भारत के राष्ट्रपति ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली की ‘स्थायी निधि’ का शुभारंभ किया
राष्ट्रपति भवन : 31.10.2019
भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (31 अक्टूबर, 2019) राष्ट्रपति भवन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली की ‘स्थायी निधि’ का शुभारंभ किया।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कहा कि समय बीतने के साथ स्थायी निधियां, विश्व स्तर पर शैक्षणिक संस्थाओं की वित्तीय मज़बूती का अभिन्न अंग बन गई हैं। हालांकि हम अभी भी हार्वर्ड, येल या कोलंबिया जैसी संस्थाओं की स्थायी निधियों के आकार और महत्व से बहुत पीछे हैं, किन्तु इस दिशा में यह पहला सही कदम है। स्थायी निधि के माध्यम से, पूर्व छात्र न केवल अपनी संस्था को अपना योगदान दे रहे हैं, बल्कि वे भावी पीढ़ियों के शिक्षार्थियों की सहायता कर रहे हैं और उन्हें आगे बढ़ा रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि किसी उपहार वे सम्मान का सबसे अच्छा तरीका, उसका सर्वोत्तम उपयोग करना ही होता है। नवीनतम ‘क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2020’ में, आईआईटी दिल्ली को 182वें स्थान पर रखा गया है। यदि संस्थान का लक्ष्य विश्व के शीर्षस्थ संस्थानों में शामिल होने का है, तो इसमें सुधार की बहुत संभावना है। इसे संकाय-सदस्यों की संख्या, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय अनुभव वाले शिक्षकों की संख्या में वृद्धि करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, यह सुनिश्चित करने के लिए कि इसका परिसर, पाठ्य सामग्री और अनुसंधान सुविधाओं को पूरी तरह से विश्व स्तर का बनाया जा सके, इसके बुनियादी ढांचे को बेहतर करने की आवश्यकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि संस्थान, इन क्षेत्रों में बदलाव लाने के लिए पूर्व विद्यार्थियों के बहुमूल्य योगदान का सदुपयोग करेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि ऐतिहासिक काल से ही हमारे शिक्षण संस्थान हमारी संस्कृति के प्रकाश-स्तंभ रहे हैं। हमारे यहाँ समाज में लोगों का मार्गदर्शन करने और उनके जीवन को समृद्ध बनाने वाले विश्वविद्यालयों की परंपरा रही है। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे अपनी इच्छानुसार किसी भी समस्या के समाधान के माध्यम से समाज के वंचित वर्गों के लाभ के लिए अपना कुछ न कुछ समय दें। उन्होंने कहा कि ये समाधान दिव्यांगों के सशक्तीकरण के रूप में हो सकते हैं, या बेसहारा महिलाओं के पुनर्वास के हो सकते हैं, या संकटग्रस्त बच्चों की सहायता के हो सकते हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि समस्या कौन सी है, बल्कि फर्क पड़ता है तो केवल उसमें बदलाव लाने की इच्छा-शक्ति से।