भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का पंडित रामनारायण वैद्य पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर संबोधन
राष्ट्रपति भवन : 04.12.2017
1. आयुर्वेद के क्षेत्र में योगदान के लिए पंडित रामनारायण वैद्य पुरस्कार प्रदान करने के लिए, आज आपके बीच उपस्थित होकर, मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि आज यह पुरस्कार ऐसे श्रेष्ठ वैद्यों को दिया गया है जो कई वर्षों से आयुर्वेद शिक्षण,अनुसंधान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं।
2. युगों से आयुर्वेद दुनियां को निरोग जीवन के उपाय देता आ रहा है। और इस कार्य में जुड़े वैद्यगण इस प्रक्रिया के मुख्य स्तंभ हैं। आप सबका आयुर्वेद के प्रति योगदान प्रशंसनीय है। आज यहां पुरस्कृत होने वाले सभी वैद्यों को मैं बधाई देता हूं। मैं पंडित रामनारायण आयुर्वेद अनुसंधान न्यास को भी इस पुरस्कार के माध्यम से आयुर्वेद में अनुसंधान एवं अभ्यास को प्रोत्साहित करने के लिए बधाई देता हूं।
3. पंडित रामनारायण वैद्य जी के जीवन के बारे में ज्ञात हुआ कि मात्र सत्रह वर्ष की आयु में उन्होंने औषधि निर्माण का कठिन कार्य प्रारंभ कर दिया था। यह एक सुखद संयोग है कि उन्होंने 1917-18 में ही औषधि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था। 2017-18को उनके अन्वेषण के शताब्दी वर्ष के रूप में देखा जाना चाहिए। आप सब भी इस शताब्दी वर्ष से प्रेरणा लेते हुए युवा पीढ़ी में आयुर्वेद के प्रति रूचि को बढ़ावा देने का एक संकल्प लें। यह पंडित रामनारायण वैद्य जी के आयुर्वेद के प्रति समर्पण को सच्ची कार्यांजलि होगी।
4. दुनियां के प्राचीनतम ग्रन्थ ‘ऋग्वेद' में, आयुर्वेद का कई स्थानों पर उल्लेख है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वेद काल से हीं आयुर्वेद हमारे जीवन का अंग रहा है।धन्वंतरि को आयुर्वेद का आदिदेव कहा गया है। विभिन्न पुराणों में समुद्र मंथन अथवा अमृतमंथन की कथा में भगवान धन्वंतरि का जिक्र आता है। आप सभी आयुर्वेद के ज्ञाता भी निश्चय ही समाज के लिए भगवान धन्वंतरि के प्रतिनिधि हैं।
5. आयुर्वेद जीवन, रोग और स्वास्थ्य के प्रमुख विचारों से जुड़ी विभिन्न वैदिक श्रुतियों के आधार पर विकसित हुआ है। हजारों वर्षों की साधना और ऋषियों के अनुसन्धान ने ‘प्रकृति से जीवन’ के इस रहस्य को ढूंढा है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है। प्राचीन काल में विकसित ‘चरक संहिता’ और ‘सुश्रुत संहिता’ आयुर्वेद के वे प्रमुख ग्रंथ हैं जो आज भी अपने पूर्ण रूप में उपलब्ध हैं। आयुर्वेद के अनुसार,स्वास्थ्य को जीवन के चार पुरुषार्थों -धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए जरूरी माना गया है।
वैद्यगण,
6. हमें यह विचार करने की आवश्यकता है कि आखिरकार आयुर्वेद आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के साथ किस प्रकार और अधिक उपयोगी साबित हो सकता है। इसका उत्तर, मनुष्य के प्रति आयुर्वेद के नजरिए में मिलता है। आयुर्वेद मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं का और इन पहलुओं के आपसी संबंध का ‘एकीकृत दृष्टिकोण’ प्रदान करता है। इसी कारण, आयुर्वेद स्वस्थ रहने की एक समग्र चिकित्सा प्रणाली है।
7. मैं मानता हूँ कि वैद्य होने के नाते आप सबके ऊपर एक और विशेष जिम्मेदारी है। भारत के जंगल,पर्वत और गांव जड़ी-बूटियों का भंडार हैं। औषधीय पौधों एवं जड़ी-बूटियों का मुख्यस्रोत वन है। देश की 90 प्रतिशत औषधीय वनस्पतियां एवं जड़ी-बूटियां वनों में उगने वाले पौधों से ही प्राप्त होती हैं। भारत के जंगलों में पांच हजार से अधिक जड़ी-बूटियां पायी जाती हैं। इस अमूल्य भंडार को बचाना और बढ़ाना, प्रकृति एवं आयुर्वेद के लिए समय की मांग है। औषधीय पौधों एवं जड़ी-बूटियों के संरक्षण के प्रति लोगों को संवेदनशील और जागरूक बनाने की जरूरत पर जोर दिया जाना चाहिए। मुझे खुशी है कि ‘राष्ट्रीय मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड’ और ‘वन विभाग’ द्वारा जड़ी-बूटियों की पैदावार बढ़ाने तथा उसके संरक्षण के लिए बेहतर प्रयास किये जा रहे है।
8. औषधीय पौधों को जन-साधारण द्वारा बागवानी तक पहुँचाना तथा उसके उपयोगिता के बारे में जागरूक करना भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। साथ हीं हमें जड़ी-बूटियों की गुणवत्ता को कायम रखना चाहिए और उनका मानकीकरण करना चाहिए,ताकि ये औषधीय पौधे चिकित्सा के कायदों के अनुकूल साबित हो सकें।
9. आयुर्वेद और योग, मन और शरीर के बीच के अटूट संबंध पर आधारित हैं। स्वस्थ शरीर के बगैर, स्वस्थ मन या स्वस्थ मन के बगैर स्वस्थ शरीर की कल्पना मुश्किल है। हमें भावी पीढ़ियों को, व्यक्तित्व के दोनों पहलुओं, यानि मानसिक और शारीरिक, दोनों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
10. दुनियां के अन्य देशों में भी यह मान्यता बढ़ रही है कि स्वस्थ होने के लिए मन और शरीर दोनों का ही स्वस्थ होना आवश्यक है। हमारे बात-चीत में भी ‘तबियत खराब होना’ और ‘मन ख़राब होना’ अलग-अलग भाव को दर्शाता है। अपने देश में मन और शरीर की अलग-अलग अवस्थाएं बताई गई हैं। मन और शरीर का संबंध जब संतुलित होता है तभी मनुष्य अपने आध्यात्मिक स्वरूप को जान सकता है और उसका विकास कर सकता है।
11. आज विश्व भौतिकतावाद की तरफ बढ़ रहा है। हमारे जीवन में तनाव है, स्पर्धा है, एक भाग-दौड़ है। ऐसे में शायद आयुर्वेद लोगों को उनके आध्यात्मिक स्वरूप से अवगत करा सकता है और इन सभी समस्याओं से राहत भी दिला सकता है।
12. आयुर्वेद वर्तमान में व्याप्त रोगों की रोकथाम का, उपचार का और उनके प्रबंधन का एक सशक्त माध्यम बने, यह आप सबकी जिम्मेदारी है। खान-पान की गड़बड़ी, बदलती हुई जीवनशैली, प्रदूषण आदि के कारण नये-नये रोग पैदा हो रहे हैं। हृदय रोग, बी. पी, डायबिटीज, कैंसर, गठिया जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। दुनियां भारत से वैकल्पिक चिकित्सा के तरीकों की उम्मीद लगा रहा है। ऐसे में, आयुर्वेद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
13. मुझे बताया गया है कि सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा, किए गए Pre-clinical और Clinical Trials ने दर्शाया है कि संभवतः आयुर्वेदिक दवाएं डायबिटीज टाइप 2 (Diabetes Type 2),ओस्टियो आर्थराइटिस (Osteoarthritis) और रूमेटोइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) के नियंत्रण में मदद कर सकती हैं। केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद और CSIR-की संस्थासीमैप, लखनऊ द्वारा डायबिटीज नियंत्रण के लिए विकसित आयुर्वेदिक दवाएं आज बाजार में उपलब्ध हैं। मुझे बताया गया है कि सीमैप, लखनऊद्वारा विकसित दवा की प्रमाणिकता की जांच के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की सहायता से और भी Clinical Trials किए जा रहे हैं। संपूर्ण विश्व के लिए डायबिटीज एक बड़ी चुनौती है,यदि आयुर्वेदिक दवाएं डायबिटीज के प्रबंधन में अपनी उपयोगिता साबित कर देती हैं तो यह डायबिटीज की चुनौती से निपटने में आयुर्वेद का एक बहुत बड़ा योगदान होगा। मुझे आशा है कि अनुसंधान के द्वारा अन्य बीमारियों के निवारण एवं प्रबंधन के लिए भी आयुर्वेदिक समाधान सामने आएंगे।
14. भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से आयुर्वेद के साथ-साथ चिकित्सा की अन्य प्रणालियों जैसे यूनानी, सिद्धा, नैचुरोपैथी और होमियोपैथी को बढ़ावा देने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है। भारत का प्रथम अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान हाल ही में, दिल्ली में, स्थापित किया गया है। पिछले तीन वर्षों के दौरान, आयुष मंत्रालय ने देश में 66 नए आयुष अस्पताल स्थापित करने के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता दी है। इन अस्पतालों का निर्माण व गठन कार्य विभिन्न स्तरों पर चल रहा है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार करने के लिए गत दो वर्षों से ‘धन्वंतरि जयंती’ को‘राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस’के रूप में मनाया जा रहा है।
आचार्यवृन्द,
15. मुझे विश्वास है कि आप सब इसी तरह आयुर्वेद के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहेंगे। ‘स्वस्थ भारत’ के ध्येय के प्रति समर्पित रहेंगे। मैं एक बार फिर सभी पुरस्कृत वैद्यों एवं उनके परिवारजनों को हार्दिक बधाई देता हूं। मैं ‘पंडित रामनारायण आयुर्वेद अनुसंधान न्यास’ की भी सराहना करता हूं और आयुर्वेद संबंधित उनके सभी भावी प्रयासों के सफल होने की कामना करता हूं।