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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का संत शिरोमणि कबीर प्रकट दिवस के अवसर पर सम्बोधन

फतेहाबाद : 15.07.2018

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1. हरियाणा के इस ऐतिहासिक और समृद्धिशाली क्षेत्र में, यहाँ के मेहनती लोगों के बीच आकर, मुझे बहुत खुशी हो रही है। इस समारोह को, कबीर प्रेमियों का महाकुंभ कहा जा सकता है। इसके आयोजन में योगदान देने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मैं बधाई देता हूँ।

2. भारत सरकार द्वारा, 22 जनवरी 2015 को, "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के देशव्यापी अभियान के रूप में हरियाणा के पानीपत से एक नई सामाजिक क्रान्ति की शुरुआत की गई। अब इस अभियान ने, बेटियों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ, एक निर्णायक जंग का रूप ले लिया है। पिछली जनगणना के आंकड़ों में देखा गया था कि हरियाणा में प्रति एक हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या काफी कम थी। हरियाणा के निवासियों और यहाँ की सरकार के निरंतर प्रयासों के फलस्वरूप लड़कियों का यह अनुपात काफी बढ़ा है। मुझे विश्वास है कि बेटियों के अनुपात में बढ़ोतरी का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।यह हरियाणा सरकार की सराहनीय सफलता है। इस विशेष उपलब्धि के लिए तथा आर्थिक और सामाजिक विकास के अनेक पैमानों पर सफलताओं के लिए मैं राज्य सरकार की सराहना करता हूँ।

3. राज्यपाल प्रोफेसर कप्तान सिंह सोलंकी समाज के उन वर्गों के प्रति बहुत संवेदनशील रहते हैं जिन्हे विशेष सहायता की जरूरत है। वे दिव्यांगों, गरीब मरीजों और आपदा पीड़ितों की सहायता के कार्यों में तत्पर रहते हैं। उनकी योग्यता और प्रशासनिक कुशलता को ध्यान में रखते हुए, उन्हे हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। मेरी ओर से, उनको इस नयी ज़िम्मेदारी के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

4. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हरियाणा में संत और समाज-सुधारक कबीर के प्रकटोत्सव को, हर जिले में मनाया जा रहा है, और जनता को उनकी शिक्षा से अवगत कराया जा रहा है। कबीर साहब की शिक्षा, प्रत्येक व्यक्ति और समाज के लिए, जितनी प्रासंगिक उनके समय में थी, उतनी ही आज भी है, और भविष्य में भी बनी रहेगी।

5. हर व्यक्ति का जन्म किसी न किसी कुल, जाति, क्षेत्र व संप्रदाय से संबन्धित परिवार में होता है। लेकिन हमारे समाज की यह विडम्बना है कि उस व्यक्ति की पहचान उसके कुल, जाति, क्षेत्र व संप्रदाय से की जाती है। सही मायने में व्यक्ति की पहचान उसके गुणों और अवगुणों से होनी चाहिए। जब कोई व्यक्ति अपने गुणों के कारण श्रेष्ठ या महान बन जाता है तब उसे महापुरुष कहते हैं। हमें कबीर का मूल्यांकन भी इसी रूप में करना चाहिए।

6.‘कबीर’ शब्द का अर्थ है महान या विशाल। वे संतों के संत कहे जाते हैं। कबीर साहब की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुरु नानक देव अपने प्रवचनों में उनकी बानी का उल्लेख किया करते थे। पश्चिम में, महाराष्ट्र के संत तुकाराम से लेकर, पूर्वोत्तर में असम के शंकर देव जी तक, अनेक महान संतों ने अपने प्रवचनों में कबीर का बहुत सम्मान के साथ उल्लेख किया है।


7. संत कबीर की महानता का एक बहुत बड़ा पक्ष है, उनकी सरलता। ऐसी सरलता, जो सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंचे हुए ज्ञानी में ही संभव है। पाप और पुण्य तथा सत्य और असत्य के विषय पर बहुत कुछ लिखा-पढ़ा गया है। लेकिन जिस सरलता और प्रभाव के साथ संत कबीर इस विषय को स्पष्ट करते हैं वह दुर्लभ है। अपनी सादा और सटीक शैली में वे कहते हैं:

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप,


जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप।


8. कबीर, एक महान समाज सुधारक भी थे। सामाजिक समता को लेकर संत कबीर की सोच बहुत साफ थी। वे कहते थे:

