Back

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का जगद्गुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन

चित्रकूट : 08.01.2018

Download PDF

1. समावेशी शिक्षा की मिसाल कायम करने वाले जगद्गुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के इस दीक्षांत समारोह में उपस्थित सभी पदक विजेताओं, शिक्षकों, अन्य सभी विद्यार्थियों तथा अभिभावकों को मेरी हार्दिक बधाई!

2. चित्रकूट का हमारे देशवासियों के हृदय में एक विशेष स्थानहै।आज यह क्षेत्र नानाजी देशमुख के ग्राम-विकास के प्रकल्पों और जगद्गुरू रामभद्राचार्य जी की दिव्यांग-सेवा के कारण मानव कल्याणऔरसमावेशी विकास के एक प्रमुख केंद्र के रूप में पहचाना जाताहै।इस क्षेत्र में मैं पहले भी आता रहा हूं। राष्ट्रपति के रूप में यहां की अपनी पहली यात्रा के दौरान, इस विश्वविद्यालय में आकर, और सामने बैठे इन होनहार विद्यार्थियों को देखकर, मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।

3. यह विश्वविद्यालय एक अनूठा विद्या-मंदिर है और मानवता की सेवा का एक अभियान भी है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना करने और इसे सुचारु रूप से चलाने के लिए, कुलाधिपति और उनकी टीम को मैं साधुवाद देता हूं।

4. इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति महोदय ने, दिव्यांगता की चुनौतियों का सामना करते हुए, एक भाषाविद, लेखक और वक्ता के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई है।वे स्वयं ही यहां के विद्यार्थियों के लिए एकआदर्श हैं। आपको उदाहरण ढूंढने के लिए कहीं और नहीं जाना है। फिर भी आपके सामने अनेक क्षेत्रों के कई और उदहारण हैं।

5. एक उदाहरण तो इसी उत्तर प्रदेश की अरुणिमा सिन्हा का है, जिससे यहां बैठे सभी विद्यार्थी प्रेरणा ले सकतेहैं।जैसा किआप सब जानते हैं कि ट्रेनदु र्घटना में अरुणिमा को अपना एक पैर गंवाना पड़ा था। लेकिन उन्होने हार नहीं मानी। अदम्य साहस का परिचय देते हुए उन्होने एवरेस्ट समेत, विश्व में अनेक पर्वत-शिखरों पर विजय प्राप्त की है।उत्तर प्रदेश की ही एक और दिव्यांग बेटी, इरा सिंघल, ने वर्ष 2014 में आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और आज IAS अधिकारी हैं।इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले इम्तेहान में पहला स्थान पाने के पीछे, उनकी लगन की जितनी भी तारीफ की जाए, वह कम है।चेन्नई की टिफ़नी बराड़ बचपन से ही सौ प्रतिशत दिव्यांग हैं। वे पढ़ाई के साथ-साथ पैरा-ग्लाइडिंग, स्काईडाइविंग और अन्य साहसिक खेलों में निरंतर भाग लेती रही हैं। उन्होने कई भारतीय भाषाएं भी सीख ली हैं। टिफ़नी अब दिव्यांग-जनों के लिए "विशेष शिक्षा पद्धति” परकाम कर रही हैं।इन उदाहरणों से यह जाहिर होता हैं कि हौसले के आगे विषम से विषम परिस्थितियां भी घुटने टेक देती हैं।

6. मुझे आंध्र प्रदेश के एक गांव के किसान परिवार में जन्मे दिव्यांग उद्यमी, श्रीकांत बोल्ला की सफलता के बारे में सुनकर बहुत प्रसन्नता हुई है। जन्म से ही श्रीकांत की आंखों में रोशनी नहीं थी। पहले उन्होने एक अच्छे विद्यार्थी के रूप में अपनी पहचान बनाई। फिर उन्होने विश्व की सर्वोत्तम शिक्षण संस्थाओं में शुमार, अमेरिका की मेसाचूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालजी में प्रवेश लिया। लेकिन अमेरिका या भारत में नौकरी करने की बजाय उन्होने अपना व्यवसाय शुरू किया। आज वे हैदराबाद में स्थित ‘बोलाण्ट इंडस्ट्रीज़’ के मालिक हैं। अपनी कंपनी में उन्होने सैकड़ों दिव्यांग-जनों को रोजगार दिया है। प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘फ़ोर्ब्स’ के अप्रैल 2017 के अंक में उन्हे तीस वर्ष से कम आयु के एशिया के सबसे सफल तीस उद्यमियों की सूची में शामिल किया गया है। आप इस तरह के अनेक दिव्यांग युवाओं से प्रेरणा ले सकते हैं।

7. मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस विश्वविद्यालय के दिव्यांग विद्यार्थियों ने भी कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं। वे भारत कीअंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग क्रिकेट टीम में चुने गएहैं। उन्होंने पैरा नेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उत्कृष्ट प्रदर्शन कियाहै।ललित कला और संगीत के क्षेत्र में भी विद्यार्थियों ने इस विश्वविद्यालय का गौरव बढ़ाया है। मैं इन सभी विद्यार्थियों को निरंतर आगे बढ़ने के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

8. यह खुशी की बात है कि इस विश्वविद्यालय में रोजगार से जुड़े पाठ्यक्रमों और Information Technology की शिक्षा पर ज़ोर दिया जा रहा है। यह भी प्रसन्नता की बात है कि यहां से निकले लगभग सभी विद्यार्थियों ने रोजगार प्राप्त कर लिया है।

9. हम सबको तब और अधिक खुशी होगी जब यहां के विद्यार्थी अपना उद्यम स्थापित करेंगे और दूसरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेंगे। मेरा सुझाव है कि विश्वविद्यालय द्वारा, स्व-रोजगार के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित किया जाए। एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दिव्यांग-जनों के हित में लागू सभी नीतियों और सुविधाओं के बारे में पूरी जानकारी रखी जाए, विद्यार्थियों को अवगत कराया जाए और सुविधाओं का अधिक से अधिक उपयोग करने में उनकी मदद की जाए।

10. मैं आशा करता हूं कि नियमित विद्यार्थी के रूप में विश्वविद्यालय से विदा लेने वाले सभी छात्र अपने सहपाठियों और अन्य विद्यार्थियों से निरंतर संपर्क बनाए रखेंगे। एक समूह के सदस्य के रूप में आप खुद को अधिक उत्साहित महसूस करेंगे, और यह जुड़ाव आप सबके लिए जीवन भर लाभदायक रहेगा। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि यहां‘पुरा छात्र-संघ’ के नाम से एक alumni association है। मुझे विश्वास है कि आप सब मिलकर ऐसा प्रयास करेंगे, जिससे कि यह एसोसिएशन यहां के विद्यार्थियों को रचनात्मक सहयोग प्रदान करे।

11. अंत में, मैं इस दीक्षांत समारोह में उपस्थित सभी विद्यार्थियों को एक बार फिर बधाई देता हूं। लगन, मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर पदक पाने वाले विद्यार्थियों की मैं विशेष सराहना करता हूं। मैं आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। मुझे विश्वास है कि संकल्प और संस्कार से भरे आप जैसे विद्यार्थी इस विश्वविद्यालय का गौरव बढ़ाते रहेंगे और समाज एवं देश के विकास में अपना योगदान देते रहेंगे।

धन्यवाद

जय हिन्द !