भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का ‘भारत विकास परिषद’ की अखिल भारतीय राष्ट्रीय समूह-गान प्रतियोगिता (राष्ट्र-आराधन) के अवसर पर सम्बोधन
दिल्ली : 10.12.2017
1. देश-भक्ति की भावना से भरे गीतों को बहुत ही अच्छी तरह से प्रस्तुत करने और समूह-गान प्रतियोगिता में आज पुरस्कार प्राप्त करने के लिए, मैं इन तीनों समूहों के सभी बच्चों को बधाई देता हूं। साथ ही, मैं सभी पचास हज़ार विद्यालयों के उन पांच लाख बच्चों की भी सराहना करता हूं, जिन्होने विभिन्न स्तरों पर समूह-गान प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे एक अभियान का रूप दिया है।
2. पचास वर्षों से, समूह-गान के आयोजन के जरिये, देश-प्रेम की चेतना का स्वर जगाते रहने के लिए मैं ‘भारत विकास परिषद’ के सदस्यों की सराहना करता हूं। जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक बच्चे इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते रहे हैं तब हमें यह पता चलता है कि इस आयोजन की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं। देश-भक्ति से जुड़े इस आयोजन की सफलता हर भारतवासी के लिए बहुत ही खुशी की बात है।
3. भारतीयता की भावना को मजबूत बनाने के उद्देश्य से, स्वामी विवेकानंद की जन्म-शताब्दी के अवसर पर, सन 1963 में इस परिषद का गठन किया गया था। यह खुशी की बात है कि लगभग पचपन वर्षों से यह परिषद अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित रहते हुए आगे बढ़ती रही है। इस वर्ष के आयोजन को "राष्ट्र-आराधन” का नाम देकर, आपने देश-प्रेम के आदर्श को रेखांकित किया है। संस्कृत, हिन्दी और लोक-भाषाओं में समूह-गान की प्रतियोगिता आयोजित करके आपने देश-भक्ति की भावना को व्यक्त करने का एक बहुत ही अच्छा मंच प्रदान किया है जहां परंपरा, आधुनिकता और देश की माटी से जुड़ी शैलियों में, राष्ट्र-प्रेम की भावना मुखरित होती है। देश-प्रेम की अभिव्यक्ति को ऐसा मंच प्रदान करने के लिए मैं आप सबके प्रयासों की सराहना करता हूं।
4. देश-भक्ति के गीतों के बारे में सोचते हुए उस अमर गीत ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ की याद आना स्वभाविक है। आज़ादी की लड़ाई के दौरान, यह गीत सुनकर हर भारतवासी रोमांचित हो जाता था। जब कोई समूह इस गीत को गाते हुए गलियों और सड़कों पर निकलता था तो लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल पड़ते थे और उस समूह में शामिल हो जाते थे। इस गीत को सुनकर सभी देशवासियों में देश के लिए त्याग और बलिदान की लहरें उमड़ने लगती थीं। आज भी यह गीत देश-प्रेमियों में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार करता है। उस समय यह गीत, एक विदेशी झंडे की जगह, हमारे तिरंगे को लहराने का संदेश देता था। आज यह गीत भारत को विश्व में ऊंचा स्थान दिलाने के लिए तन-मन-धन से जुटने की प्रेरणा देता है। यह गीत भारत को फिर से जगद्गुरू के रूप में स्थापित करने के लिए उत्साहित करता है।
5. इस ‘झंडा-गीत’ में तिरंगे से जुड़ी एक पंक्ति है, "इसकी शान न जाने पाये, चाहे जान भले ही जाये”।तिरंगे की शान के लिए बलिदान होने की भावना हमेशा ही सार्थक रहेगीक्योंकि पूरे विश्व में देश का गौरव निरंतर बनाए रखने के लिए हमें इसी भावना से आगे बढ़ते रहना होगा।‘झंडा-गीत’ जैसे समूह-गान, हम सबको एक सूत्र में बांधते हैं और एक खास तरह की हिम्मत और ताकत देते हैं। समूह-गान गाते हुए शिक्षक और विद्यार्थी नई ऊर्जा के साथ अपने दिन की शुरुआत करते हैं; सीमा पर तैनात सिपाही जोश के साथ कदम-ताल करते हैं; मजदूर अपनी थकान भूल जाते हैं; किसान आने वाली फसलों का स्वागत करते हैं और देश-प्रेमी देश पर कुर्बान हो जाते हैं। समूह-गानों की इसी ताकत को देखते हुए हमारी आज़ादी की लड़ाई के दौरान, और उसके बाद भी, प्रभात-फेरी का प्रचलन रहा है।
6. मुझे लगता है कि देश के बहुत से लोग‘झंडा-गीत’ से तो परिचित हैं लेकिन वे उस महान गीतकार के बारे में कम जानते हैं जो यह गीत लिखकर अमर हो गया है। मैं यह बात साझा करने में गर्व का अनुभव करता हूं कि‘झंडा-गीत’ की रचना करने वाले स्व. श्याम लाल ‘पार्षद’ जी कानपुर के नरवल गाँव के निवासी थे। मेरी तरह, यह बात उन सभी व्यक्तियों के लिए गौरव का विषय है जिनकी जन्म-स्थली या कर्म-स्थली कानपुर है।
