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भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद के दीक्षांत समारोह के अवसर पर सम्बोधन

इलाहाबाद : 15.12.2017

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1. त्रिवेणी संगम के तट पर बसे इलाहाबाद शहर में आना और यहां स्थापित मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के दीक्षांत समारोह में उपस्थित होना मेरे लिए खुशी का अवसर है। इलाहाबाद का कुम्भ मेला प्राचीन काल से ही आकर्षण और अध्ययन का विषय रहा है। पिछले सप्ताह UNESCO ने कुम्भ मेला को ‘Intangible Cultural Heritage of Humanity’ के रूप में मान्यता दी है।

अब कुम्भ मेला औपचारिक रूप से पूरे विश्व की सांस्कृतिक धरोहर बन गया है। यह हम सब के लिए गर्व की बात है।

2. दीक्षांत समारोह के इस शुभ अवसर पर मैं, यहां उपस्थित सभी विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों और शिक्षकों को बधाई देता हूं।

3. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सन 2007 से इस संस्थान को ‘Institute of National Importance’ का दर्जा प्राप्त है। यहां से निकले प्रतिभाशाली विद्यार्थी पूरे देश और विश्व में अपना प्रभावशाली योगदान दे रहे हैं। अब इस संस्थान को विश्व के सर्वश्रेष्ठ Technology Institutes की पंक्ति में शामिल कराने का लक्ष्य होना चाहिए।

4. इलाहाबाद, स्वतंत्रता आन्दोलन का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। अनेक अवसरों पर ‘आनन्द भवन’ एवं ‘स्वराज भवन’ से राष्ट्रीय आंदोलन की गतिविधियां संचालित की गई थीं। देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अमर शहीद चन्द्र शेखर आज़ाद ने इस शहर को एक अलग तरह का तीर्थ बना दिया है। आज उन्हे श्रद्धा-सुमन अर्पित करते समय, मेरे हृदय में भारत के उस वीर-सपूत के लिए जो भावना थी उसे व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।

5. इस इलाहाबाद शहर में महान प्रतिभाओं का भी कुम्भ मेला लगता रहा है। एक तरफ प्रेमचन्द, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, ‘फ़िराक़’ गोरखपुरी और हरिवंश राय बच्चन जैसे साहित्यकार यहां से अपनी रचनाओं की धारा बहा रहे थे तो दूसरी ओर मेघनाथ साहा, के. बनर्जी, नील रतन धर, गोरख प्रसाद, हरीश चंद्रा और एस.के. जोशी जैसे वैज्ञानिक और गणितज्ञ यहीं से अपने ज्ञान की रोशनी फैला रहे थे। जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री,आचार्य नरेंद्र देव, राम मनोहर लोहिया, चन्द्र शेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे प्रखर लोगों ने देश के राजनीतिक चिंतन को अपने विचारों से समृद्ध किया। इस शहर के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानियों, विद्वानों, विचारकों, राजनेताओं, साहित्यकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों और प्रशासकों की एक विशाल नामावली है, जिसमे से मैंने कुछ के ही नाम लिए हैं।

6. इस शहर की सबसे प्रमुख पहचान शिक्षा के केंद्र के रूप में रही है। कहा जाता है कि त्रिवेणी संगम पर सरस्वती अदृश्य बहती हैं। ऐसा लगता है कि इस शहर के सम्मानित शिक्षण संस्थानों और विद्वानों के रूप में सरस्वती साकार होकर अपने पूरे प्रवाह के साथ यहां बहती रही हैं। इस प्रवाह को और भी मजबूत बनाना है। शिक्षा के केंद्र के रूप में इलाहाबाद के गौरव को बढ़ाना, इस शहर से लगाव रखने वाले हर व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है।

7. हमारी शिक्षा ही हमारे देश की मजबूत आधारशिला है। सच्ची शिक्षा के द्वारा बौद्धिकता और कुशलता के साथ-साथ, नैतिकता और चरित्र का निर्माण ही हमें समाज और देश के प्रति अपने दायित्वों के लिए जागरूक बनाता है। सही मायने में यही राष्ट्र के निर्माण में शिक्षा का वास्तविक योगदान है।

