भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का भगवान महावीर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के नवीकरण शिलान्यास समारोह में सम्बोधन
दिल्ली : 03.05.2022
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेजुड़े इसमहत्वपूर्ण कार्यक्रमके लिए आज यहां आप सभीके बीचउपस्थित होकरमुझे बहुत प्रसन्नताहो रही है। आजअक्षय तृतीयाका शुभदिन है और मुझे बतायागया हैकि जैनपरंपरा के अनुसार, आजही केदिन प्रथमतीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जी ने एकसाल 39 दिनके उपवास के बाद पारणा की थी। अक्षय तृतीया हम सबके भीतर विद्यमान अनंत और अक्षय शक्ति के स्रोत अर्थात ईश्वर को स्मरण करने का भी दिन है। मान्यता है कि इस दिन किए गए प्रत्येक कार्य का फल अत्यंत शुभ होता है। इसलिए आज के दिन नवीकरण का शुभारंभ इस अस्पताल के उज्ज्वल भविष्य का संकेत देता है जिसका तात्पर्य यह है कि अपने कल्याणकारी लक्ष्यों को प्राप्त करने में यह संस्थान सदैव सफल रहेगा। ऐसे पावन दिवस पर, मैं आपसभी कोतथा समस्त देशवासियों को अक्षय तृतीया की बधाई और शुभकामनाएंदेता हूँ।
देवियो और सज्जनो,
इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि जैन धर्म की विभिन्नधाराओं सेमेरा कुछ विशेष जुड़ाव रहा है और जैनसंतों का विशेष सानिध्य भी मुझे समय-समय परमिलता रहाहै। जब मैं बिहार काराज्यपाल था, तब भगवानमहावीर की जन्मस्थली वैशाली और नालंदाक्षेत्र मेंभगवान महावीरकी निर्वाण -स्थली,पावापुरी की यात्रा का सुअवसर भी मुझे अनेक बारमिला। यह भी मेरा सौभाग्य रहा है कि राष्ट्रपति भवन में भी मुझे जैन संतों और साध्वियों कासानिध्य व मार्गदर्शन समय-समय पर मिलता रहा। आचार्य महाश्रमण जी, आचार्य पद्मसागर सूरीश्वर जी , आचार्य विजय नित्यानन्दसूरीश्वर जी , आचार्य लोकेश मुनि और साध्वी श्री ज्ञानमती माता जी ने राष्ट्रपति भवन में आकर मुझे कृतार्थ किया है। इसके अतिरिक्त मुझे नागपुर जिले में रामटेक जाकर आचार्य विद्यासागर जी महाराज का सानिध्य प्राप्त करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ।
हाल हीमें , राष्ट्रपति भवन में जैन साध्वी आचार्यश्री चन्दनाजीको पद्मश्री से सम्मानित करने काअवसर मुझेमिला। चन्दनाजीआचार्य की उपाधि पाने वाली पहलीजैन साध्वीहैं। पिछले 20 वर्षों मेंउन्होंने बिहार,गुजरात, राजस्थान,नेपाल औरकई अन्य स्थानों परशिक्षा केंद्रोंकी स्थापनाकी है जिनमें अबतक 2 लाखसे अधिक बच्चे और युवा शिक्षा प्राप्त कर चुके है। इसी प्रकार, साध्वी श्रीज्ञानमती माताजी कीप्रेरणा से ,महाराष्ट्र के मांगी-तुंगी तीर्थ-स्थल पर भगवानऋषभदेव की 108फुट ऊंची मूर्ति, जोदुनिया कीसबसे ऊंची जैन-तीर्थंकर-प्रतिमा के रूपमें सम्मानित है, के दर्शन, वर्ष 2018में मुझे करने का सुअवसर भी मिलाथा।
देवियो और सज्जनो,
जैन समाज की परंपरा में सेवा को प्रधानता दी गई है। मुझेबताया गयाहै कि ‘महासती मोहन देवीजैन शिक्षण समिति’ द्वारा गरीबोंकी सेवाके लिए निःशुल्क नेत्र शिविर लगाएजाते थे । उस सेवा कार्य को स्थायी रूप देने के उद्देश्य से अस्पताल के निर्माण का निर्णय लिया गया। मुझे जानकारी दी गई है कि इस अस्पतालकी नींवपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानीजैल सिंह जी द्वारा वर्ष 1986 मेंरखी गयीथी। सुचारु रूप से चल रहे इस अस्पताल द्वारा, और भी बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने का प्रकल्प प्रशंसा के योग्य है। अत: इस अस्पताल के नवीकरण का शिलान्यास करके मुझेबहुत प्रसन्नताहो रहीहै।