7. देश-प्रेम की ठोस आधारशिला पर ही एक मजबूत देश का निर्माण होता है। देश-प्रेम की भावना को जीवंत बनाए रखने के लिए आने वाली पीढ़ियों में देश-भक्ति का संचार करते रहना जरूरी है।‘भारत विकास परिषद’ इस जरूरी काम को अंजाम दे रही है।हमारे देशवासियों के जीवन के सभी पहलुओं को देश-प्रेम की भावना से जोड़ने के आप सबके प्रयास सराहनीय हैं।
8. हमारा देश प्राचीन काल से ही पूरे विश्व को गणित, विज्ञान, कला और साहित्य के क्षेत्रों में योगदान देता रहा है। मैं आशा करता हूं कि आपके प्रयासों द्वारा हमारी युवा पीढ़ी, हमारे इतिहास के गौरवशाली बिन्दुओं से उपयोगी शिक्षा ग्रहण करेगी। ऐसे प्रयासों से युवा पीढ़ी में राष्ट्र-गौरव और आत्म-विश्वास की भावना और अधिक मजबूत होती है। इस परिषद द्वारा संस्कार शिविरों का आयोजन भी एक अलग और सराहनीय सोच है। आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ, नैतिकता को युवाओं के जीवन का आधार बनाना जरूरी है। शिक्षित होने के लिए केवल ज्ञान प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है; शिक्षा का असली उद्देश्य अच्छे और नैतिक व्यक्तित्व का निर्माण करना है, जो समाज और देश के लिए अपना योगदान दे सके। अर्थात संस्कारित नागरिक....... अच्छा पति....अच्छी पत्नी....अच्छे पुत्र व पुत्री.... अच्छा शिक्षक.....अच्छा वकील....अच्छा डाक्टर.... अच्छा इन्जीनियर…..अच्छा व्यापारी.....अच्छा राजनेता...।
9. मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि सेवा और संस्कार के मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए इस परिषद ने ‘स्वस्थ, समर्थ, संस्कारित भारत’ की परिकल्पना की है। इस दिशा में निर्धन तथा कमजोर वर्ग के लोगों के लिए इस परिषद द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्राम विकास की अनेक योजनाएंचलाई जा रही हैं। आपके दिव्यांग केन्द्रों में दी जा रही सेवाओं के बारे में जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण, वॉटर मैनेजमेंट और नशा-मुक्ति जैसे मुद्दों पर जन-जागरण के प्रकल्पों को चलाने के लिए इस परिषद के सदस्य प्रशंसा के हकदार हैं। परिषद को एक विशेष अभियान चलाना होगा जिससे स्वच्छता, स्वास्थ्य, और पर्यावरण के क्षेत्रों में लोग अपनी ज़िम्मेदारी समझें और उसके अनुसार अमल भी करें। इन सभी प्रयासों में सफल होने के लिए लोगों को प्रेरित करना पड़ेगा। उन्हे प्रेरित करने के लिए, आप सब देश-प्रेम से ओत-प्रोत‘झंडा-गीत’कीशक्तिकाउपयोगकरसकतेहैं और उसे माध्यम बना सकते हैं। इस गीत को अपनाकर आप अपने प्रकल्पों को और अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ा सकते हैं। यह गीत गाकर हमारे बच्चे बस्तियों में रहने वाले लोगों को आपके उद्देश्यों से जोड़ सकते हैं। केवल बच्चे ही नहीं, सभी देशवासी ‘झंडा-गीत’ गाते हुए फिर से पूरे देश में एक ऐसा जोश पैदा कर सकते हैं जिसके बल पर गरीबी, अशिक्षा, अस्वच्छता और असमानता जैसी समस्याओं से आजादी की लड़ाई में हम सब जल्दी ही विजय प्राप्त कर सकते हैं।
10. मेरी राय में ‘झंडा-गीत’ को प्रभात फेरियों और समूह-गानों के जरिये व्यापक रूप से लोगों में प्रसारित करना एक अच्छा प्रयास होगा और ‘भारत विकास परिषद’ इस प्रयास को आगे बढ़ा सकता है। इसी प्रकार गांव-गांव, नगर-नगर, टोले-मोहल्ले में प्रभात-फेरी के जरिये अन्य समूह-गीतों का प्रचार कर के परिषद द्वारा लोगों को देश-हित में संगठित किया जा सकता है। खासकर, गांव के लोगों को इकट्ठा करने में समूह-गान बहुत प्रभावी सिद्ध होते हैं।
11. ‘भारत विकास परिषद’ के योगदान की मैं सराहना करता हूं। मैं आशा करता हूं कि परिषद के सभी सदस्य इसी उत्साह के साथ आगे बढ़ते रहेंगे और भारत को विश्व में और अधिक ऊंचा स्थान दिलाने में अपना योगदान देते रहेंगे। अंत में, मैं अपने विद्यार्थी जीवन के दिनों की प्रेरणा को देश के हित में आज की युवा पीढ़ी तक और इन बच्चों तक पहुंचाने के लिए‘झंडा-गीत’ की उन पंक्तियों को आप सबके साथ दोहराना चाहता हूं जो हमारे देशवासियों को हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी। मैं पंक्तियां बोलूंगा और आप सब कृपया दोहराएंगे: