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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्‍द जी का दिव्यांग-जनों के लिए सहायक उपकरण वितरण और ‘वयोश्री’ योजना के तहत ग्‍वालियर में मेगा कैंप के आयोजन के अवसर पर सम्‍बोधन

ग्‍वालियर : 11.02.2018

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1. अलग-अलग श्रेणियों के दिव्यांग-जनों और वरिष्ठ नागरिकों को सहायक यंत्र और उपकरण बांटे जाने के अवसर पर आप लोगों के बीच आकर मुझे बड़ी प्रसन्नता है। इस कार्यक्रम के आयोजन का प्रस्‍ताव मुझे, हरियाणा के राज्‍यपाल श्री कप्‍तान सिंह सोलंकी जी ने किया था। उनके नेतृत्‍व में इंडियन रैड क्रॉस सोसाइटी, हरियाणा द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों को जानने के बाद मैंने इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सहमति दी।

2. आज का समय तेज रफ्तार का समय है। भाग-दौड़ का समय है। इसी भाग-दौड़ में से कुछ समय परिवार के लिए निकालना होता है। जिनके परिवार में कोई दिव्‍यांग सदस्‍य है, उन को अपना ज्‍यादा समय ऐसे दिव्‍यांग सदस्‍य को देना होता है- विशेष रूप से दिव्‍यांग बच्‍चों के माता-पिता को। ऐसे सदस्‍य को पूरे परिवार का सहयोग जरूरी होता है, उन सब की संवेदना जरूरी होती है। संवेदना की जरूरत केवल बच्‍चों को ही नहीं होती, बड़ों को भी होती है। दिव्‍यांगता के बारे में पूर्व जानकारी प्राप्‍त करके और व्‍यवहार में परिवर्तन लाकर दिव्‍यांग जनों की सहायता बेहतर तरीके से की जा सकती है। राज्यों की सरकारें और केन्द्र सरकार भी दिव्यांग-जनों की बेहतरी के लिए आवश्‍यक कदम उठा रही है। नए-नए प्रकार के यंत्र और उपकरण तथा आईटी एप्लिकेशन लाकर दिव्यांग-जनों के जीवन को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि एक बाधा मुक्‍त, सुगम्य वातावरण बनाया जाए और इसके माध्यम से बौद्धिक रूप से, कलात्मक रूप से और सामाजिक रूप से सक्षम दिव्यांग-जनों को सामाजिक जीवन के हर पहलू में शामिल किया जाए।

3. सरकारों के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठन भी इस दिशा में सराहनीय काम कर रहे हैं। एलिम्‍को कानपुर, रैडक्रॉस मध्‍यप्रदेश, धरा फाउंडेशन आदि के गहन प्रयास आज यहां दिखाई दे रहे हैं। मुझे बताया गया है कि मुख्‍यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी के नेतृत्‍व में मध्‍य प्रदेश सरकार दिव्‍यांग जनों के लिए आर्थिक सहायता योजना, पेंशन योजना आदि भी चला रही है। श्रीमती आनंदीबेन पटेल जिन्‍होंने अभी कुछ दिन पहले राज्‍यपाल का पद गृहण किया है, अपने सामाजिक कार्यों के लिए प्रख्‍यात हैं। उन्‍होंने गुजरात में समाज के ऐसे वर्गों के लिए सराहनीय कार्य किए हैं।

4. कुछ ऐसे दिव्यांग-जन हैं जो चल-फिर नहीं पाते या जिन्‍हें अन्‍य प्रकार की परेशानी है। उनके लिए सहायक यंत्र और उपकरण मददगार होते हैं। इसके लिए आधुनिक तकनीकों का इस्‍तेमाल करते हुए नए-नए सहायक उपकरण तैयार किए गए हैं। भारत सरकार इनकी खरीद के लिए आर्थिक सहायता देती है। श्री थावर चंद गहलौत के नेतृत्‍व में सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्रालय ने पिछले साढ़े तीन वर्ष के दौरान लगभग साढ़े नौ लाख दिव्यांग जनों को उपकरणों की खरीद के लिए सहायता दी है।

5. दिव्यांग-जनों की बेहतरी के लिए समावेशी शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार के अवसर, स्वास्थ्य की देखभाल, सामाजिक सुरक्षा, पुनर्वास, मनोरंजन के क्षेत्र में राज्‍य सरकारें, केन्‍द्र सरकार और गैर-सरकारी संगठन काम कर रहे हैं। स्कूल, कालेज के साथ-साथ विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में दिव्यांग छात्रों की सुविधा के लिए छात्रवृत्ति स्कीमें चलाई जा रही हैं। उनकी सुविधा के अनुकूल पठन-पाठन सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। फिर भी यह लगता है कि शिक्षकों को ऐसा विशेष प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है जो दिव्यांग छात्रों की जरूरतों के अनुरूप हो। सरकारी और निजी क्षेत्रों में दिव्यांग-जनों के लिए रोजगार की नई-नई संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। वे इन रोजगारों के लिए सही कौशल प्राप्‍त कर सकें, इस हेतु प्रशिक्षण देने के लिए विशेष इन्‍तजाम, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा किए जा रहे हैं।

6. दिव्यांग-जनों को सरकारी नौकरी मिलने से उनको और उनके परिवार को बहुत सहारा मिलता है। भारत सरकार और राज्‍य सरकारें इसके लिए प्रयास भी कर रही हैं। केन्‍द्र सरकार की नौकरियों में दिव्‍यांग जनों के लिए आरक्षित पदों को 3 से बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है। इन पदों को भरने के लिए विशेष अभियान चलाया रहा है।

