भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नारी शक्ति पुरस्कार समारोह में सम्बोधन
राष्ट्रपति भवन : 08.03.2018
1. आज ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर मैं सभी देशवासियों को अपनी शुभकामनाएँ देता हूँ। साथ ही सभी पुरस्कार विजेताओं को भी हार्दिक बधाई देता हूँ। यह पुरस्कार केवल आपके लिए गौरव का विषय नहीं है, बल्कि आपके साहस ने हम सब को गर्व से सिर ऊंचा करने का सुअवसर दिया है। आपने देश की गरिमा बढ़ाई है। मैं आप के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।
2.‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’, अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही महिलाओं का सम्मान करने और उनकी उपलब्धियों का उत्सव मनाने का दिन है।
3.‘नारी शक्ति पुरस्कार’का उद्देश्य नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इन पुरस्कारों की पात्रता में सबको शामिल किया है। मंत्रालय द्वारा व्यक्तियों के अलावा संस्थानों और संगठनों को भी अपनी-अपनी प्रविष्टियां प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है। इन पुरस्कारों के लिए नामांकन सीधे आमंत्रित किए जाते हैं। इस सब का प्रयोजन यही है कि सभी को समान अवसर मिले।
4. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के कार्यों की जानकारी मुझे मिलती रहती है। देश के, और विशेष रूप से, महिलाओं एवं बच्चों के सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में यह मंत्रालय निरंतर प्रयासरत है।
5. हमारे देश में ऐसे असंख्य उदाहरण मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि महिलाओं ने हर क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, खेल-कूद और यहां तक कि अंतरिक्ष और रक्षा-विज्ञान के क्षेत्र में भी हमारी बेटियों ने बुलंदियों को छुआ है। देश के विकास में महिलाओं का अमूल्य योगदान है।
6. हमारी बेटियों और महिलाओं ने देश और समाज के लिए एक से बढ़कर एक उपलब्धियां हासिल की हैं। ऐसी स्थिति में इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि समाज में लड़कों और लड़कियों के बीच भेद-भाव आज भी विद्यमान है। परंपराओं और रीति-रिवाजों के नाम पर संकुचित मानसिकता के उदाहरण दिख जाते हैं। लड़कों और लड़कियों के पालन-पोषण, शिक्षा और विशेष तौर पर उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रतामें अंतर दिखाई देता है।
7. देश का समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिए इस प्रकार के भेद-भाव को दूर करना अनिवार्य है।
8. पुरुष और महिला में परस्पर ऊंच-नीच का भेद करना एक प्रकार की मानसिक जड़ता है। इस जड़ता को दूर करने की जिम्मेदारी हम सब की है। मेरी समझ से इसका एक ही मूल-मंत्र है कि हम अपनी बेटियों की आवाज सुनें, उसका मर्म समझें और उन्हें वे सारे अवसर प्रदान करें जिनसे उनका जीवन बेहतर बने।
9. हमें अपनी बेटियों की पुकार सुननी ही होगी। हर उस रीति-रिवाज को, हर उस परंपरा को बदलना होगा, जो हमारी बेटियों को बराबरी का अधिकार देने में बाधक बनी हुई हैं।
10. मैं मानता हूं कि भेदभाव या अन्याय का शिकार हो रही हमारी बेटियों की आवाज में आवाज मिलाना और उनके जीवन में सुधार लाना हर नागरिक का कर्तव्य है। उन्हें सुरक्षा का भरोसा देने भर से बात नहीं बनेगी, बल्कि इससे आगे बढ़कर उन्हें वह माहौल उपलब्ध कराना होगा जिसमें वे खुद को सुरक्षित महसूस करें।
देवियो और सज्जनो,
