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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय एवं इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर में नई सुविधाओं के शिलान्यास समारोह में सम्बोधन

प्रयागराज: 11.09.2021

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उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज एवं इस परिसर में विभिन्न सुविधाओं से युक्त भवन के निर्माण-कार्य का शिलान्यास करके मुझेअत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। ये दोनों ही कार्य,न्याय प्रदान करने संबंधी व्यवस्था के विकास की दिशा में सराहनीय प्रयास हैं।

विधि-शिक्षण और न्याय-प्रणाली में व्यापक सुधारों के लिए भारत की न्याय-पालिका तथा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मिलकर निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों के लिए केंद्र और राज्यों के स्तर पर विधायिका, कार्य-पालिका और न्याय-पालिका की ओर से योगदान करने वाले सभी लोग प्रशंसा के पात्र हैं।

इतिहास की दृष्टि से, इलाहाबाद हाई कोर्ट, भारत में स्थापित किया गया चौथा हाई कोर्ट है। महत्व की दृष्टि से,यह हाई कोर्ट देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य में न्याय प्रदान करने की ज़िम्मेदारी निभाता है। न्यायाधीशों की संख्या की दृष्टि से,यह देश का सबसे बड़ा हाई कोर्ट है। परंतु इन सभी तथ्यों से अधिक महत्वपूर्ण है इलाहाबाद हाई कोर्ट की वह परंपरा जिसमें महामना मदन मोहन मालवीय, मोती लाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और कैलाश नाथ काटजू जैसे प्रखर व राष्ट्र-प्रेमी अधिवक्ताओं ने इसी परिसर से भारतीय इतिहास के अनेक गौरवशाली अध्याय लिखे हैं। इस हाई कोर्ट के बार और बेंच के प्रबुद्ध सदस्यों ने समाज और देश को वैचारिक नेतृत्व प्रदान किया है।

इसी उच्च न्यायालय में सन 1921 में भारत की पहली महिला वकील सुश्री कोर्नीलिया सोराबजी कोenrollकरने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया था। वह महिला सशक्तीकरण की दिशा में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का भविष्योन्मुखी निर्णय था। पिछले महीने, न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी का एक नया इतिहास रचा गया है। मैंने उच्चतम न्यायालय में तीन महिला न्यायाधीशों सहित 9 न्यायाधीशों की नियुक्ति को स्वीकृति प्रदान की है। उच्चतम न्यायालय में नियुक्त कुल 33 न्यायाधीशों में चार महिला न्यायाधीशों की उपस्थिति न्यायपालिका के इतिहास में आज तक की सर्वाधिक संख्या है। इन नियुक्तियों से भविष्य में एक महिलाCJIबनने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। सामान्यतः महिलाओं में न्याय-प्रकृति का अंश अधिकतम होता है, भले ही इसके कुछ अपवाद भी होते हों। उनमें हर किसी को न्याय देने की प्रवृत्ति, मानसिकता व संस्कार होते हैं। मायका हो, ससुराल हो,पति हो,संतान हो, कामकाजी महिलाएं सबके बीच संतुलन बनाते हुए भी अपने कार्य क्षेत्र में उत्कृष्टता के उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। सही मायने में न्याय- पूर्ण समाज की स्थापना तभी संभव होगी जब अन्य क्षेत्रों सहित देश की न्याय व्यवस्था में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। आज उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को मिलाकर महिला न्यायाधीशों की कुल संख्या 12 प्रतिशत से भी कम है। यदि हमें अपने संविधान के समावेशी आदर्शों को प्राप्त करना है तो न्याय-पालिका में भी महिलाओं की भूमिका को बढ़ाना ही होगा। मैं आशा करता हूं कि देश के इस विशालतम उच्च न्यायालय में महिला अधिवक्ताओं, अधिकारियों और न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि होगी।

एक अधिवक्ता के रूप में मैंने देखा है कि अधिकांश युवा व सामान्य परिवारों के अधिवक्ता, उनके सहायक तथा वादकारी न्यूनतम सुविधाओं के अभाव के कारण अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हैं। इस संदर्भ में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा आज जिन सुविधाओं के लिए निर्माण कार्यों का शुभारंभ किया गया है वे यहां के अधिवक्ताओं तथा उनके सहायकों के साथ-साथ सभी वादकारियों के लिए अत्यंत सहायक सिद्ध होंगी।

यह मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के तीनों अंगों - विधायिका, कार्यपालिका और न्याय-पालिका - से जुड़कर कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ है। न्याय पाने के लिए गरीब लोगों के संघर्ष को मैंने नजदीक से देखा है। न्याय-पालिका से सभी को उम्मीदें तो होती हैं, फिर भी, सामान्यतया लोग न्यायालय की सहायता लेने से हिचकिचाते हैं। न्याय-पालिका के प्रति लोगों के विश्वास को और अधिक बढ़ाने के लिए इस स्थिति को बदलना जरूरी है। सभी को समय से न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, सामान्य आदमी की समझ में आने वाली भाषा में निर्णय देने की व्यवस्था हो , और खासकर महिलाओं तथा कमजोर वर्ग के लोगों को न्यायिक प्रक्रिया में भी न्याय मिले, यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है। यह संभव तभी होगा जब न्याय व्यवस्था से जुड़े सभी stakeholdersअपनी सोच व कार्य संस्कृति में आवश्यक बदलाव लाएं और संवेदनशील बनें।

विधि के समक्ष समता प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 14,तथा जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सुनिश्चित करने वाले अनुच्छेद 21 के तहत, सभी नागरिकों का यह मूलभूत अधिकार है कि न्याय उनकी पहुंच में हो।Access to Justiceका यह मूल अधिकार सुनिश्चित कराना सरकार के सभी अंगों, विशेषकर न्याय-पालिका की सफलता की कसौटी है।

जन-साधारण में न्याय-पालिका के प्रति विश्वास और उत्साह को बढ़ाने के लिए लंबित मामलों के निस्तारण में तेजी लाने से लेकरSubordinate Judiciaryकी दक्षता बढ़ाने तक कई पहलुओं पर अनवरत प्रयासरत रहना समय की मांग है।Subordinate Judiciary के लिए पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था कराने, जजों की नियुक्ति द्वारा वर्किंग जजों की संख्या में समुचित वृद्धि करने तथा बजट के प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने से हमारी न्याय प्रक्रिया को मजबूत आधार मिलेगा। मुझे विश्वास है कि देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय राज्य सरकार के सहयोग से ऐसे सभी क्षेत्रों में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करेगा।

देवियो और सज्जनो,

प्रयागराज की एक प्रमुख पहचान शिक्षा के केंद्र के रूप में रही है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण भूमिका तथा शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रयागराज की प्रतिष्ठा को देखते हुए इस विधि विश्वविद्यालय के लिए प्रयागराज ही सर्वोत्तम स्थान है। विधि विश्वविद्यालय हेतु जमीन उपलब्ध कराने के लिए मैं इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तथा उनकी पूरी टीम की सराहना करता हूं। राज्यपाल महोदया के मार्गदर्शन तथा मुख्यमंत्री जी के सक्रिय निर्देशन में हो रही प्रगति के लिए मैं उन्हें और उनकी टीम को हार्दिक साधुवाद और बधाई देता हूं।

कानून का शासन यानि Rule of Law पर आधारित व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण लीगल एजुकेशन का महत्वपूर्ण योगदान होता है। नॉलेज इकॉनॉमी के इस युग में हमारे देश में नॉलेज सुपर-पावर बनने की महत्वाकांक्षी नीति को कार्यरूप दिया जा रहा है। इसी संदर्भ में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय , प्रयागराज के निर्माण तथा विकास को आगे बढ़ाना चाहिए। विश्वस्तरीय विधि शिक्षा हमारे समाज और देश की प्राथमिकताओं में से एक है।

राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में कक्षा 12 के बाद ही हमारे किशोर और युवा दाखिला लेते हैं जैसा कि इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों में पहले से ही होता रहा है। ऐसे बच्चे स्कूल स्तर पर ही कानून के क्षेत्र को अपनाcareerबनाने में उत्साहित होते हैं। ऐसे उत्साही विद्यार्थियों ने विधि जगत में अपनी अच्छी साख बनाई है। परंतु यह आवश्यक है कि विधि शिक्षण के सभी संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ज़ोर दिया जाए।

किसी भी संस्थान के लिए आरंभ में ही सभी पद्धतियों को सुविचारित रूप से स्थापित करना अपेक्षाकृत सरल होता है। व्यवस्था के निर्मित हो जाने के बाद उसमें सुधार करने की प्रक्रिया जटिल होती जाती है। इसलिए मैं यह चाहूंगा कि इस विधि विश्वविद्यालय में आरंभ से ही विश्व के सर्वश्रेष्ठ विधि विश्वविद्यालयों की पद्धतियों और प्रणालियों का अध्ययन करके श्रेष्ठतम व्यवस्थाओं को अपनाया जाए। इस विश्वविद्यालय में शुरू से ही छात्राओं और शिक्षिकाओं के समान प्रतिनिधित्व पर ज़ोर दिया जाना चाहिए।

आधुनिक सुविधाओं के निर्माण, विद्यार्थियों के चयन, अध्यापकों की नियुक्ति, पाठ्यक्रम के निर्धारण, पेडागॉजी की शैलियों के चयन आदि सभी आयामों में विश्व की श्रेष्ठतम पद्धतियों को कार्यान्वित करके एक विश्व-स्तरीय संस्थान का निर्माण करना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

कानून को सामाजिक और आर्थिक प्रगति व बदलाव के माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए। मेरी शुभकामना है कि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज, योजनानुसार स्थापित तथा विकसित हो तथा यहां के विद्यार्थी न्यायपूर्ण सामाजिक व आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।

इन प्रकल्पों का शुभारंभ आज एक ऐसे विशेष दिवस पर हो रहा है जिसके विषय में हर भारतवासी को गर्व होना चाहिए। आज ही के दिन, 128 वर्ष पहलेशिकागो में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म महासभा में अपने ऐतिहासिक सम्बोधन द्वारा भारत के गौरव का उद्घोष किया था। उस समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद अपने चरम उत्कर्ष पर था। लेकिन स्वामी जी के सम्बोधन से पूरा विश्व समुदाय भारत की आध्यात्मिक शक्ति के प्रति सम्मान से भर उठा। स्वामी जी ने हर प्रकार की धर्मांधता और उत्पीड़न के समापन की आशा व्यक्त करते हुए ,भारत की न्याय व समानता पर आधारित संस्कृति तथा सहिष्णुता का संदेश पूरी मानवता तक पहुंचाया था। यदि विश्व-समुदाय ने वर्ष 1893 में स्वामी विवेकानंद केनाइन-इलेवन के सहिष्णुता के संदेश को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया होता तो शायद अमेरिका में वर्ष 2001 केनाइन-इलेवनका मानवता-विरोधी भीषण अपराध न हुआ होता। आत्म-विश्वास, आत्म-गौरव और देशाभिमान का जो आदर्श स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर , 1893 को विश्व समुदाय के सम्मुख प्रस्तुत किया था उसी पर चलते हुए हमारी युवा पीढ़ी भारत को 21वीं सदी के विश्व में शीर्षस्थ स्थान दिलाएगी , यह मेरा दृढ़ विश्वास है। इस उद्देश्य की प्राप्ति में भारतीय न्याय-पालिका को भी अपनी महती भूमिका रेखांकित करनी होगी।

मैं एक बार पुनः इलाहाबाद हाई कोर्ट के बार व बेंच के सभी सदस्यों को बधाई व शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!