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भारत के राष्‍ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्‍द जी का राष्‍ट्र ध्‍वज संस्‍थापना के लोकार्पण के अवसर पर सम्‍बोधन

नई दिल्‍ली : 15.04.2018

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1. इस कार्यक्रम में आकर मुझे बहुत प्रसन्‍नता हुई है। राष्‍ट्र-ध्‍वज की संस्‍थापना अपने आप में बहुत महत्‍वपूर्ण है। किसी भी राष्‍ट्र के लिए उसके तीन प्रतीक-चिह्न बहुत मायने रखते हैं। पहला प्रतीक है - देश का राष्‍ट्रगान, दूसरा - राष्‍ट्र-ध्‍वज, और तीसरा - संविधान। कितना सुखद संयोग है कि आज यहां इन तीनों राष्‍ट्रीय प्रतीकों का संगम हो रहा है। आपने देखा होगा कि कार्यक्रम का प्रारंभ राष्‍ट्रगान से हुआ है। इसके बाद, 102 फुट ऊंचे राष्‍ट्र-ध्‍वज की संस्‍थापना का लोकार्पण करने का सौभाग्‍य मुझे प्राप्‍त हुआ। और, सबसे बढ़कर यह कि आज का कार्यक्रम भारत के संविधान-शिल्‍पी डॉ. बी.आर. आम्‍बेडकर के जन्‍मोत्‍सव के उपलक्ष्‍य में आयोजित किया गया है। ऐसे महत्‍वपूर्ण आयोजन में सक्रिय योगदान देने वाले इस फाउंडेशन से जुड़े सभी लोगों को मैं बधाई देता हूं।

2. एक महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य है कि बाबा साहब ने केवल संविधान की रूप-रेखा ही तैयार नहीं की थी,बल्‍कि राष्‍ट्र-ध्‍वज को अंतिम रूप देने में भी उनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका थी। बाबा साहब को संविधान के एक-एक अक्षर पर अटूट विश्‍वास था। वे यह मानते थे कि सम्‍मानपूर्वक जीवन बिताने के लिए,अपने अधिकार प्राप्‍त करने के लिए जो कुछ भी करना जरूरी है, वे सभी उपाय संविधान में तथा संविधान द्वारा दी गई लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में मौजूद हैं। किसी कार्य या विचार-धारा का विरोध भी संविधान में दायरे में, अपना भला-बुरा समझते हुए, पूरी सावधानी से किया जाना चाहिए। बाबा साहब ने इस क्षेत्र में भी हमें रास्‍ता दिखाया। अपने सार्वजनिक जीवन में अहिंसा के मार्ग पर चलकर उन्‍होंने महिलाओं को सम्पत्ति में बराबरी का हक़ दिलाने के लिए, समाज के कमजोर वर्गों और वंचितों के कल्याण के लिए संघर्ष किया। अपने इन प्रयासों में वे सफल भी रहे।

3. संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में डॉ. आम्‍बेडकर ने जोर देकर कहा था कि संविधान को ठीक से समझने की जरूरत है। उन्‍होंने कहा था कि संविधान के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संविधान के दायरे में रहकर काम करना होगा।‘कानून के शासन’ का पालन करना होगा। संविधान में समाज के वंचित वर्गों की रक्षा करने की व्‍यवस्‍था है लेकिन इसके लिए स्‍वयं संविधान की भी रक्षा की जानी चाहिए।

4. समाज में व्‍याप्‍त पूर्वाग्रहों के कारण बाबा साहब को स्‍वयं अपने जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्‍होंने कभी अपने हृदय में किसी व्‍यक्‍ति या वर्ग के प्रति कटुता और विद्वेष को स्‍थान नहीं दिया। पूर्वाग्रहों को समाप्‍त करने के लिए वे तर्क,संवाद और आग्रह पर बल देने के हिमायती थे। बाबा साहब के मन में हर देशवासी के प्रति अपनत्‍व का भाव था।

धन्‍यवाद,

जय हिन्द!