8. किसी भी शिक्षण-संस्थान की बुनियाद उसके शिक्षक और छात्र होते हैं। मुझे प्राचीन भारत के दो महान शिक्षण-संस्थानों, नालंदा और तक्षशिला की याद आती है जहां अनेक देशों के विद्यार्थी अध्ययन करने आया करते थे। आज तक के महानतम शिक्षकों में से एक, ‘अर्थशास्त्र’ जैसे महान ग्रंथ के प्रणेता, चाणक्य पहले तक्षशिला में विद्यार्थी थे और बाद में वहीं शिक्षक बने। अपने शिष्य चन्द्रगुप्त को साथ लेकर उन्होने विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। ऐसे विशाल साम्राज्य के महामात्य चाणक्य के साथ चीनी यात्री फ़ाहियान की मुलाक़ात के कई विवरण मिलते हैं। चाणक्य की कुटिया में फ़ाहियान बैठे थे। इसी दौरान सम्राट चन्द्रगुप्त उनसे मिलने आए और दोनों के बीच राज-काज की चर्चा शुरू हुई। चाणक्य ने जलते हुए दीपक को बुझाकर एक दूसरा दीपक जलाया। चन्द्रगुप्त के जाने के बाद चाणक्य ने वह दीपक बुझाकर फिर से पहले वाला दीपक जलाया। फ़ाहियान ने कौतूहलवश दो दीपकों का उपयोग करने की वजह पूछी। चाणक्य ने समझाया कि जिस दीपक में राजकोष के पैसे से तेल भरा जाता है उसका उपयोग वे केवल राज-काज के समय करते हैं, बाकी समय वे अपने पैसे से खरीदे हुए तेल वाला दीपक ही जलाते हैं। फ़ाहियान ने कहा कि जिस देश में नैतिकता की जड़ें इतनी मजबूत हैं उसका विश्वगुरु होना स्वाभाविक है। प्राय: महान चरित्रों के बारे में इतिहास, किंवदंती और कल्पना का मिश्रण हो जाता है लेकिन एक सही सार तथ्य का ही लोग विभिन्न तरीके से वर्णन करते हैं। चाणक्य की सादगी, नैतिकता, संकल्प की दृढ़ता और राष्ट्र-प्रेम ने उन्हे एक महान शिक्षक और उससे भी महान अमात्य बनाया। इन आदर्शों को अपनाकर हम सभी अपने-अपने क्षेत्र में बेहतर योगदान दे सकते हैं।

9. आज के समय में मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति भारत-रत्न डॉक्टर ए.पी.जे.अब्दुल कलाम का उदाहरण हर भारतवासी को प्रेरणा देता है। मुझे यह देखकर बहुत खुशी होती है कि आज की युवा पीढ़ी डॉक्टर कलाम को एक icon के रूप में सम्मान देती है। डॉक्टर कलाम एक अत्यंत साधारण परिवार से थे। वे रोज बीस किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। छात्र जीवन के दौरान ही घर के खर्च में हाथ बटाने के लिए उन्होने अखबार बेचने का काम भी किया। लेकिन उन्होने वैज्ञानिक बनने के अपने लक्ष्य को हमेशा सामने रखा और जैसा कि सभी जानते हैं, वे ‘मिसाइल-मैन’ के रूप में विख्यात हुए। मिसाइल टेक्नोलोजी के जानकारों की विकसित देशों में बहुत मांग रहती है। छात्र-जीवन से ही अपनी प्रतिभा के लिए सम्मानित डॉक्टर कलाम किसी भी विकसित देश में एक सुविधापूर्ण और सफल जीवन बिता सकते थे। लेकिन उन्होने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया था।

10. यहां के छात्रों के लिए एक और आदर्श उदाहरण ‘मेट्रो-मैन’ श्रीधरनजी का है। एक युवा इंजीनियर के रूप में ही उन्होने समुद्री तूफान में ध्वस्त हो गए दो किलोमीटर से भी लंबे पुल को बहुत ही कम समय में पूरी तरह से ठीक करके लोगों को आश्चर्य में डाल दिया था।‘कोंकण रेलवे’ के निर्माण को रेलवे इंजीनियरिंग के जनक समझे जाने वाले अंग्रेजों ने भी तकनीकी चुनौतियों की वजह से छोड़ दिया था। श्रीधरन जी ने उसे भी संभव कर दिखाया तथा इनोवेशन की कई मिसालें प्रस्तुत कीं। श्रीधरन जी के नेतृत्व में बनाई गई ‘दिल्ली-मेट्रो’ की सफलता आज पूरी दुनियां के लिए अध्ययन का विषय है। साथ ही, उन्होने metro-experts की एक ऐसी जमात खड़ी कर दी है जिसे पूरी दुनियां में सम्मान के साथ देखा जाता है। आज मेट्रो के निर्माण के लिए पूरी कुशलता देश में ही उपलब्ध है।

