भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का स्वर्गीय श्री श्यामलाल गुप्त पार्षद की प्रतिमा के अनावरण पर सम्बोधन
कानपुर : 06.10.2018
1. झंडा गीत के रचयिता, स्वतंत्रता सेनानी और जन-सेवक स्वर्गीय श्री श्यामलाल गुप्त पार्षद की स्मृति से जुड़े इस समारोह में आकर मुझे बहुत खुशी हुई है।
2. आज़ादी के आन्दोलन में कानुपर नगर का विशेष योगदान रहा है। यह नगर, प्रथम स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान नाना साहब,अज़ीम-उल्लाह खाँ और तात्या टोपे की कर्म-भूमि रहा। और यहीं पर श्री गणेश शंकर विद्यार्थी ने साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए अपना बलिदान दिया था।
3. कानपुर नगर की गिनती आज़ादी की लड़ाई में शामिल उन चुनिंदा नगरों में की जाती है जहां पर नरम और गरम- दोनों विचार-धाराओं को जनता से भर-पूर सहयोग मिला। शचीन्द्रनाथ सान्याल ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी की रूप-रेखा यहीं पर बनाई थी। चन्द्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह को भी कानपुर ने अपनाया था। यहां पर प्रकाशित‘प्रताप’ और‘वर्तमान’ जैसे जागरूक समाचार-पत्रों ने जन-जागरण के माध्यम से आज़ादी की लड़ाई को आगे बढ़ाया।
4. यहीं पर श्री छैल बिहारी दीक्षित ‘कंटक' और श्री बाल कृष्ण शर्मा‘नवीन’ ने अपनी देशभक्तिपूर्ण रचनाओं से स्वाधीनता संग्राम सेनानियों का हौसला बढ़ाया। यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री और भारत-रत्न से अलंकृत श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कानपुर में शिक्षा ग्रहण की थी। इसी जिले ने लोकप्रिय झंडागीत देश को दिया और यह कानपुर की धरती का ही आशीर्वाद है कि मुझे,सर्वोच्च पर रहते हुए देश की सेवा का सुअवसर प्राप्त हुआ।
5. झंडागीत के रचयिता श्री श्यामलाल गुप्त जी का जन्म नरवल में 09 सितम्बर, 1896 को हुआ था। वे, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से देश की आज़ादी के संघर्ष में शामिल हुए। उन्होंने असहयोग आन्दोलन और नमक सत्याग्रह जैसे अनेक आन्दोलनों में हिस्सा लिया और आठ बार जेल गए।
6. ऐसा कहा जाता है कि राष्ट्र-प्रेम और कविता के गुण श्री गुप्त में बचपन से ही थे। पांचवीं कक्षा में पढ़ते हुए ही उन्होंने अपनी पहली कविता लिख ली थी। वे, ‘रामायण’ यानि कि रामचरित मानस के मर्मज्ञ थे।
7. श्री श्यामलाल गुप्त, अपने हक़ के लिए संघर्ष करने से पीछे नहीं हटते थे और बन्धन में रहना उन्हें पसन्द नहीं था। संभवत: इसी कारण उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी थी। अपने देशवासियों की हालत देखकर श्री पार्षद बेचैन हो उठते थे। इसलिए, देश की जनता को जागृत करने के लिए युवावस्था में ही उन्होंने संघर्ष और आन्दोलन का मार्ग अपनाया।
देवियो और सज्जनो,
8. राष्ट्रीय झंडा किसी भी देश की अस्मिता का प्रतीक होता है। इसीलिए, गांधी जी के नेतृत्व में देश जब आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब आंदोलनकारियों में जोश भरने के लिए एक झंडा तैयार किया गया। लेकिन इस झंडे के लिए कोई जोशीला गीत तैयार नहीं हो पाया था। अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी ने यह कमी महसूस की और उन्होंने ही युवा श्याम लाल से एक झंडा गीत तैयार करने के लिए कहा।
9. उस समय आज़ादी का आंदोलन तेजी पर था। जलियांवाला बाग की स्मृति में कानपुर में एक बड़ा जलसा होने वाला था। राष्ट्र–प्रेम के जोश से भरे, युवा श्यामलाल ने 1924 में 3 मार्च की रात्रि में गीत लिखा-‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा’।13 अप्रेल,1924 को फूलबाग, कानपुर के मैदान में हजारों लोगों ने एक-साथ यह गीत गाया।आगे चलकर यह गीत देश-भर में झंडागीत के रूप में लोकप्रिय हुआ और देश की आज़ादी के आन्दोलन का अभिन्न अंग बन गया।
