भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का शिक्षक दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में सम्बोधन
नई दिल्ली: 05.09.2021
आज शिक्षक दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार वितरण समारोह में शामिल होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मुझे और भी अधिक प्रसन्नता होती यदि हम सब एक ही स्थान पर एकत्रित होते। परंतु विगत वर्ष की तरह इस साल भी कोविड की महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों ने हम सबको सामूहिक उपस्थिति से वंचित रखा है।
अपने विशिष्ट योगदान के लिए आज पुरस्कार प्राप्त करने वाले सभी शिक्षकों को मैं हार्दिक बधाई और साधुवाद देता हूं। ऐसे शिक्षकों के विषय में जानकर मेरा यह विश्वास और भी मजबूत होता है कि भावी पीढ़ियों का निर्माण,हमारे सुयोग्य शिक्षकों के हाथों में सुरक्षित है।
यह हम सभी को ज्ञात है कि शिक्षक दिवस का आयोजन,पूर्व राष्ट्रपति, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष में5सितम्बर को मनाया जाता है। डॉक्टर राधाकृष्णन एक दार्शनिक और विद्वान के रूप में विश्व-विख्यात थे। यद्यपि उन्होंने अनेक उच्च पदों को सुशोभित किया, परंतु वे चाहते थे कि उन्हें एक शिक्षक के रूप में ही याद किया जाए। डॉक्टर राधाकृष्णन ने एक श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
सबके जीवन में शिक्षकों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। हर व्यक्ति को अपने शिक्षकों की याद आजीवन रहती है। जो शिक्षक स्नेह और निष्ठा के साथ अपने विद्यार्थियों को निखारते हैं उनके प्रति ऐसे विद्यार्थी सदैव आदर-भाव रखते हैं। आज तक मुझे अपने आदरणीय शिक्षकों की याद आती रहती है। मैं स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस करता हूं कि राष्ट्रपति का कार्यभार ग्रहण करने के बाद, मुझे अपने स्कूल में जाकर, अपने वयोवृद्ध शिक्षकों का सम्मान करने तथा उनका आशीर्वाद लेने का अवसर प्राप्त हुआ था। आप सबके विद्यार्थी भी आप सभी के लिए अपने हृदय में विशेष स्थान रखते हैं, यह मेरा दृढ़ विश्वास है।
मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक वैज्ञानिक के रूप में अपनी सफलता का श्रेय अपने शिक्षकों को दिया करते थे। वे अपने स्कूल के एक अध्यापक के विषय में बताया करते थे जिनके पढ़ाने की रोचक शैली के कारण बचपन में ही उनमें एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनने की ललक पैदा हुई। डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए इतने उत्साहित रहते थे कि उन्हें जब भी अवसर मिलता था वे अध्यापन कार्य में लग जाते थे। ऐसी विभूतियों ने समाज के निर्माण में शिक्षकों के कार्य की महत्ता को रेखांकित किया है।
आप सभी, अपने विद्यार्थियों में, एक स्वर्णिम भविष्य की कल्पना करने और उसके लिए योग्यता अर्जित करने की प्रेरणा जगा सकते हैं तथा उन्हें सक्षम बना सकते हैं ताकि वे अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकें।
शिक्षकों का कर्त्तव्य है कि वे अपने विद्यार्थियों में अध्ययन के प्रति रुचि जागृत करें। संवेदनशील शिक्षक अपने व्यवहार,आचरण व शिक्षण से विद्यार्थियों का भविष्य संवार सकते हैं।
प्रिय शिक्षकगण,
पिछले वर्ष लागू की गई हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत को ग्लोबल नॉलेज सुपर-पावर के रूप में स्थापित करने का महत्वाकांक्षी उद्देश्य निश्चित किया गया है। विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा प्रदान करनी है जो ज्ञान पर आधारित न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में सहायक हो। हमारी शिक्षा-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे विद्यार्थियों में संवैधानिक मूल्यों तथा नागरिकों के मूल कर्तव्यों के प्रति निष्ठा उत्पन्न हो, देश के प्रति प्रेम की भावना मजबूत बने तथा बदलते वैश्विक परिदृश्य में वे अपनी भूमिका के बारे में सचेत रहें।
शिक्षकों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक विद्यार्थी की क्षमता अलग होती है,उनकी प्रतिभा अलग होती है, मनोविज्ञान अलग होता है,सामाजिक पृष्ठभूमि व परिवेश भी अलग-अलग होता है। इसलिए हर एक बच्चे की विशेष जरूरतों, रुचियों और क्षमताओं के अनुसार उसके सर्वांगीण विकास पर बल देना चाहिए।
मेरा मानना है कि हर किसी के व्यक्तित्व का निर्माण प्रारम्भ में उसके माता-पिता एवं शिक्षकों द्वारा शुरू किया जाता है। हमारी परंपरा में प्रत्येक व्यक्ति को सुयोग्य और प्रत्येक वस्तु को उपयोगी माना गया है। किसी को भी अयोग्य या अनुपयोगी नहीं माना गया है। संस्कृत में एक सुभाषित है:
