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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संत कबीर एकेडमी और रिसर्च सेंटर के लोकार्पण के अवसर पर संबोधन

मगहर, संत कबीर नगर :05.06.2022

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साहिब बंदगी!

संत कबीर एकेडमी और रिसर्च सेंटर के लोकार्पण के अवसर पर, आज, कबीर साहब की पुण्य-भूमि मगहर में आप सबके बीच आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है।

अपने सार्वजनिक जीवन के दौरान, संत शिरोमणि कबीर से जुड़े अनेक स्थलों की यात्रा का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है। बिहार के राज्यपाल के रूप में मुझे, वाराणसी स्थित संत कबीर की तप-स्थली के दर्शन का सुअवसर मिला था। भारत के राष्ट्रपति के रूप में, वर्ष 2017 में, मध्य प्रदेश के भोपाल में आयोजित कबीर महोत्सव में और इसके बाद वर्ष 2018 में सागर में स्थित कबीर आश्रम के कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर भी मुझे प्राप्त हुआ था। उसी वर्ष, हरियाणा के फतेहाबाद में संत कबीर प्रकटोत्सव में मैंने सहर्ष भाग लिया। इन अवसरों पर मैंने, संत कबीर के अनुयायियों का भारी उत्साह अपनी आंखों से देखा है। और आज, बड़ी संख्या में यहां उपस्थित आप सभी लोगों का समर्पण और लगन देखकर, मुझे गौरव का अनुभव हो रहा है।

मेरे लिए यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि वर्ष 2003 में मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल क़लाम ने यहां आकर कबीर चौरा के दर्शन किए थे। ठीक चार वर्ष पहले, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने, इस रिसर्च सेंटर की आधारशिला रखी थी। उस परियोजना के पूरा होने पर, आज यहां कबीर साहब की चित्र-प्रदर्शनी, ऑडिटोरियम, पुस्तकालय और शोधार्थियों के लिए आवास आदि का लोकार्पण करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है।

आज विश्व पर्यावरण दिवस का शुभ अवसर है। कबीर साहब की समाधि और मजार पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के बाद मैंने समाधि के निकट एक पौधा भी लगाया है। कुछ वर्ष पहले, बोध गया से लाए गए छोटे से बोधि वृक्ष को मैंने राष्ट्रपति भवन में आरोपित किया था। अब वह पौधा बड़ा हो गया है। मुझे विश्वास है कि आज लगाया गया पौधा भी बड़ा होकर कबीर साहब की समाधि पर आने वालों को छाया और शीतलता प्रदान करेगा।

देवियो और सज्जनो,

आज हम सब यहां जिस महान संत का स्मरण कर रहे हैं, वे यद्यपि, पुस्तकीय ज्ञान से वंचित रहे, फिर भी उन्होंने, साधु-संगति से अनुभव-सिद्ध ज्ञान प्राप्त किया। उस ज्ञान को उन्होंने पहले स्वयं जांचा-परखा, आत्मसात् किया और तब लोगों के सामने प्रकट किया। इसीलिए, आज लगभग 650 वर्ष गुजर जाने के बाद भी, उनकी शिक्षाएं जन-साधारण से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग में एक समान लोकप्रिय हैं।

ऐसी मान्यता है कि कबीर साहब ने बंगाल से लेकर पंजाब, राजस्थान और गुजरात तक की यात्रा की। वे, भारत से बाहर ईरान और बलख भी गए। संत कबीर जिस समय प्रकट हुए थे, वह समय, भारत में विदेशी आक्रांताओं के आक्रमणों, मार-काट और लूट-पाट का था। ऐसे विषम वातावरण में, श्रद्धा और विश्वास का, प्रेम और मैत्री का संदेश फैलाने के लिए कबीर साहब, स्वयं लोगों के बीच गए।

संत कबीर, लोगों के साथ सीधा संवाद करते थे। कभी-कभी वे एक दम ठेठ शब्दों का प्रयोग करते थे। उस समय ऊंच-नीच, जात-पांत और छूआ छूत की तंद्रा में निमग्न जनता को झकझोर कर जगाने के लिए ऐसा करना जरूरी भी था। क्योंकि जागृत व्यक्ति ही समाज का कल्याण कर सकता है इसलिए, उन्होंने समाज को पहले जगाया और फिर चेताया।

मेरे प्यारे कबीर-प्रेमियो,

ऐसी मान्यता है कि संतों के आगमन से धरती पवित्र हो जाती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मगहर की यह भूमि भी है। संत कबीर यहां पर लगभग 3 वर्ष तक रहे। ऊसर-बंजर तथा अभिशप्त मानी जाने वाली यह भूमि उनके आगमन से खिल उठी। यहां के लोगों की परेशानी का मुख्य कारण था - यहां जल का अभाव था। कहा जाता है कि कबीर साहब के आमंत्रण पर नाथ पीठ के सिद्ध महापुरुष भी यहां पधारे थे। उनके प्रभाव से यहां का तालाब जल से भर गया। ‘गोरख तलैया’ से आमी नदी की धारा भी प्रवह मान हो गई। अकाल से त्रस्त इस क्षेत्र के लोगों का जीवन संवारने के लिए ही मानो संत कबीर मगहर आए थे। वे सच्चे पीर थे। वे, लोगों की पीड़ा समझते थे और उस पीड़ा को दूर करने का उपाय भी करते थे। उनका कहना था कि-

कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर।

कबीर एक गरीब और वंचित परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन उन्होंने उस वंचना को कभी अपनी कमजोरी नहीं समझा, बल्कि उसे अपनी ताक़त बनाया। वे कपड़ा बुनने का काम करते थे। आप लोग जानते ही हैं कि अच्छा कपड़ा बुनने के लिए सूत कताई और रंगाई से लेकर, ताना-बाना तैयार करने तक बहुत सावधानी रखनी होती है। कबीर ने उस समय के विभाजित समाज में समरसता लाने के लिए सामाजिक मेल-जोल की बारीक कताई की। ज्ञान के रंग से सुंदर रंगाई की। एकता एवं समन्वय का मजबूत ताना-बाना तैयार किया और समरस समाज के निर्माण की चादर बुनी। इस चादर को उन्होंने बहुत सावधानी से ओढ़ा, उसे मैला नहीं होने दिया-

दास कबीर जतन तें ओढ़ी, ज्यो की त्यों धर दीन्हीं चदरिया।

कबीर साहब ने सदैव इस बात पर बल दिया कि समाज के कमजोर से कमजोर वर्ग के प्रति संवेदना और सहानुभूति रखे बिना, मानवता की रक्षा नहीं हो सकती। असहाय लोगों की सहायता किए बिना, समाज में समरसता नहीं आ सकती। मनुष्य मात्र से प्रेम ही सच्चा मानव धर्म है। वे कहते थे कि-जेहि घट प्रेम न संचरे, सो घट जानमसान।

उनका पूरा जीवन, मानव धर्म का श्रेष्ठतम उदाहरण है। उनके निर्वाण में भी सांप्रदायिक एकता का संदेश छिपा था। आज, एक ही परिसर में कबीर की समाधि और मजार बनी हुई है। सांप्रदायिक एकता की ऐसी मिसाल दुर्लभ है।

भारत का यह सौभाग्य रहा है कि समाज में समय-समय पर उत्पन्न हो जाने वाली कुरीतियों और असमानताओं को दूर करने के लिए ऋषि-मुनि, आचार्य-सदगुरु, समाज-सुधारक और संत प्रकट होते रहे हैं। इसी परंपरा में संत कबीर ने, अपने युग में प्रचलित अनेकानेक विचारधाराओं को समन्वित करके, उन्हें सहज लोक-बानी में प्रस्तुत किया।

हमारे समाज ने, उनकी बानी और शिक्षा को दिल से अंगीकार किया। यह देश हमेशा ही अपने में सुधार के लिए तत्पर रहा है। इसी कारण, जब दुनिया की अनेक बड़ी-बड़ी सभ्यताओं का नामो निशान मिट गया, तब हमारा भारतवर्ष, हजारों वर्ष की अटूट विरासत को लेकर, आज भी, अपने पांवों पर मजबूती से खड़ा है।

देवियो और सज्जनो,

कबीर के समय में, ऐसी मान्यता थी कि काशी में शरीर छोड़ने वाले लोग स्वर्ग में जाते थे, और मगहर में मरने वाले लोग नरक में जाते थे। इस अंधविश्वास को झूठा साबित करने के लिए, कबीर दास जी अपने अंतिम दिनों में मगहर चले आए। वे एक महान संत थे, सहज संत थे। सहज होना, वास्तव में बहुत कठिन होता है। आसक्ति आसानी से नहीं छूटती। कबीर साहब कहते थे कि –

सहज-सहज सब ही कहें, सहज न चीन्हे कोय,

जिन सहजै विषया तजी, सहज कहीजै सोय।

संत कबीर यह मानते थे कि ईश्वर कोई बाहरी सत्ता नहीं है। वह तो कण-कण में व्याप्त है। उसे बाहर क्यों ढूंढ़ा जाए, वह तो हमारे अंदर है, बिल्कुल उसी तरह जैसे कस्तूरी का वास हिरण की नाभि में होता है-

कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूढ़े बन मांहि,

ऐसेहि घट-घट राम हैं, दुनिया देखत नाहिं।

कबीर ने समाज को, समानता और समरसता का मार्ग दिखाया। उन्होंने कुरीतियों, आडंबरों और भेद-भाव को दूर करने का बीड़ा उठाया और गृहस्थ जीवन को भी संतों की तरह जिया। निकट अतीत में, वैसा ही जीवन, संत रविदास और गुरु नानक ने व्यतीत किया। संत कबीर की पवित्र वाणी ने, सुदूर पूर्व में श्रीमंत शंकरदेव से लेकर पश्चिम में संत तुकाराम और उत्तर में गुरु नानक से लेकर छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास तक को प्रभावित किया।

देवियो और सज्जनो,

मुझे प्रसन्नता है कि राज्यपाल के रूप में उत्तर प्रदेश को, श्रीमती आनंदीबेन पटेल का मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। वे, संत कबीर की शिक्षाओं के अनुरूप, अपने आचरण से सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए सजग प्रयास करती रही हैं। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी एक ओर अंध-विश्वास एवं गैर-बराबरी को दूर करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं और, दूसरी ओर, जन-कल्याण के कामों में दिन-रात जुटे हुए हैं। संयोग से आज, योगी आदित्यनाथ जी का जन्म-दिन भी है। मैं, उन्हें बधाई देता हूं और उनके दीर्घायु और यशस्वी होने की कामना करता हूं। मुझे विश्वास है कि उनके नेतृत्व में, उत्तर प्रदेश राज्य, विकास और समरसता के पथ पर मजबूती से आगे बढ़ता रहेगा।

मेरी शुभकामनाएं आप सब के साथ हैं।

धन्यवाद,

जय हिंद!