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भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द द्वारा ‘थिंक इंडिया जर्नल’ के दीनदयाल उपाध्याय विशेषांक की प्रति स्वीकृत करने के अवसर पर संबोधन

राष्ट्रपति भवन : 02.04.2018

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1. एकात्म मानववाद के प्रणेता, दीनदयाल उपाध्याय जी पर विशेषांक प्रकाशित करके‘विचार-न्यास’ ने अपने‘थिंक इंडिया जर्नल’ के नाम को सार्थक किया है।

2. जैसा कि इस जर्नल के नाम से ही स्पष्ट है, ‘थिंक इंडिया जर्नल’ भारतीय सोच से जुड़ा प्रकाशन है।

3. मात्र 52 वर्ष के अपने जीवन में नितांत भारतीय, समता-मूलक तथा अंतिम व्यक्ति के कल्याण के हित में एक प्रभावी विचारधारा से भारतीय राजनीति और चिंतन को समृद्ध करने वाले दीनदयाल उपाध्याय जी एक राष्ट्रीय विभूति हैं। उनका आकलन करने के लिए दलगत राजनीति और विचारधारा की प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर सोचने और देखने की व्यापक चेतना की आवश्यकता है। इस जर्नल को मैं एक ऐसे ही प्रयास के रूप में देखता हूं। विभिन्न काल-खंडों, राजनैतिक दलों और विचारधाराओं से जुड़े लोगों के लेखों का यह संकलन इसलिए सराहनीय है कि इसके द्वारा एक महान भारतीय चिंतक के विषय में मत-मतांतरों को एकत्र किया गया है।

4. समाज और पर्यावरण के क्षेत्रों में हो रहे विश्व-व्यापी असंतुलन के कारण आज‘होलिस्टिक अप्रोच’ एक बहु-प्रचलित कोन्सेप्ट बन गया है। पूरे विश्व के पर्यावरण को एक ही इकाई के रूप में देखने पर सहमति बन गई है।‘वसुधैवकुटुम्बकम्’की दृष्टि पर आधारित एकात्म मानववाद की विचारधारा के अनुसार पूरे विश्व का पर्यावरण और मानव समाज एक ही इकाई है। प्रत्येक मनुष्य को समान समझने तथा प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर प्रदान करने की दीनदयाल उपाध्याय जी की सोच उन्हे भारत के सर्वोच्च विचारकों में स्थान दिलाती है।

5. इस जर्नल में देश के अत्यंत सम्मानित लेखक व संपादक स्वर्गीय धर्मवीर भारती जी का एक लेख संकलित है जिसका शीर्षक है‘प्योर इंडियन’। यह शीर्षक अपने आप में दीनदयाल जी का रेखाचित्र है। विचारधारा के स्तर पर दीनदयाल उपाध्याय जी के साथ इत्तेफाक नहीं रखते हुए भी धर्मवीर भारती जी उनके परम प्रशंसक बन गए थे और उपाध्याय जी में उन्हे देश की कठिनाइयों के समाधान का एक स्रोत दिखाई दे रहा था।

6. इमरजेंसी के दौरान इलाहाबाद के नैनी सेंट्रल जेल में मात्र 51 वर्ष की आयु में स्वर्गीय हो जाने वाले डॉक्टर सत्यव्रत सिन्हा जी का लेख भी इस संकलन में है। दीनदयाल उपाध्याय जी की विरासत का आकलन करने के लिए यह लेख उनकी मृत्यु के केवल तीन वर्षों बाद लिखा गया था। यह लेख गांधी, लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय जी के किसी भी समस्या के तात्कालिक निवारण की बजाय, उसके समूल समाधान पर धीरज के साथ काम करने की समान प्रवृत्ति पर प्रकाश डालता है। उन्होने इन तीनों विभूतियों की मौलिकता और आदर्शवाद को रेखांकित किया है।

7. दीनदयाल जी विचारधाराओं की संकीर्णता से ऊपर उठकर देश हित में आदर्शों के आधार पर सहयोग करने के हिमायती थे। जैसा कि सभी जानते हैं कि1960 के दशक में लोहिया जी और दीनदयाल जी के बीच परस्पर सैद्धांतिक और राजनैतिक सहयोग निरंतर प्रगाढ़ हो रहा था। यह सहयोग दोनों के असामयिक निधन के कारण पूरी तरह फल-फूल नहीं पाया था।

8. गांधी, आंबेडकर, लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय जी को भारतीय चिंतन परंपरा के वाहकों के रूप में देखा जाता है। विचारधारा के निर्माण के लिए चिंतन और लेखन पर ध्यान देने के साथ-साथ इन चारों विभूतियों ने व्यावहारिक धरातल पर भी बहुत कर्मठता के साथ काम किया था। कथनी और करनी में समानता तथा भारतीय भाव-भूमि पर अपनी विचारधाराओं का निर्माण करने की विशेषता इन्हे एक दूसरे से जोड़ती है। नेहरू जी की पुस्तक, ‘भारत एक खोज’भी उनके दृष्टिकोण से भारत की वैचारिक-सांस्कृतिक परंपरा को समझने का एक महत्वपूर्ण प्रयास थी। वैचारिक विभिन्नता के साथ-साथ सांस्कृतिक एकता भारत की विशेषता है। इस संकलन में विचारों की विभिन्न धाराओं के जरिए दीनदयाल जी के योगदान को समझने का प्रयास किया गया है।

9. मैं दीनदयाल उपाध्याय जी पर इस विशेषांक के प्रकाशन के लिए श्री डी. पी. त्रिपाठी जी की सराहना करता हूं।