7. ऐसे अनेक दिव्‍यांग जन हैं जो नौकरी नहीं करते बल्‍कि नौकरी देते हैं। वे न केवल अपने लिए बल्‍कि अपने जैसे दूसरे लोगों के लिए काम के सम्‍मान-जनक अवसर पैदा कर रहे हैं। ऐसे लोग अपने दिव्‍यांग भाई बहनों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।

8. अपने हौसले से आसमान की ऊंचाइयों को छूने वाली चेन्‍नई की प्रीति श्रीनिवासनका नाम आपने सुनाहोगा। वे अंडर नाइन्‍टीन क्रिकेट का चमकता सितारा थीं और चैम्‍पियन तैराक भी थीं। लेकिन अचानक एक दुर्घटना में उनके शरीर का निचला हिस्‍सा प्रभावित हो गया। उनकी हालत बिगड़ गई। लेकिन उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी और व्‍हील चेयर पर रहने के बावजूद ‘सोल फ्री’ नाम की एनजीओ बनाई। आज वे अपने साथी दिव्‍यांग जनों की प्रेरणा का स्रोत बन गईहै। दीपा मलिक और सज्‍जन सिंह गुर्जर ने अपनी हिम्‍मत और लगन से यह दिखा दिया है कि यदि पक्‍का इरादा कर लिया जाए तो कोई भी लक्ष्‍य प्राप्‍त किया जा सकता है।

9. प्रसिद्ध नृत्‍यांगना सुधा चन्‍द्रन ने अपने संकल्‍प के बल पर शास्‍त्रीय नृत्‍य के क्षेत्र में नाम कमाया है। अपने पैरों की कमजोरी को उन्‍होंने अपनी ताक़त में बदल दिया।

10. अभी कुछ दिन पहले मैं चित्रकूट के जगद्गुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय में गया था। इस विश्‍वविद्यालय में दिव्‍यांग विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रकार के शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। यहां से शिक्षा प्राप्‍त करके दिव्‍यांग युवा जीवन के हर क्षेत्र में नाम रोशन कर रहे हैं। इस विश्‍वविद्यालय के कुलपति ने स्‍वयं दिव्‍यांगता की चुनौतियों का सामना किया है। आज वे एक भाषाविद्, लेखक और नामी वक्‍ता हैं। वे अपने विद्यार्थियों के लिए और सभी दिव्‍यांग भाई-बहिनों के लिए एक आदर्श हैं।

11. अष्‍टावक्र की कहानी आपने सुनी होगी। अष्‍टावक्र का शरीर जन्‍म से ही 8 जगह से टेढ़ा था, इसी लिए उन्‍हें‘अष्‍टावक्र’ कहते थे। कहा जाता है कि एक बार राजा जनक की सभा में शास्‍त्रार्थ हो रहा था और अनेक ज्ञानी-ध्‍यानी लोग वहां मौजूद थे। जब अष्‍टावक्र उस सभा में आए तो उन्‍हें देखकर सभा में मौजूद लोग उनका उपहास करने लगे। यह देखकर अष्‍टावक्र को आश्‍चर्य हुआ। उन्‍होंने राजा जनक से कहा किजिन्‍हें आप ज्ञानी-ध्‍यानी बता रहे हैं, वे तो शरीर की बनावट देखने वाले लोग हैं, ऊपरी रंग-रूप देखने वाले लोग हैं। इसलिए ये ज्ञानी-ध्‍यानी नहीं हो सकते। राजा जनक स्‍वयं भी विद्वान थे। तत्‍वज्ञान की जिज्ञासा से ही उन्‍होंने यह विद्वत् सभा बुलाई थी। अष्‍टावक्र ने अपने ज्ञान से, तत्‍व–मीमांसा से राजा जनक की जिज्ञासाओं को शांत किया। वहां मौजूद सभी विद्वान उनकी प्रज्ञा से दंग रह गए।

12. इसलिए मेरा यह कहना है कि जहां कहीं भी हम काम कर रहे हैं, जो कुछ भी कर रहे हैं,वे सभी काम करते हुए हम अपने दिव्‍यांग भाई-बहिनों और बच्‍चों की समस्‍याओं को समझें। दिव्‍यांगता के बारे में जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाएं। दिव्‍यांग जनों की प्रतिभा को पहचानने की कोशिश करें। उनकी ऊर्जा को नयी दिशा दें। परिवार की, समाज की और हम सब की जिम्‍मेदारी है कि उनकी प्रतिभा को पहचानें और उसे निखारने में मदद करें।

13. दिव्‍यांग जनों से भी हमें यही कहना है कि अपनी कमजोरी को कभी अपनी जिन्‍दगी पर हावी नहीं होने देना है। अगर कोई कमी है भी, तो उसका मुकाबला करना है। ऐसा कहा जाता है कि दिव्‍यांग जनों को ईश्‍वर कोई न कोई विशेष प्रतिभा जरूर देता है। जो उपकरण आज यहां आपको दिए गए हैं, उन्‍हें केवल साधन मात्र समझना है, उन्‍हें अपना सहारा नहीं बनने देना है। सहारा बनाना है तो अपनी प्रतिभा को,अपने हौसले को, लगन को बनाएं। ऐसी कोई मंजिल नहीं जिस तक आप नहीं पहुंच सकते। ऐसा कोई लक्ष्‍य नहीं जिसे आप नहीं पा सकते। आपके अंदर की जो विशेष प्रतिभा है,उसे पहचानें। जो छिपी हुई ताकत है, उसे जगाएं, सामने लाएं। ये धरती आपकी होगी, आसमां आपका होगा।

धन्यवाद,

जय हिन्द।