अमंत्रम् अक्षरम् नास्ति, नास्ति मूलम् अनौषधम्
अयोग्य: पुरुषो नास्ति , योजक: तत्र दुर्लभः।
अर्थात
ऐसा कोई अक्षर नहीं है जिसके प्रयोग से सार्थक कथन अथवा मंत्र की रचना न हो सके। ऐसी कोई वनस्पति नहीं है जिसका उपयोग औषधि के रूप में न हो सके। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है , जिसमें योग्यता न हो। लेकिन इन सबका संयोजन करने वाले व्यक्ति ही दुर्लभ होते हैं।
किसी भी समाज में निहित प्रतिभा के संयोजन की प्राथमिक ज़िम्मेदारी शिक्षकों की होती है। एक अच्छा शिक्षक व्यक्तित्व-निर्माता है, समाज-निर्माता है,और राष्ट्र-निर्माता भी है।
हमारे देश में उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्था के उदाहरण उपलब्ध रहे हैं। लगभग 125 वर्ष पहले पश्चिम के विकसित देशों में शिक्षाविद, विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देने के विषय पर वाद-विवाद कर रहे थे तथा‘spare the rod and spoil the child’ की सोच को विश्व के प्रमुख शिक्षण संस्थानों द्वारा अपनाया गया था। उस समय गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा स्थापित विद्यालय,शांतिनिकेतन में, शारीरिक दंड सर्वथा वर्जित था। गुरुदेव मानते थे कि ऐसे दंड का विद्यार्थियों के कोमल मनोमस्तिष्क तथा व्यक्तित्व-विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आज पूरा शिक्षा जगत इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार करता है। इस प्रकार भारतीय परंपरा के संवाहक गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की शिक्षा संबंधी सोच अत्यंत आधुनिक थी। हमें अपनी परंपरा में निहित आधुनिकता को अपनाना है। आपको यह सदैव ध्यान में रखना है कि भय पर आधारित शिक्षा के मुक़ाबले, प्रेम पर आधारित शिक्षा अधिक कारगर सिद्ध होती है।
देवियो और सज्जनो,
पिछले लगभग डेढ़ वर्ष से संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हुए संकट से गुज़र रहा है। इस परिस्थिति में जब सभी कॉलेज और स्कूल बंद थे, तब भी शिक्षकों ने विषम स्थितियों का सामना करते हुए बच्चों की शिक्षा का क्रम रुकने नहीं दिया। इसके लिए शिक्षकों ने प्रयासपूर्वक बहुत कम समय में ही डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करना सीखा और शिक्षा प्रक्रिया को जारी रखा। ऐसे सराहनीय प्रयास करने वाले कुछ शिक्षकों को आज पुरस्कृत भी किया गया है। मुझे बताया गया है कि कुछ शिक्षकों ने अपनी मेहनत और लगन से स्कूलों में उल्लेखनीय बुनियादी सुविधाएं विकसित की हैं। मैं,ऐसे समर्पित शिक्षकों को साधुवाद देता हूं।
समस्त शिक्षक समुदाय से मैं यह अपेक्षा करता हूं कि वे बदलती परिस्थितियों के अनुरूप अपनी शिक्षण पद्धति में भी बदलाव करते रहेंगे। शिक्षकों को सक्षम बनाने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। मंत्रालय ने एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, ‘निष्ठा’ का संचालन आरंभ किया है जिसके अंतर्गत शिक्षकों के लिए‘ऑनलाइन क्षमता निर्माण’ के प्रयास किये जा रहे हैं। इसके अलावा ‘प्रज्ञाता’ अर्थात डिजिटल शिक्षा पर दिशानिर्देश भी एक सराहनीय कदम है जो कोविड महामारी के संकटकाल में भी शिक्षा की गति को बनाए रखने की दृष्टि से गत वर्ष उठाया गया था। इन दिशानिर्देशों के अनुसार ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान करने का रोडमैप साझा किया गया है। विषम परिस्थितियों में भी नए रास्ते तलाशने के लिए मैं केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय की पूरी टीम की सराहना करता हूं।
मुझे इस बात से प्रसन्नता हुई है कि आज पुरस्कृत किए गए 44 शिक्षकों में10महिलाएं शामिल हैं। शिक्षक के रूप में महिलाओं की भूमिका सदैव प्रभावशाली रही है। उन्नीसवीं शताब्दी में ही,भारत के सर्वप्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाकर , विदुषी सावित्रीबाई फुले ने बालिका शिक्षा की दिशा में कालजयी योगदान किया। वे स्वयं भी आजीवन शिक्षा प्रदान करने का पवित्र कार्य करती रहीं। बेटियों की शिक्षा को अप्रतिम योगदान देने के लिए,ऐसी महान विभूति को मैं हृदय से नमन करता हूं और आशा करता हूं कि उनके आदर्श से अनगिनत लोगों को प्रोत्साहन और प्रेरणा प्राप्त होती रहेगी।
अंत में, एक बार पुनः मैं सभी पुरस्कृत शिक्षकों को बधाई देता हूं तथा उनके उज्ज्वल भविष्य की मंगल-कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!