11. जब आप ईमानदारी, निष्ठा और प्रामाणिकता के साथ, तथा इस बोध के साथ काम करते हैं कि मेरा यह काम राष्ट्र-हित में है तो सही मायने में आप राष्ट्र-निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं। तकनीकी संस्थानों में मुख्य-पाठ्यक्रम के साथ-साथ non-technical विषयों के अध्ययन का अवसर भी दिया जाता है। तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ नैतिकता का बोध कराया जाना आवश्यक है।

12. अब मैं अपनी योग्यता पर विश्वास रखने और हर परिस्थिति में संघर्ष करते रहने के महत्व को समझाने के लिए इलाहाबाद से जुड़ी एक बहुत ही मशहूर शख्सियत का नाम लेना चाहूंगा। अमिताभ बच्चन एक कंपनी में बहुत अच्छे वेतन पर काम कर रहे थे। लेकिन उन्हे अपनी प्रतिभा का बोध था। वे अपनी प्रतिभा को सामने लाना चाहते थे। उन्होने नौकरी छोड़ दी। और उसके बाद,उनके संघर्ष का एक लंबा सिलसिला शुरू हुआ। उन्होने दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो में अनाउंसर का काम पाने के लिए audition दिया। उन्हे नहीं चुना गया। वे फिल्म उद्योग में काम करने के लिए मुंबई गए। उनकी शुरू की सात फिल्में असफल रहीं। कुछ लोगों ने उनकी असफलता और उनकी असामान्य कद-काठी का उपहास भी किया। लेकिन उन्होने अपनी प्रतिभा पर विश्वास नहीं खोया। उसके बाद उन्होने सफलता की अभूतपूर्व ऊंचाइयां हासिल कीं। बाद में भी उनके जीवन में उतार-चढ़ाव आए। लेकिन अपनी प्रतिभा पर अडिग विश्वास, अनुशासन और कड़ी मेहनत के बल पर उन्होने फिर से सफलता के नए शिखर हासिल किए।

13. आप सभी अपनी प्रतिभा और ज्ञान को सामान्य जीवन के साथ जोड़कर देखेंगे तो एक संतुलित और उपयोगी तरीके से अपना विकास कर सकेंगे तथा समाज को भी अपना योगदान दे सकेंगे। इस संस्थान को भी यहां के परिवेश से जुड़ी समस्याओं के व्यावाहरिक समाधान निकालने चाहिए। ‘नमामि-गंगे’ के राष्ट्रीय अभियान के साथ आप अपने तकनीकी समाधानों और सुझावों के जरिये जुड़ सकते हैं। इसी प्रकार इस इलाके में प्रदूषण की समस्या के और गंभीर होने से पहले ही आप उसका समाधान निकाल सकते हैं। Communication Technology की नवीनतम सुविधाओं को सस्ता और जनसुलभ बनाने के लिए आप इनोवेशन कर सकते हैं। यहां प्रत्येक वर्ष बड़े पैमाने पर माघ मेला आयोजित होता है। अस्थाई तौर पर एक पूरा शहर यहां बसाया जाता है। आपका यह संस्थान, माघ मेले का आयोजन करने में,तकनीकी और व्यावहारिक सहयोग प्रदान करने के इनोवेटिव अवसरों का उपयोग कर सकता है।

14. मुझे खुशी है कि इस संस्थान ने एक Entrepreneurship Cell की स्थापना की है जिसका उद्देश्य Job seekers नहीं अपितु Job creators को प्रोत्साहन करना है।

15. आज आपको औपचारिक शिक्षा की एक सीढ़ी चढ़ने के बाद उपाधि प्राप्त हुई है। अब आप व्यावहारिक जीवन के अपने लक्ष्य तय करेंगे। आप अपने लिए जो भी लक्ष्य निर्धारित करें उसे प्राप्त करने के लिए अपनी पूर्ण एकाग्रता के साथ आगे बढ़ें। स्वयं आगे बढ़ने के साथ-साथ आप समाज के उन लोगों को भी आगे बढ़ाएं जो आपसे पीछे रह गऐ हैं।

16. मैं आज उपाधि प्राप्त करने वाले प्रत्येक विद्यार्थी को हार्दिक बधाई देता हूं। और उन विद्यार्थियों की विशेष सराहना करता हूं जिन्होने अपनी प्रतिभा और निष्ठा के फलस्वरूप आज पदक प्राप्त किए हैं। साथ ही मैं उन शिक्षकों की भी सराहना करता हूं जिनके मार्गदर्शन के बिना आप सबका यहां तक पहुंचना असंभव था। मैं आप सबके उज्ज्वल और मंगलमय भविष्य की कामना करता हूं


धन्यवाद

जय हिन्द!