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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का “ज्ञान कुंभ 2018” के शुभारंभ समारोह में सम्बोधन

हरिद्वार : 03.11.2018

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1. देवभूमि उत्तराखंड के खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण के बीच पतंजलि योगपीठ में आयोजित इस "ज्ञान कुंभ 2018” में आकर मुझे अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है।

2. इस देश में सदियों से धार्मिक कुम्भ के आयोजन की परंपरा रही है। हरिद्वार, कुम्भ के आयोजनों की पावन भूमि रही है। यह बहुत ही सार्थक पहल है कि आज हम इस ज्ञान-कुम्भ के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए एकत्र हुए हैं।

3. आधुनिक ज्ञानऔर शिक्षा में योग के महत्व को बढ़ाने में, स्वामीरामदेव जी का योगदान अभूतपूर्व है। योग की अब तककीअवधारणाके अनुसार योग का अभ्यासपर्वतों और कंदराओं में जाकर किया जाता था।अतः सामान्य गृहस्थ जीवनबिताने वाले लोगों के लिएयोगका अभ्यास असंभव था।लेकिन स्वामी रामदेव जीके प्रयासों से, इस अवधारणा का मिथक टूटा है। आज भारत और विश्व में योग को घर-घर में अपनाया जा रहा है। भारत सरकार के प्रयासों से, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन 2015 में, प्रतिवर्ष 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया। यह दिवस, पूरे विश्व में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

4. शिक्षा से मेरा आत्मिक जुड़ाव है, क्योंकि शिक्षा ही व्यक्ति, परिवार, समाज और देश की प्रगति का आधार है।

5. इस आयोजन का उद्देश्य देश भर के शिक्षाविदों के साथ उच्च-शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।यहाँ देश के विभिन्न राज्यों के शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव, कुलपति, प्राचार्य, प्रशासनिक अधिकारी और छात्र एकजुट हो रहे हैं।मुझे बताया गया है कि अगले दो दिनों के दौरान आप सब उच्च-शिक्षा और भारतीय ज्ञान परंपरा, तथा ‘Quality improvement, challenges and good practices in higher education’ , जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करेंगे। सार्थक और उपयोगी विमर्श के लिए मैं, आप सबको, शुभ-कामनाएँ देता हूँ।

6. संविधान की सातवीं अनुसूची की ‘Union’ , ‘State’, और ‘Concurrent’ , तीनों Lists में शिक्षा और शिक्षण संस्थानों से जुड़े विषय शामिल हैं। इस प्रकार, उच्च-शिक्षा की जिम्मेदारी, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को दी गई है। आज केन्द्र और राज्यों के बीच उच्च-शिक्षा के क्षेत्र में एक नया समन्वय स्थापित हो रहा है। उत्तराखंड इसका एक अच्छा उदाहरण है।

7. उच्च-शिक्षा की गुणवत्ता के तीन मुख्य स्तंभ हैं - शिक्षक, प्रबंधन तथा विद्यार्थी। विद्यार्थी की भूमिका तोकेवल शिक्षा ग्रहण करने वाले की होती है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी प्रबंधन और शिक्षकों पर ही है।

देवियों और सज्जनों,

8. हर बच्चे में कोई-न-कोई प्रतिभा अवश्य होती है। उस प्रतिभा की तलाश करने और निखारने की ज़िम्मेदारी शिक्षकों तथा शिक्षण संस्थानों की होती है। उन्हें यह देखना है कि कोई भी बच्चा गरीबी,दिव्यांगता, या किसी भी अन्य कमी के कारण शिक्षा के अवसर से वंचित न रह जाए। ज्ञान देने के साथ-साथ, संस्कारों के बीज बोना भी, शिक्षकों की ही ज़िम्मेदारी है। लेकिन विद्यार्थियों को प्रेम और संस्कार भी वही शिक्षक दे सकता है जिसमें स्वयं त्याग और संवेदनशीलता मौजूद हो। हमारे देश में आदर्श शिक्षकों के अनेक प्रेरक उदाहरण उपलब्ध हैं।

9. शिक्षा और नैतिकता के बल पर राष्ट्र निर्माण के आदर्श के रूप में मैं प्राय: चाणक्यके एक प्रसंग का उल्लेख किया करता हूँ। कहा जाता है कि चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, अपनी प्रतिभाद्वारा,वहीं प्राचार्य औरकुलपति बने, और अंतत:, मौर्य साम्राज्य केनिर्माता औरमहामात्य बने।अत्यंत समृद्ध साम्राज्य के शक्तिशाली महामात्य होने के बावजूद, वेराज्य केसंसाधनों का उपयोग केवल-और-केवल सार्वजनिक कार्यों के लिए ही करते थे। वे अपने पास दो अलग-अलग दीपक रखते थे।शासन से संबंधित कार्य समाप्त होने पर, वे एक दीपक बुझाकर दूसरा जला लेते, जो उनके निजी कार्यों के लिए होता। इसी प्रकार के उच्च आदर्श, उन्होंने जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी स्थापित किए।एक विद्यार्थी, शिक्षक और विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप मेंभी चाणक्य केजीवन को इन्हीं आदर्शों और नैतिक मूल्यों ने, दिशा दी होगी।एक पिछड़े हुए परिवार के बच्चे, चन्द्रगुप्त की क्षमताओं को पहचान कर, आचार्य चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बनाया, और उसकी प्रतिभाओं को ऐसा निखारा, कि वह विश्व इतिहास के महानतम सम्राटों में गिना जाता है। चाणक्य का यह योगदान सभी शिक्षकों के लिए अनुकरणीय है।