11. असमानता को दूर करने में जागरूकता और शिक्षा का प्रभावी उपयोग करना चाहिए। ज्यादातर सामाजिक अपराधों के पीछे जागरूकता की कमी देखी जा सकती है। महिलाओं के साथ होने वाले बहुत से अपराध सामने ही नहीं आ पाते। उनका साथ देने के लिए पुरुषों को भी जागरूक और संवेदनशील बनाया जाना चाहिए।
12. जागरूकता की कमी का सवाल शिक्षा से जुड़ा हुआ है। शिक्षा व्यक्ति और व्यक्ति के बीच तथा व्यक्ति और समाज के बीच भेद-भाव मिटाने की शक्ति एवं समझ प्रदान करती है। उनमें सही-गलत का भेद करने की विवेक-बुद्धि जाग्रत होती है, जिससे वे निजी स्वतंत्रता में बाधक तत्वों को दूर कर सकते हैं। अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते हैं। दूसरे लोग भी ऐसे लोगों से सीख ले सकते हैं। इस तरह समाज में जागरूकता के प्रसार से महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता दूर होती है।
13. इस मौके पर ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ की चर्चा करना उपयुक्त होगा। भारत सरकार की इस पहल से ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव आया है। लाखों मांओं-बेटियों को धुएं से मुक्ति मिली है। धुएं से होने वाली बीमारियों से बचाव हुआ है। समय की भी बचत हुई है जिसे वेशिक्षा और कौशल विकास में लगा रही हैं। साथ ही, पूरे परिवार के स्वास्थ्य और पर्यावरण को भी लाभ पहुंचा है।
14. मुझे प्रसन्नता है कि केन्द्र और राज्यों के स्तर पर‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाओं को अच्छी सफलता मिल रही है। महिला सशक्तिकरण का मुद्दा राजनीति या धर्म का मुद्दा नहीं है। महिलाओं को न्याय मिलना ही चाहिए। उनका सशक्तिकरण होना ही चाहिए। उसकी शुरुआत घर से हो तो और भी अच्छा है।
15. अपने घर से ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए और बेटियों को समानता का अधिकार देने वाली असंख्य महिलाओं के लगातार प्रयासों से आज समाज में महिलाओं के प्रति व्यवहार में सुधार दिख रहा है। ऐसी ही कुछ चुनिंदा महिलाओं को भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार दिए जाते हैं। उन सभी के विशिष्ट योगदान की सराहना करता हुए मैं महाराष्ट्र की सिंधु ताई सपकाल के कार्यों के बारे में कुछ बताना चाहता हूं। लोग उन्हें श्रद्धावश‘माई’ कहते हैं। वे वास्तव में सैकड़ों बच्चों की मां हैं, पालनहार हैं। बेटी होने के नाते उन्हें भी कुछ असमानताओं का सामना करना पड़ा। लेकिन अपनी स्वयं की बेटी के साथ असमानता का व्यवहार न हो, इसके लिए उन्होंने घर-बार छोड़ दिया। भिक्षाटन किया तो भी साथी भिखारियों के साथ मिल-बांट कर पेट भरा। हजारों अनाथ बच्चों को इस योग्य बनाया कि वे समाज में सम्मान की जीवन जी सकें। उनकी सेवाओं की मैं हृदय से सराहना करता हूं। उनके और उनके जैसी अन्य महिलाओं के कार्यों को आगे बढ़ाने का दायित्व हम सब का है।
16. इस समारोह का उत्साहपूर्ण माहौल यह भरोसा जगाता है कि देश में महिला सशक्तिकरण का अभियान मज़बूत होता जा रहा है। नारी शक्ति पुरस्कार पाने वालों के साथ-साथ यहां उपस्थित आप सभी इस दिशा में जागरूकता को आगे बढ़ाएंगे, इसकी मुझे पूरी उम्मीद है।
17. मैं चाहता हूं कि 8 मार्च केवल एक दिवस विशेष बनकर न रह जाए, बल्कि यह दिवस उस सामूहिक संकल्प का आधार बने, जिससे महिला व पुरुष के बीच असमानता हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाए।
18. आइए, संकल्प लें कि हम अपने स्तर पर कोई भेद-भाव नहीं करेंगे और दूसरों को भी ऐसे भेद-भाव से दूर रहने के लिए प्रेरित करेंगे।
19. एक बार फिर, मैं आप पुरस्कार विजेताओं को बधाई और सभी महिलाओं को शुभ-कामनाएं देता हूं।