Back

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन

अमरकंटक : 11.11.2017

Download PDF

1. आज सुबह नर्मदा मंदिर के दर्शन के पश्चात इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के दूसरे दीक्षांत समारोह में उपस्थितहोकर मेरी खुशी दुगुनी हो गयी है। दीक्षांत समारोह के इस शुभ अवसर पर यहाँ उपस्थित सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों को मैं बधाई देता हूं।

2. अमरकंटक तीर्थ एवं नर्मदा नदी दोनों की निकटता इस विश्वविद्यालय के सुंदर वातावरण को पवित्र बनाते हैं। यहां के वातावरण में एक दिव्य अनुभूति है,यहां ज्ञान हैऔर शांति है। इस क्षेत्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं आध्यात्मिकता दोनों का सामंजस्य यहां के जनजातीय विकास की कहानी प्रस्तुत करते हैं।

3. ऐसा माना जाता है कि इसी स्थल पर सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी व संत कबीर के बीच आध्यात्मिक चर्चा हुई जो बाद में बानी के रूप में गुरुग्रंथ साहिब का हिस्सा भी बनी। ऐसीज्ञानस्थली पर आज का यह दीक्षांत समारोह एक विशेष महत्व रखता है। यह स्थल संपूर्ण मानव जगत के लिए ज्ञान, सच्चाई व मानवता का संदेश देता है।

4. लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक जनजातीय जनसंख्या वाले मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना होना निश्चय ही उपयोगी है। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक जनजातीय युवाओं को ज्ञान-विज्ञान, टेक्नोलोजी और कला-साहित्य के माध्यम से शिक्षा जगत में उत्कृष्ट अवसर देकर उन्हें आधुनिक भारत के निर्माण में सहभागी बनाना है।

5. इस विश्वविद्यालय की स्थापना को 10 वर्ष पूरे हो रहे हैं। मैं आप सभी से अपेक्षा करता हूं कि इस विश्वविद्यालय परिसर को भारत की विशिष्ट जनजातीय विविधताओं और उनकी लोक कला, संगीत, नृत्य, साहित्य और परंपराओं के संरक्षण-संवर्धन का केंद्र बनाने में सहयोग दें। यहां से सामाजिक चेतना एवं राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य को लेकर चलने वाली युवा पीढ़ी तैयार हो।

6. किसी भी शिक्षण संस्थान की आधारशिला उसके शिक्षक और छात्र होते हैं। भारत उस महान परंपरा का साक्षी है जहां चाणक्य जैसे शिक्षक ने चंद्रगुप्त जैसे एक शिष्य के माध्यम से भारत के इतिहास का एक महान अध्याय लिखा। आज फिर से हमारी सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक पहचान दिलाने हेतु गुरु और शिष्य के बीच उसी सामंजस्य को आगे बढ़ाना है।

7. किसी विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह सिर्फ उस विश्वविद्यालय के उत्तीर्ण छात्रों के सम्मान का कार्यक्रम नहीं होता, बल्कि एक शिक्षित, अनुशासित और संकल्पित युवाओं का समाज और राष्ट्र निर्माण में समर्पित होने का अवसर होता है।

8. दीक्षांत समारोह शिक्षा का समापन नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भरे जीवन का आरंभ है।आप सभी अपनी प्रतिभा से सफलता की ऐसी छाप छोड़ें, जिससे पूरे राष्ट्र के सामने इस विश्वविद्यालय को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।

9. आज आपको शिक्षा संपन्न करने के बाद उपाधि प्राप्त हुई है। अब आप अपने जीवन के लक्ष्य तय करेंगे। कोई भी लक्ष्य अपने आप में न छोटा होता है न बड़ा, वह केवल एक लक्ष्य होता है। आप जो भी लक्ष्य तय करें, उसे पाने के लिए पूरी एकाग्रता के साथ आगे बढ़ें ।

10. प्यारे विद्यार्थियो, आप जो ज्ञानार्जन कर रहे है, उसमें एकाग्रता की बहुत जरूरत है। अपनी Theory of Relativity के लिए विख्यात, महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्सटीन के बारे में सभी जानते हैं। मैं उनके जीवन का एक प्रसंग सुनाना चाहूंगा। आइन्सटीन एक बार अपने देश में रेल-यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान टिकट चेकर ने जब उनके पास आकर टिकट मांगा, तो वे अपने कोट, पैंट, शर्ट के पॉकेट में ढूंढने लगे।बहुत प्रयास करने के बाद भी जब टिकट नहीं मिला, तो वे काफी चिंतित हो गए।उनकी बेचैनी एक दूसरे पैसेन्जर ने देखी, जो उन्हें पहचानता भी था। उसने टिकट चेकर से कहा "आप इन्हें नहीं पहचानते? ये महान वैज्ञानिक आइन्सटीन महोदय हैं। "टिकट चेकर बड़ा शर्मिन्दा हुआ और उसने आइन्सटीन से कहा -"महोदय, मुझसे गलती हो गई। मेरी गलती है कि मैं आपको नहीं पहचान सका। "आइन्सटीन ने कहा-"अरे भाई, गलती तो मेरी है कि मैं टिकट अपनी जेब में ठीक से संभालकर नहीं रख पाया हूं। लेकिन जानते हो, मेरी परेशानी आपको टिकट नहीं दिखाने से ही हल नहीं होने वाली। मेरी परेशानी है कि मुझे किस स्टेशन पर उतरना है, यह मैं नहीं जानता, क्योंकि टिकट पर ही उस स्टेशन का नाम लिखा था।"

11. आइन्सटीन के जीवन का यह प्रसंग यह बताता है कि किसी भी लक्ष्यको पाने के लिए कितने समर्पण और एकाग्रताकी आवश्यकता होतीहै। आइन्सटीन ट्रेन में बैठे हुए भी अपनी वैज्ञानिक सोच में इतने तल्लीन थे कि किस स्टेशन पर उतरना है, वह याद भी नहीं रख सके। मेरा अनुरोध होगा कि आप जो भी लक्ष्यतय करें,उन्हे हासिल करने केलिए एक तपस्वी की तरह, पूरी एकाग्रता के साथ, समर्पित हो जाएँ।

12. आज आप जहाँ भी पहुंचे हैं उसमे किसी न किसी रूप में समाज ने योगदान दिया है।यह आपका कर्तव्य बनता है कि समाज का आप पर जो ऋण है उसे चुकाएं।

13. प्रिय छात्रों, इतिहास के प्रवाह में वही विचार धारा बच पाती हैजो पूरी मानवता के हित में होती है।आपको मानवता के हित में काम करना है। आप आने वाले समाज के निर्माता हैं।

14.अंत में, मैं इस दीक्षांत समारोह में उपस्थित सभी विद्यार्थियों को बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। जिन विद्यार्थियों ने कठिन परिश्रम करके आज गोल्ड मैडल प्राप्त किया है,उन्हें मैं विशेष तौर पर बधाई देता हूँ।मैंआप सभी से यह अपेक्षा करता हूं कि आप सदैव अपने जीवनकाल में अपने सीखने की जिज्ञासा बनाए रखेंगे और समाज के उत्थान एवंदेश की प्रगति में अपना अहम योगदान देते रहेंगे।

धन्यवाद

जय हिन्द!