10. एक वंचित वर्ग के बालक भीमराव को, डॉक्टर भीमराव आंबेडकर जैसा इतिहास पुरुष बनाने में उनके शिक्षकों की अहम भूमिका थी। वे सतारा के जिस हाई स्कूल में पढ़ते थे, उसमें ब्राह्मण वर्ग से संबन्धित आंबेडकर नाम के एक अध्यापक थे जिन्होंने भीमराव को अत्यधिक प्रेम और और खुले मन से सहायता प्रदान की। अपने उस अध्यापक के प्रति अगाध श्रद्धा प्रकट करने के लिए भीमराव ने उनसे आशीर्वाद की याचना की, तब उस अध्यापक ने अपना उपनाम ‘आंबेडकर’, भीमराव को सदा के लिए दे दिया। जिसके बाद भीमराव ने अपने नाम में‘आंबेडकर’ जोड़ा। वे उस अध्यापक का आजीवन आभार मानते रहे। ऐसे जौहरी शिक्षक के अभाव में शायद हमारा देश एक भारत-रत्न की सेवाओं से वंचित रह गया होता।

11. आधुनिक भारत में डॉक्टर एस. राधाकृष्णन ने, अपने विद्यार्थियों पर ज्ञान और स्नेह की वर्षा करते हुए,उनसे जो स्नेह और सम्मान अर्जित किया था, उसके अनेक संस्मरण पाए जाते हैं। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए, हमारे देश में प्रतिवर्ष डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्म-दिवस, 5 सितंबर को, शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यही नहीं,उन्हें विश्वविद्यालय का कुलपति,देश का उप-राष्ट्रपति और फिर, राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उन्हें भारत-रत्न से भी अलंकृत किया गया।

12. इस संदर्भ में एक और भारत-रत्न, मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, का नाम भी सहज ही याद आता है। अत्यंत सामान्य परिवार से निकलकर एक सफल वैज्ञानिक, और भारत के राष्ट्रपति बनने वाले डॉक्टर कलाम का पूरा जीवन शिक्षा और शिक्षक के महत्व की कहानी है। डॉक्टर कलाम ने स्वयं लिखा है कि आठवीं क्लास में उनके विज्ञान के अध्यापक श्री शिव सुब्रमण्य अय्यर ने ‘चिड़ियाँ कैसे उड़ती हैं’ यह विषय ब्लैक बोर्ड़ पर ड्राइंग बनाकर समझाया। बच्चे नहीं समझ पाए। लेकिन,अय्यर जी नाराज होने की बजाय, बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए, और उन्हें उड़ती हुई चिड़ियों को दिखाकर सारे सिद्धान्त समझाए। कलाम साहब ने उसी दिन से‘रॉकेट साइंटिस्ट’ बनने का सपना देखना शुरू किया। स्वयं डॉक्टर कलाम के अंदर का शिक्षक सदैव सक्रिय रहता था, चाहे वे जहां भी कार्यरत रहे हों। राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होते ही, वे अध्यापन कार्य में लग गए। अपनी आखरी सांस तक, विद्यार्थियों को संबोधित करने वाले,डॉक्टर कलाम,शिक्षा और विद्यार्थियों के प्रति प्रेम का अतुलनीय उदाहरण हैं।

13. आधुनिक भारत के उच्च-शिक्षा का इतिहास, महामना मदन मोहन मालवीय के उल्लेख के बिना पूरा नहीं हो सकता। उन्होंने भारत में एक उच्च-स्तर के विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए, त्याग और तपस्या की अद्भुत मिसाल पेश की है। पूर्णतः नि:स्वार्थ भाव से देश के कोने-कोने में जाकर,उन्होंने संसाधन जुटाए। दूसरे शब्दों में कहें तो भिक्षाटन किया। बिल्डिंग और कैंपस बनाने के साथ-साथ, उन्होंने जगह-जगह से विश्व-स्तरीय विद्वानों और शिक्षकों को बी.एच.यू. में आकर पढ़ाने के लिए प्रेरित किया।

14. संक्षेप में, मैं कहना चाहूँगा कि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन से जुड़े हुए लोगों में नैतिकता, ईमानदारी और प्रमाणिकता अर्थात honesty, morality और integrity के उच्च आदर्शों को आधार बनाने की ना केवल महती आवश्यकता है, बल्कि पहली शर्त है।

देवियों और सज्जनों,

15. आज की दुनिया में प्रासंगिक और उपयोगी उच्च-शिक्षा के लिए हमें विश्वस्तर पर सामंजस्य बनाए रखना है। मैंने अपनी विदेश यात्राओं के दौरान देखा है कि अनेक देशों में भारतीय विषयों से जुड़े अध्ययन केन्द्र सक्रिय हैं। विशेषकर इंडोलॉजी का अध्ययनअनेकसंस्थानों में किया जाता है। इसी प्रकार, हमारे विश्वविद्यालयों में भी रशियन स्टडीज़, ईस्ट-एशियन स्टडीज़, जर्मन स्टडीज़, फ्रैंच स्टडीज़के केन्द्र स्थापित किए जा सकते हैं। मैं चाहूँगा कि केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय इस दिशा में पहल करे।

16. दो दिनों के दौरान, यहाँ होने वाले विमर्श का निष्कर्ष जानने की, मुझे उत्सुकता रहेगी।मैं आशा करता हूँ कि इस आयोजन के परिणाम-स्वरूप, उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में, विश्व-स्तर की उच्च-शिक्षा उपलब्ध कराने में सहायता प्राप्त होगी। उच्च-शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के प्रयासों में आप सबकी सफलता के लिए मैं हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।

धन्यवाद

जय हिन्द!