10. आज़ादी के बाद, सन् 1952 में श्री श्यामलाल गुप्त पार्षद ने स्वयं लाल किले से झंडागीत का गायन किया। स्वाधीनता संग्राम में उनके महान योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने 1973 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।
11. श्री श्याम लाल गुप्त पार्षद ने झंडागीत के माध्यम से, देश को कई सन्देश दिए। वे चाहते थे कि हमारा यानि भारत का झंडा ऊँचा रहे, विश्व में उसकी विजय हो। वे समझते थे कि इस लक्ष्य को प्राप्तकरने के लिए, केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं थी। अपने देश को असमानता, ग़रीबी, अशिक्षा और भेद-भाव से भी आज़ादी दिलानी थी। समाज में महिलाओं और कमजोर वर्गों को बराबरी का दर्जा दिलाना था। देश को विकास की ऊंचाइयों पर ले जाना था।
12. स्वाधीनता प्राप्त करने के बाद, इन लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयास किए गए। देश ने नई-नई उपलब्धियां हासिल कीं। भारत सरकार ने पिछले 4 वर्ष में देश के हर गांव तक रोशनी पहुंचाने का काम पूरा कर दिया है।‘स्वच्छता अभियान’के अंतर्गत 02 अक्तूबर, 2014 के बाद से अब तक आठ करोड़ अरसठ लाख शौचालय बनाए जा चुके हैं। ढाई साल से कम समय में गरीब परिवारों की महिलाओं को उज्जवला योजना के अंतर्गत रसोई गैस के पांच करोड़ से अधिक कनेक्शन मुफ्त में दिए गए हैं। बालिकाओं की शिक्षा के लिए ‘बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ', और युवाओं के लिए स्टार्ट-अप इंडिया, स्टेण्ड अप इंडिया जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं।
देवियो और सज्जनो,
13. प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखना और उसका संरक्षण करना हमारी परम्परा रही है। नदियों के किनारे सभ्यताओं का विकास और पोषण हुआ है। गंगा, कानपुर के लिए और पूरे उत्तर भारत के लिए जीवन-दायिनी नदी है, हमारी सांस्कृतिक विरासत है और देश की पहचान है। इसीलिए तो कहते हैं कि ‘हम उस देश के वासी हैं,जिस देश में गंगा बहती है’। इसे स्वच्छ और अविरल बनाए रखने से ही हमारा झंडा ऊॅंचा रह सकता है।भारत सरकार ने ‘नमामि गंगे’ के रूप में एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है। गंगा को निर्मल करने और उसे निर्मल बनाए रखने में कानपुर के लोगों के विशेष सहयोग की अपेक्षा है।
14. आपसी सहयोग के साथ प्रयास किए जाएं तो बड़े से बड़े काम संभव हो जाते हैं। आज का यह समारोह ऐसे प्रयासों का एक उदाहरण है।इसके लिए‘पार्षद स्मृति संस्थान’और इससे जुड़े सभी लोग बधाई के पात्र हैं।नरवल के लोगों के लिए यह गौरव की बात है कि उनके पास पार्षद जी जैसे ओजस्वी कवि और स्वाधीनता सेनानी की स्मृतियां हैं।
15. मुझे आज भी स्मरण है कि शिक्षा-प्राप्ति के दौरान जब मुझे यह पता चला कि आज़ादी के संघर्ष में देश-भर के लोगों की जुबान पर रहने वाले झंडागीत की रचना करने वाले श्री श्यामलाल गुप्त पार्षद हमारे ही जिले कानपुर के थे, तो मुझे बहुत गौरव की अनुभूति हुई थी। बाद में, जब मैं राज्य-सभा का सदस्य बना तो तय किया कि पार्षद जी की जन्म-स्थली पर जरूर जाना है। उस दौरान, मैंने अपनी सांसद निधि का उपयोग यहां कुछ विकास कार्य कराने में किया था। मैं मानता हूं कि इस निधि का इससे बढ़कर सदुपयोग नहीं हो सकता था।
देवियो और सज्जनो,
16. जब तक लोकतंत्र रहेगा, तब तक तिरंगा रहेगा और जब तक तिरंगा रहेगा तक तक पार्षद जी की स्मृतियां रहेंगी। सही मायनों में श्री श्याम लाल गुप्त पार्षद अपने झंडा गीत के माध्यम से अमर हो गए। आज मुझे उनकी प्रतिमा का अनावरण करने और उनकी स्मृति को नमन करने का सौभाग्य मिला,इसके लिए मुझे बहुत खुशी है। मैं एक बार फिर पार्षद स्मृति संस्थान का धन्यवाद करता हूं और नरवल वासियों के साथ-साथ आप सभी को बधाई देता हूं।