भारत के राष्ट्रपति ने पुणे में साधु वासवानी इंटरनेशनल स्कूल का उद्घाटन किया और मातोश्री रमाबाई आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया; उन्होंने कहा कि शिक्षा से जीवन मूल्यों को प्रोत्साहन मिलता है तथा जातिगत, लैंगिक और अन्य भेदभाव से लड़ने में मदद मिलती है
राष्ट्रपति भवन : 30.05.2018
भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (30 मई, 2018) पुणे में साधु वासवानी इंटरनेशनल स्कूल का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि साधु वासवानी इंटरनेशनल स्कूल का नामकरण महान आध्यात्मिक विभूति साधु वासवानी के नाम पर किया गया है जो हमारे अत्यंत उल्लेखनीय राष्ट्र निर्माताओं में शामिल थे। उन्होंने हमें हमारी प्राचीन सभ्यता के जीवन मूल्यों को आधुनिक युग की तकनीकों के साथ जोड़ना सिखाया। उनके मिशन को उनके शिष्य दादा जे.पी. वासवानी ने आगे बढ़ाया है जिन्होंने अपना प्रत्येक क्षण मानव सेवा में समर्पित कर दिया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पुणे शहर महाराष्ट्र और देश के लिए शिक्षा का एक केन्द्र रहा है। आधुनिक भारत की गाथा इस शहर से नि:सृत शैक्षिक, सुधारवादी और प्रगतिशील विचार की ऋणी है और हमारा राष्ट्र वास्तव में इसकी सराहना करता है। उन्होंने कहा कि पुणे में ही 1848 में महात्मा ज्योतिबा फुले सावित्रीबाई फुले ने उस विद्यालय की स्थापना की जिसे केवल बालिकाओं के लिए भारत में प्रथम आधुनिक विद्यालय माना जाता है। पुणे के अन्य सुधारकों की भांति, ज्योतिबा और साबित्रीबाई फुले ने जातिगत और लैंगिक भेदभाव का मुकाबला करने के और कमजोर वर्गों के लिए कार्य करने के अपने दृढ़ प्रयासों में, शिक्षा को अपना मुख्य साधन बनाया।
राष्ट्रपति ने कहा कि मूल्य आधारित शिक्षा से समाज में नैतिकता को बढ़ावा देने में मदद मिलती है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं ने शिक्षा पर तथा ज्ञान, प्रज्ञा और शिक्षण से भरपूर विमर्श पर जोर दिया था। उनमें से प्रत्येक ने विवाद की अपेक्षा विचार-विमर्श की तथा दूसरे व्यक्ति की गरिमा का ध्यान रखते हुए मतभेदों को दूर करने की संस्कृति पर बल दिया था।
राष्ट्रपति ने कहा कि स्कूल में बच्चे को इतिहास और भूगोल, भाषा और साहित्य, गणित और विज्ञान पढ़ाया जाता है। 10वीं और 12वीं कक्षा में बच्चे इन विषयों में और दूसरे विषयों में परीक्षा देते हैं। उन्हें अंक और श्रेणियां दी जाती हैं। ऐसे विषयों के महत्व को कम करके न आंकते हुए, उन्होंने उन शिक्षाओं की ओर ध्यान दिलाया जिन्हें कोई बच्चा स्कूल में अपनाता है और जो औपचारिक रूप से बोर्ड की परीक्षा में जांची नहीं जाती हैं। ये शिक्षाएं संस्कृति, चरित्र निर्माण, सहृदयता और साहस तथा पहले से कहीं अधिक तेजी से विकसित हो रहे समाज और विश्व में आ रहे बदलावों का मुकाबला करने की होती हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि जो बच्चा इन शिक्षाओं को ग्रहण करता है और इन मूल्यों को आत्मसात करता है, वह हमेशा बाहरी दुनिया और गरीब लोगों के प्रति संवेदनशील रहता है। ऐसा बच्चा अपनी क्षमता के अनुसार समाज में येन-केन प्रकारेण योगदान करना कभी नहीं भूलेगा।
दिन की शुरुआत में, राष्ट्रपति ने पुणे में मातोश्री रमाबाई आंबेडकर उद्यान में मातोश्री रमाबाई भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने मातोश्री रमाबाई भीमराव आंबेडकर द्वारा अपने पति डॉ. बी.आर.आंबेडकर के जीवन और कार्य में किए गए योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि संकट के दौरान उनकी सहयोगी भूमिका और हिम्मत ने डॉक्टर आंबेडकर को एक विशिष्ट और विख्यात विद्वान और जन-विभूति बनाने में मदद की। डॉक्टर आंबेडकर ने स्वयं इस भूमिका को स्वीकार किया था।
राष्ट्रपति ने कहा कि रमाबाई के साहचर्य ने नि:संदेह डॉ. आंबेडकर की विचारशीलता को प्रभावित किया और उन्हें महिलाओं के अधिकारों की हिमायती बनाया। इस वजह से उन्होंने महिलाओं की आर्थिक समानता के लिए लड़ाई लड़ी और आरंभसे ही सुनिश्चित किया कि संविधान उन्हें समान राजनीतिक अधिकार प्रदान करे। इस संबंध में डॉ. आंबेडकर ने तय कियाकि भारत उन अधिकांश लोकतांत्रिक देशों से अलग है जिन्होंने शुरुआती दौर में ये अधिकार महिलाओं को नहीं दिए थे।
राष्ट्रपति ने कहा कि मातोश्री रमाबाई भीमराव आंबेडकर ने स्वयं अस्पृश्यता की प्रथा का मुकाबला करने और उसे मिटाने में असीम योगदान दिया और सभी की सामाजिक समानता के लिए भरसक प्रयास किया। वह सभी भारतीयों के लिए आदर्श बनी हुई हैं।
यह विज्ञप्ति 1700 बजे जारी की गई