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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का माधवपुर घेड़ मेला-2022 के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन

पोरबंदर : 10.04.2022

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सबसे पहले मैं सभी देशवासियों को आज राम-नवमी के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। रामचरित-मानस में यह उल्लेख आता है किआज के दिन प्रभु श्री राम के जन्म से आनंदित होकर राजा दशरथ ने कहा था कि जिसका नाम सुन लेने मात्र से ही मानव का कल्याण हो जाता है वही प्रभु बालक के रूप में मेरे घर आए हैं। इसी बात को गोस्वामी तुलसी दास ने अपने शब्दों में इस प्रकार लिखा है:

जाकर नाम सुनत सुभ होई, मोरे गृह आवा प्रभु सोई।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को ध्यान में रखते हुए आधुनिक भारत में राम-राज्य की स्थापना का सपना देखा था।

बापू के जन्म-स्थान पोरबंदर के निकट, द्वारकाधीश श्री कृष्ण की जीवन-लीला से जुड़े माधवपुर घेड़ गांव में आयोजित इस मेले का शुभारंभ करना मैं अपना सौभाग्य मानता हूं।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सन 2018 से गुजरात सरकार द्वारा, केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से, प्रति वर्ष इस मेले का आयोजन किया जा रहा है। मुझे बताया गया है कि आज माधवपुर के अलावा गुजरात के लगभग 20 मंदिरों में इसी प्रकार का उत्सव आयोजित किया गया है। यह भी प्रसन्नता की बात है कि इस वर्ष और बड़े पैमाने पर मेले के आयोजन में ‘उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय’ ने भी सहयोग किया है। आजके दिन पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में कई सांस्कृतिक समारोह आयोजित किए जा रहे हैं। मैं आशा करता हूं कि हमारी सांस्कृतिक परंपरा में इस मेले की एक विशेष पहचान रहेगी। इन आयोजनों के लिए मैं, केंद्र सरकार तथा राज्यों के सभी संबन्धित मंत्रियों, अधिकारियों व कर्मचारियों को साधुवाद देता हूं।

मेलों, त्योहारों और तीर्थ स्थलों ने हमारे विशाल देश को प्राचीन काल से आज तक सामाजिक व सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधे रखा है। माधवपुर का यह मेला गुजरात और पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक अभिन्न संबंध से जोड़ता है। वर्तमान में, ऐसे आयोजनों के माध्यम से हमारे समाज को, विशेषकर युवा पीढ़ी को हमारी विरासत, संस्कृति, कला, हस्तशिल्प और पारंपरिक व्यंजनों के बारे में जीवंत परिचय मिलता है तथा पर्यटन काभी विकास होता है।

देवियो और सज्जनो,

कल मैंने एकता नगर– केवड़िया में न्यायपालिका से जुड़े वरिष्ठ लोगों के साथ विचार-विमर्श किया। सरदार वल्लभभाई पटेल की ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ ने गुजरात के उस क्षेत्र को एक राष्ट्रीय तीर्थ बना दिया है। सरदार पटेल के कार्यों तथा जीवन-मूल्यों के बारे में जानकर प्रत्येक भारतवासी को राष्ट्र-निर्माण में अपना योगदान देने की प्रेरणा मिलती है।

बापू और सरदार पटेल की इस धरती का विशेष आकर्षण मुझे सदैव अपनी ओर खींचता रहा है। 1970 के दशक में, जब मैं मोरारजी भाई का निजी सचिव था, तब से मेरा गुजरात आना शुरू हुआ और यह सिलसिला आजभी चल रहा है। राष्ट्रपति के रूप में भी मैं, इससे पहले, गुजरात की लगभग 12 यात्राएं कर चुका हूं। और प्रत्येक यात्रा ने मुझे कुछ न कुछ नए और अविस्मरणीय अनुभवों से समृद्ध किया है। गुजरात के लोगों की आत्मीयता और स्नेह की अमिट छाप मेरे मानस पटल पर सदैव अंकित रहेगी।

ईश्वर की कृपा से आज मुझे द्वारका-धाम का दर्शन करने तथा बांके-बिहारी श्रीकृष्ण और रुक्मिणी जी के दैवी मिलाप से जुड़े इस मेले का शुभारंभ करने का अवसर प्राप्त हुआ है। मुझे यह बताया गया है कि आज माधवपुर के लोगों ने प्रभात फेरी में हिस्सा लिया है और अगले दो दिनों के दौरान वे माधव राय जी के मंदिर से ब्रह्म कुंड तक जाने वाली ‘फुलेकू’ में बारातियों के रूप में शामिल होंगे।