जात-पांत पूछे नहिं कोई,


हरि को भजे सो हरि का होई।


ऐसे विचारों द्वारा उन्होने बड़े-छोटे, भेद-भाव और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध चेतना जगाई।संत कबीर ने सत्य का मंडन करने के साथ-साथ असत्य का खंडन भी किया है। उन्होने यह खंडन डंके की चोट पर और बड़े ही दो-टूक लहजे में किया है। कुरीतियों, कर्मकांडों और आडंबरों पर प्रहार करते समय उनकी भाषा-शैली में एक विशेष आत्मविश्वास टपकता है। वह एक ऐसे संत का आत्मविश्वास है, जिसकी कथनी और करनी में कोई भेद नहीं होता है।

9. कबीर के वंश के लोग बुनकरों का काम करते थे। उन्होने भी जीविका के लिए यही काम किया। लेकिन एक संत और समाज सुधारक के रूप में उन्होने समाज का ताना-बाना, नए तरीके से बुना। उन्होने अपने समय के रूढ़िग्रस्त समाज को नई राह दिखाई। ऐसा कहा जाता है कि उस समय के समाज में, कमजोर वर्ग के लोगों को, गरीब लोगों को, अपनी पीड़ा को बयान करने का भी हक नहीं था। असमानता के उस माहौल में, संत कबीर ने सच्चाई की ऐसी अलख जगाई कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनकी वाणी को आदर के साथ सुनने लगे और उनके अनुयायी भी बनने लगे। संत कबीर ने, बोलने वालों और सुनने वालों का रिश्ता ही बदल दिया। अब कबीर कहते थे और लोग उन्हे सुनते थे।

10. संत कबीर ने समानता और समरसता का रास्ता दिखाया है। यही चेतना बीसवीं सदी में महात्मा गांधी, बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर, दीन दयाल उपाध्याय और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के विचारों में पाई जाती है।संविधान निर्माता, डॉक्टर आंबेडकर के चिंतन पर, संत कबीर के प्रभाव के परिणाम-स्वरूप हमारा संविधान, न्याय, स्वतन्त्रता और बंधुता के आदर्शों पर आधारित है।

11. समाज के सबसे कमजोर और निरीह आदमी की मदद करना और उसका साथ देना, एक संवेदनशील समाज और सरकार की पहचान है। मुझे प्रसन्नता है कि वर्तमान में हमारी सरकारें, कबीर के आदर्शों को ध्यान में रखते हुए, अपनी योजनाओं का सृजन और उनका कार्यान्वयन कर रही हैं, जिनमे गरीबों के हितों का अधिकतम ध्यान रखा जा रहा है, तथा समाज में असमानता को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रयास में कार्यपालिका और विधायिका दोनों ही सक्रिय रहते हैं।

12. यह खुशी की बात है कि पूरे देश में अब मानसून आ चुका है। हम सभी लोग जानते हैं कि लोकतन्त्र के मंदिरों में-चाहे संसद हो या विधान सभाएं – मानसून सत्र आयोजित किये जाते हैं। कुछ ही दिनों बाद, संसद और कई प्रदेशों की विधान-सभाओं के मॉनसून सत्र शुरू होने वाले हैं। मुझे विश्वास है कि इन सत्रों में, सभी सांसद और विधायक-गण, लोकतन्त्र के मूल मंत्र-चर्चा-परिचर्चा और संवाद-द्वारा जनता के हित को सर्वोपरि रखते हुए निर्णय लेंगे, और जनहित के कार्यों को आगे बढ़ाएँगे।

13. सही मायनों में कबीरपंथ, यानी संत कबीर का रास्ता, अपने आप में पंथ-निरपेक्षता का मार्ग है, जिसके रक्षण के लिए, हम सभी, अपने संविधान द्वारा प्रतिबद्ध हैं। उनका रास्ता सच्चाई और प्रेम का रास्ता है। उनके दिखाए रास्ते को किसी धर्म, पंथ, जाति, क्षेत्र और भाषा से नहीं बांधा जा सकता है। कबीर सभी के हैं। उनकी वाणी में मानवता, समरसता, सरलता, प्रेम, त्याग और न्याय की जो शिक्षा मिलती है, वही हम सब को सही दिशा में ले जाएगी। इससे, समता, बंधुता और न्याय पर आधारित हमारे लोकतन्त्र को और ताकत मिलेगी।

धन्यवाद

जय हिन्द!