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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्‍द जी का जीवाजी विश्‍वविद्यालय के दीक्षान्‍त समारोह के अवसर पर सम्‍बोधन

ग्वालियर : 11.02.2018

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1. भारत अनादि काल से ऋषियों, मुनियों और चिन्‍तकों की कर्म-स्‍थली रहा है। उनकी प्रेरणा से ही देश की यह सोच बनी है कि - विद्या धनम् सर्व धन प्रधानम् अर्थात् विद्या-धन सभी धनों से श्रेष्‍ठ है। कहा जाता है कि इसी परम्‍परा के एक ऋषि ‘ग्‍वालिपा’ के नाम पर ग्‍वालियर नगर का नामकरण हुआ है। ग्‍वालियर को तानसेन और बैजू बावरा का नगर होने का सौभाग्‍य प्राप्‍त है। यह नगर, पूर्व प्रधानमंत्री और भारत-रत्‍न से अलंकृत श्री अटल बिहारी वाजपेयी की कर्म-भूमि भी रहा है। विजया राजे सिंधिया जी के सामाजिक और शैक्षिक जीवन की पृष्‍ठभूमि भी ग्‍वालियर की है। ऐसे नगर में स्‍थित जीवाजी विश्‍वविद्यालय के वार्षिक दीक्षान्‍त समारोह के अवसर पर आपके बीच आकर मुझे प्रसन्‍नता है। विश्‍वविद्यालय की कुलपति को और संकाय सदस्‍यों को मैं बधाई देता हूं। मेरी बधाई उन विद्यार्थियों और शोधार्थियों को भी है जिन्‍हें आज उपाधि प्राप्‍त हो रही है। इससे भी बढ़कर मेरी बधाई इन विद्यार्थियों के माता-पिता को है जिनके परिश्रम और त्‍याग से ही ये विद्यार्थी सफल हुए हैं।

2. किसी भी व्‍यक्‍ति के जीवन को दिशा देने में उसके माता-पिता और शिक्षकों के साथ-साथ समाज की भी महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है। उपाधि प्राप्‍त करने के बाद आप अलग-अलग क्षेत्रों में जाएंगे। नई-नई सफलताएं प्राप्‍त करेंगे। सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए विद्यार्थियों को अपने विश्‍वविद्यालय का मान और समाज का ध्‍यान भी रखना है। इसकी बेहतरी के लिए योगदान करना है। विश्‍वविद्यालय को चाहिए कि अपने पूर्व विद्यार्थियों से संपर्क बनाए रखे। पूर्व विद्यार्थी किसी भी शिक्षा संस्‍था की बहुमूल्‍य निधि माने जाते हैं।

3. मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि कुल 49 स्‍वर्ण पदकों में से 26 स्‍वर्ण पदक बेटियों ने प्राप्‍त किए हैं। पिछले कुछ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि बेटियां शिक्षा के क्षेत्र में, बेटों से भी आगे निकल रही हैं। इससे देश के सुनहरे भविष्‍य का संकेत मिलता है। क्‍योंकि एक बेटी अपने आप में एक संस्‍था है। शिक्षित होकर वह दो परिवारों को शिक्षित कर सकती है। जीवन के अन्‍य क्षेत्रों में भी बेटियां नई-नई उपलब्‍धियां प्राप्‍त कर रही हैं। पिछले वर्ष बालिकाओं की क्रिकेट टीम ने सबका ध्‍यान आकर्षित किया था। अपने जुझारू खेल से विश्‍व क्रिकेट चैंपियनशिप के फाइनल में हार कर भी उन्‍होंने करोड़ों लोगों का दिल जीत लिया था।

4. मुझे बताया गया है कि शुरुआत में विश्‍वविद्यालय में 25 संबद्ध महाविद्यालय थे। अब इनकी संख्‍या 450 तक पहुंच गई है। शैक्षिक दृष्‍टि से इसका बहुत महत्‍व है। विश्‍वविद्यालय की लोकप्रियता भी इससे पता चलती है। जीवाजी विश्‍वविद्यालय के तहत अब लगभग 2 लाख विद्यार्थी शिक्षा प्राप्‍त कर रहे हैं। प्रसन्‍नता की बात यह है कि ग्‍वालियर-चंबल संभाग जैसे क्षेत्र में यह केन्‍द्र शिक्षा के प्रसार का सराहनीय काम कर रहा है। इससे विश्‍वविद्यालय के संस्‍थापकों की सूझ-बूझ का पता चलता है। विश्‍वविद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में उत्‍कृष्‍ट प्रदर्शन किया है, इसीलिए उसे NAAC से ‘ए’ ग्रेड प्राप्‍त हुआ है।