मुझे बताया गया है कि यहां मुरलीधर श्री कृष्ण और रुक्मिणी जी के विवाह से जुड़े समारोहों का शुभारंभ रामनवमी के दिन किया जाता है, द्वादशी के दिन विवाह संपन्न होता है और त्रयोदशी के दिन विदाई होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जन्मोत्सव को मुरलीधर श्रीकृष्ण के विवाहोत्सव से जोड़ने के पीछे देशवासियों की वह सामूहिक चेतना है जो सृष्टि चलाने वाले विष्णु जी के दोनों अवतारों को मूलतः एक ही परमात्मा के दो रूपों की तरह देखती है। त्रेता युग की आवश्यकताओं के अनुसार धनुर्धारी रामचन्द्र जी मर्यादा, त्याग और तपस्या का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। तत्पश्चात द्वापर के अपेक्षा कृत जटिल युग में गोवर्धन गिरधारी श्री कृष्ण, अपनी ईश्वरीय लीलाओं और अनेक कलाओं से जन-मन को आश्वस्त करते हुए महाभारत के युद्ध में अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाते हैं तथा धर्म की स्थापना करते हैं। इस प्रकार सृष्टि के पालन-हार विष्णु जी के दोनों रूपों की एकता का यह मेला एकत्व के साथ-साथ समय की चुनौती केअनुसार पुरुषार्थ करने का संदेश भी देता है।

भारत की सांस्कृतिक एकता कितनी प्राचीन है और हमारी सामाजिक समरसता की जड़ें कितनी गहरी थीं, इसका उदाहरण लीलाधर श्री कृष्ण और रुक्मिणीजी के विवाह केआख्यान में दिखाई देता है। आज के उत्तर प्रदेश में जन्मे श्रीकृष्ण, गुजरात को अपनी कर्मस्थली बनाते हैं और आज के पूर्वोत्तर क्षेत्र की एक राजकुमारी रुक्मिणी जी को जीवन-संगिनी बनाते हैं। लोक-मान्यता के अनुसार माधवपुर घेड़ गांव की यह धरती उन दोनों के मिलाप की साक्षी रही है।

देवियो और सज्जनो,

मुझे यह देखकर बहुत प्रसन्नता होती है कि गुजरात के उद्यमशील लोग परंपरा और आधुनिकता में तालमेल बैठाकर आगे बढ़ते रहते हैं। Sustainable Development Goals को हासिल करने की दिशा में विभिन्न राज्यों के प्रदर्शन का आकलन करके नीति आयोग ने वर्ष 2020-21 के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत की है। उस रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात नेहर आयुवर्ग के लोगों को स्वास्थ्य-पूर्णजीवन की सुविधा प्रदान करने के पैमाने पर देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। साथ ही, Industry, Innovation और Infrastructure के समावेशी विकास के मानक पर भी सभी राज्यों की तुलना में गुजरात का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा है। ऐसी उपलब्धियों के लिए गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र भाई पटेल, गुजरात सरकार की पूरी टीम तथा राज्य के सभी निवासियों को मैं बधाई देता हूं।

इस मेले का आयोजन, तथा साथ ही, गुजरात के अनेक मंदिरों और पूर्वोत्तर भारत के अनेक स्थानों में, इस अवसर पर विभिन्न समारोहों का आयोजन, भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक एकता का महोत्सव है। मुझे प्रसन्नता है कि पूरे देश के लोगों को भावनात्मक स्तर पर जोड़ने का यह उत्सव आजादी के अमृत महोत्सव के साथ ही मनाया जा रहा है। हम सब जानते हैं कि गुजरात में ही 12 मार्च, 2021 को साबरमती आश्रम से आजादी के अमृत महोत्सव का शुभारंभ हुआ था। यह महोत्सव मूलतः राष्ट्र गौरव की भावना को मजबूत बनाने के उद्देश्य से मनाया जा रहा है। माधवपुर घेड़ मेला से जुड़े सभी उत्सव भी भारत की एकता और श्रेष्ठता को रेखांकित करते हैं।

आज से 25 वर्ष बाद हमारे देशवासी भारत की आजादी की शताब्दी का उत्सव मनाएंगे। मैं आज की युवापीढ़ी से आग्रह करता हूं कि देश की एकता और श्रेष्ठता को और मजबूत बनाते हुए सन 2047 के स्वर्णिम भारत के निर्माण का संकल्प लें और उस संकल्प को सिद्धि तक ले जाएं।

धन्यवाद,

जय-जय गरवी गुजरात!

जय हिन्द!