मुझे बतायागया हैकि 50 बिस्तरों वाले इस अस्पतालमें 250 बिस्तरों की व्यवस्था के साथअत्याधुनिक हॉस्पिटल बनाने कीयोजना है जिसे वर्ष2023 तक पूरा करने का लक्ष्य है ।यह प्रसन्नता का विषय है किइस सुपरस्पेशलिटी अस्पताल मेंउच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएंसमाज केसभी वर्गोंको किफ़ायती दरों पर, तथा गरीबोंको नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएंगी।
सेवा-धर्मका पालनकरते हुएकोविड-19 महामारी के दौरान हमारे स्वास्थ्यकर्मियों , डॉक्टरोंऔर नर्सोंने अपनी जान जोखिम में डालकर,देशवासियों कीसेवा कीमिसाल कायम की है। मुझे यहजानकर प्रसन्नताहुई किकोविड महामारी के दौरान भगवान महावीरअस्पताल ने भी कोविड केयरहॉस्पिटल के रुप में अपनी सेवाएं प्रदान कीं। लेकिन हम सबको आज भी ध्यान रखनाहै कि अभी कोविड पूरीतरह समाप्त नहींहुआ है। देशवासियों सेपूर्णत : सतर्करहने तथासरकार द्वारा दिए गए सभी दिशा-निर्देशों का पालन करने कीअपील करताहूं।
देवियो औरसज्जनो ,
विश्व कल्याण की दृष्टि से जैनधर्म मेंचार तरह के दान बताए गएहै । ये दान हैं -अभय दान ,औषधि दान, अन्न दानऔर ज्ञानदान। मुझे लगता है कि जैन परंपरा में दान का जो महत्व है उसके पीछेप्रकृति का वह अकाट्य नियम है जिसके अनुसार इस संसार में हम जो कुछ भी देते हैं उसका कई गुना प्रकृति से हमें वापस मिलता है। हमारे सत्कर्मों का प्रतिफल भी कई गुना मिलता है। इस प्रकार,जिन लोगों ने इस अस्पताल के निर्माण हेतु दान किया है उन्होंने तो यह स्वास्थ्य या औषधि दान निस्वार्थ भाव से किया है परंतु प्रकृति के नियम के अनुसार यह निश्चित है कि उनके लिए आजीवन स्वास्थ्य सेवाओं के उपलब्ध रहने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। वे कभी भी अपने जीवन में औषधि या उपचार की कमी का अनुभव नहीं करेंगे।
इस संदर्भ में, अन्न दान या गोचरी के पुण्य से जुड़ा अपना निजी अनुभव मैं आप सबके साथ साझा करना चाहूंगा। शायद वर्ष 1994-95 की बात है जब डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा भारत के राष्ट्रपति थे। आचार्य पद्म-सागर सूरीश्वर जी महाराज का राष्ट्रपति से मिलने का समय नियत किया गया। उन दिनों मेरा निवास साउथ एवेन्यू में हुआ करता था। मुझे पहले से ही महाराज जी के संपर्क में रहने का सौभाग्य प्राप्त था। संयोग से उनका कार्यक्रम कुछ इस तरह बना कि दादा-बाड़ी महरौली से लगभग तीन घंटे की पदयात्रा के बाद उन्होंने मेरे निवास स्थान में गोचरी ग्रहण करने की कृपा की और उसके बाद वे राष्ट्रपति भवन गए। मैंने तो महाराज जी और अन्य साधुगणों को गोचरी केवल श्रद्धा भाव से ही समर्पित की थी परंतु संतों की कृपा और प्रकृति के नियम के प्रभाव से मैंने अनुभव किया कि आज तक मेरे परिवार-जनों को कभी भी खाद्यान्न की कमी का अहसास नहीं करना पड़ा है।
देवियो औरसज्जनो ,
जैन संत परंपरा में निहित स्वास्थ्य संबंधी चेतना का उल्लेख भी मुझे प्रासंगिकलगता है। हम सब जानते हैं कि आधुनिक इतिहास में सर्जिकल मास्क लगाने की शुरुआत वर्ष 1897 में की गई जब शल्य चिकित्सकों ने ऑपरेशन के दौरान स्वयं को बैक्टीरिया से सुरक्षित रखने के लिए मास्क का प्रयोग करना शुरू किया। उसके बाद, आज से लगभग एक सौ वर्ष पूर्व, वर्ष 1918-19 में स्पेनिश फ्लू के दौरान सामान्य लोगों ने भी मास्क पहनना शुरू किया। कोविड-19 की महामारी के कारण लगभग ढाई वर्षों से मास्क का उपयोग जीवाणुओं से बचाव के प्रभावी माध्यम के रूप में