5. यह अत्‍यन्‍त खुशी की बात है कि समाज में आज शिक्षा के प्रति नज़रिया बदल रहा है। इसके पीछे सरकारी प्रयास तो हैं ही, निजी क्षेत्र की भागीदारी और जन-सामान्‍य की बदलती सोच भी इसके पीछे है। बालिकाओं की पढ़ाई पर माता-पिता अब पहले से अधिक ध्‍यान देने लगे हैं। सरकारें भी इस दिशा में गंभीरता से काम कर रही हैं। भारत सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का संदेश दिया है। मुझे बताया गया है कि मध्‍य प्रदेश सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए ‘गांव की बेटी’ और ‘प्रतिभा किरण’ जैसी योजनाएं चलाई हैं। इनसे बालिकाओं की शिक्षा सुगम होने की अपेक्षा है। मध्‍य प्रदेश सरकार की ‘लाड़ली-लक्ष्‍मी योजना’ की भूमिका भी बेटियों की शिक्षा के लिए महत्‍वपूर्ण रही है।

6. मुझे बताया गया है कि विश्‍वविद्यालय दूरस्‍थ शिक्षा कार्यक्रम भी चला रहा है। यह समय इंटरनेट और डिजिटल टैक्‍नोलॉजी का है। कुछ विश्‍वविद्यालय दूरस्‍थ शिक्षा में टैक्‍नोलॉजी का प्रयोग कर रहे हैं। वे अपने यहां ‘MOOC’ यानि कि Massive Open Online Courses चला रहे हैं। शिक्षा केन्‍द्र कितने भी विशाल हों लेकिन उन की प्रवेश क्षमता की एक सीमा होती है और नियमित दाखिला लेकर पढ़ना महंगा भी हो सकता है। ऑनलाइन कोर्स चलाने से दूर-दराज के छात्रों को और पिछड़े तथा निर्धन वर्ग के विद्यार्थियों को लाभ होता है। यह भी हो सकता है कि धीरे-धीरे कक्षा में बैठकर अध्‍ययन करना कम होता जाए और कभी भी, कहीं भी रहते हुए पढ़ाई करना सुविधा जनक और कम खर्च वाला हो जाए। विद्यार्थी घर बैठे या फिर रोज़गार करते हुए ऑनलाइन कोर्स पूरे कर सकते हैं। टैक्‍नोलॉजी का प्रयोग करके विद्यार्थियों को ‘वर्चुअल क्‍लासरूम’ से भी जोड़ा जा सकता है।

7. आगे आने वाला समय Artificial Intelligence का है। ऐसे प्रयास चल रहे हैं कि मशीनों के पास इंसान की तरह सोचने की क्षमता भी हो। अभी तक टैक्‍नोलॉजी का ध्‍यान इस बात पर था कि जो कुछ हम कर रहे हैं, उसे करने में टैक्‍नोलॉजी किस प्रकार सहायता कर सकती है। अब टैक्‍नोलॉजी का ध्‍यान इस बात पर है कि हम सोचते ‘कैसे’ हैं। जीवन के हर क्षेत्र पर टैक्‍नोलॉजी का प्रभाव है और आगे-आगे यह प्रभाव और भी बढ़ता जाएगा। देखना यह होगा कि मशीनों से, टैक्‍नोलॉजी से मानव जीवन सहज और सुगम बने। कहीं ऐसा न हो कि टैक्‍नोलॉजी मानव जीवन को ही नियंत्रित करने लगे। यहीं से शिक्षकों की विशेष भूमिका शुरू होती है।

8. जिन विद्यार्थियों ने आज यहां पदक और अवार्ड प्राप्‍त किए हैं, उनकी मेहनत और लगन सफल हुई है। जो थोड़ा पीछे रह गए हैं, उनके लिए यह अवसर निराशा का नहीं बल्‍कि नए संकल्‍प का होना चाहिए। असफलता की सीढ़ी पर पांव रखकर ऊंचाई हासिल करनी है। ऐसा करना असंभव नहीं है। यदि पक्‍का संकल्‍प कर लें तो कठिन काम भी पूरे होते हैं।

9. शिक्षा प्राप्‍त करने का काम कभी समाप्‍त नहीं होता। यह प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है। विश्‍वविद्यालयी शिक्षा उसका एक महत्‍वपूर्ण पड़ाव है। आपके विश्‍वविद्यालय का ध्‍येय वाक्‍य है- विद्यया प्राप्‍यते तेज: यानि कि विद्या से तेज प्राप्‍त होता है। इस तेज का, ज्ञान का उपयोग देश के लिए, समाज के ग़रीब से ग़रीब व्‍यक्‍ति की बेहतरी के लिए होना चाहिए, समाज को शिक्षित करने के लिए होना चाहिए। इस विश्‍वविद्यालय के हर विद्यार्थी का यह प्रयास होना चाहिए कि उसका ज्ञान इस क्षेत्र की, मध्‍य प्रदेश की और मानवता की सेवा में लगे। यह आपके जीवन का मूल मंत्र होना चाहिए। अपने आचार और विचार से, लगन और परिश्रम से, अपना, अपने परिवार का, विश्‍वविद्यालय का और पूरे समाज का कल्‍याण करने के लिए आप आगे बढ़ें, आपके संकल्‍प सिद्ध हों, अपने जीवन में आप यशस्‍वी बनें, इस के लिए मैं अपनी शुभ कामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

जय हिन्द!