवाजा खटखटा पाता है। निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, किसी औसत दर्जे के नागरिक के लिए शिकायतों के निवारण की मांग करना कठिन होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे कुछ व्यक्ति और संस्थाएं भी हैं जो नि:शुल्क सेवाएं उपलब्ध कराती हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस दिशा में सराहनीय पहल की है। उन्होंने कानूनी सहायता और सलाहकार सेवाओं तक सभी की पहुंच बढ़ाए जाने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इसे एक आंदोलन का रूप या एक बेहतर संस्थागत तंत्र का रूप दिया जा सकता है।

राष्ट्रपति ने लंबित मामलों की बड़ी संख्या की ओर इशारा करते हुए कहा कि सभी हितधारक इस चुनौती की व्यापकता और इसके प्रभावों को समझते हैं। उन्होंने कहा कि वे इस बात से अवगत हैं कि इसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है और इस मुद्दे के समाधान के लिए उचित सुझाव दिए गए हैं। फिर भी, यह बहस समाप्त नहीं हुई है और लंबित मामलों की संख्या भी बढ़ती ही जा रही है। अंततः, शिकायत रखने वाले नागरिकों और संगठनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। लंबित मामलों के मुद्दे का प्रभाव आर्थिक प्रगति और विकास पर भी पड़ता है। यही सही समय है कि सभी हितधारक राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखते हुए कोई रास्ता निकालें। इस प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी बहुत उपयोगी सहयोगी हो सकती है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में कई कदम उठाए हैं। महामारी के कारण न्यायपालिका के क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को अपनाने में तेजी आई है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि न्याय के लिए और न्याय तक नागरिकों की पहुँच बढ़ाने के लिए, इस क्षेत्र की युवा प्रतिभा कंप्यूटर और इंटरनेट के उपयोग को और आगे बढ़ाएगी।