किया जा रहा है। परंतु जैन धर्म के प्रवर्तकों ने सदियों पहले ही मास्क की उपयोगिता को समझ लिया था। मुंह व नाक को ढकने से वे जीवाणु-हिंसा से बचाव के साथ-साथ शरीर में जीवाणुओं के प्रवेश को भी रोक पाते थे जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहती थी। इसलिए आज पूरी मानवता जैन धर्म के प्रवर्तकों के प्रति अपनी श्रद्धा व कृतज्ञता का भाव प्रदर्शित करती है। इसी प्रकार,जैन संतों ने शारीरिक परिश्रम के महत्व को रेखांकित करते हुए पैदल भ्रमण करने पर बहुत ज़ोर दिया है। प्रायः देखा गया है कि पैदल भ्रमण और शारीरिक श्रम करने वाले हमारे जैन साधु-संत स्वस्थ और दीर्घायु होते हैं। मुझे विश्वास है कि परंपरा में निहित वैज्ञानिकता के आधार पर मानव समाज को स्वस्थ जीवन की जो दिशा संतों ने दिखाई है उस पर चलने का प्रयास इस अस्पताल द्वारा किया जाएगा।
देवियो और सज्जनो,
जैन परंपरा में पर्यावरण के अनुकूल संयमित और संतुलित जीवन-शैली अपनाने की शिक्षा दी गई है। वर्तमान समय में सामान्य लोगों की जीवन-शैली और खान-पान का तरीका प्रकृति से दूर होता जा रहा है। हमने देखा है कि जैन साधु और साध्वी-गण तथा उनके अनुशासन-पूर्ण अनुयायी सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ही भोजन कर लिया करते हैं। सूर्य ही ऊर्जा का मूलभूत और सर्वश्रेष्ठ स्रोत है। सूर्य की दैनिक गति के अनुसार जीवन-शैली को अपनाना स्वस्थ रहने का सुगम उपाय है,यही सीख हमें जैन संतों की आदर्श जीवन-शैली को देखकर मिलती है। इसका प्रमाण हमें कहीं और जाकर ढूंढने की जरूरत नहीं है। आज यहां जितने साधु-साध्वियों का हमें सानिध्य मिल रहा है,वे सभी हम गृहस्थ लोगों से अधिक स्वस्थ हैं। इस प्रकार ,जैन समाज के प्रवर्तकों ने हम सबको स्वस्थ रहने के सुगम उपाय बताए हैं। जरूरत उन्हें पालन करने की है। मेरा मानना है कि अस्पतालों में आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ विज्ञान-सम्मत परम्पराओं का समन्वय स्वस्थ जीवन के लिए और भी सहायक होगा।
जैन शास्त्रोंमें बीमारीसे बचनेके लिए भोजन की शुद्धता परविशेष बलदिया गयाहै। जैन ग्रन्थ ‘ओघ निर्युक्ति’में कहागया है:
हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा यजे नरा।
न तेविज्जा ति-गिच्छन्ति,अप्पाणं तेति-गिच्छगा।
यानि, वहव्यक्ति जोहितकर औरअल्प-आहार करेगा उसको किसी चिकित्सक कीजरुरत नहींहोगी, वहस्वयं ही अपना चिकित्सक है।
स्वास्थ्य को सबसे बड़ा सुख माना गया है। सामान्य जनता के बीच यह उक्ति प्रचलित है कि‘ पहला सुख निरोगी काया’। हमारी परंपरा में समस्त विश्व के आरोग्य और कल्याण की कामना की गई है। सदियों से हम प्रार्थना करते आए हैं कि सभी सुखी रहें और सभी रोग-मुक्त रहें: सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:। मुझे प्रसन्नता है कि भगवान महावीर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल तमाम लोगों को रोग मुक्त रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान देगा।
देवियो औरसज्जनो ,
मैं आजके इसशुभ अवसरपर, इस आयोजन के लिए ‘महासती मोहन देवीजैन शिक्षण समिति’ के सभीसदस्यों कोबधाई देताहूं। अंत में मैं तीर्थंकरोंकी स्तुतिमें रचित लोगस्सपाठ की कुछ पंक्तियां दोहराता हूं और सभी देशवासियों केआरोग्य हेतुतीर्थंकरों की वंदना करता हूं:
आरुग्ग-बोहिलाभं, समाहि-वर-मुत्तमं दिंतु
हे प्रभु!हमें आरोग्यप्रदान करें।
हे प्रभु!हमें बोधिप्रदान करें।
हे प्रभु!हमें उत्तमसमाधि प्रदानकरें।
जय जिनेन्द्र!
जय हिन्द!