भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम मेमोरियल व्याख्यान माला में सम्बोधन
नई दिल्ली : 19.07.2022
इसे मैं अपनी ख़ुश-किस्मती समझता हूं कि कलाम साहब जैसी अज़ीम शख्सियत की याद में आयोजित इस जलसे में शिरकत करने का मुझे मौका मिला है। इस लेक्चर सीरीज के जरिए कलाम साहब के आदर्शों को लोगों तक पहुंचाने के लिए मैं, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के प्रेसिडेंट और गवर्निंग काउंसिल को बधाई देता हूं। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई है कि यह सेंटर अपने मैंडेट के मुताबिक कौमी एकता के लिए लगातार काम करता रहा है। नेशनल इंटीग्रेशन के लिए काम कर के आप सब सही मायनों में कलाम साहब जैसे नेशन-बिल्डर की विरासत को मजबूत बना रहे हैं। इस नेक काम के लिए आप सबकी जितनी भी तारीफ की जाए, वह कम है।
मुझे दिसंबर 2017 में, राष्ट्रपति के रूप में, रामेश्वरम जाकर, उनकी आख़री आरामगाह में उन्हें श्रद्धांजलि देना नसीब हुआ था। वहां डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम मेमोरियल परिसर में स्थित उनके म्यूजियम में उनसे जुड़ी यादगार निशानियों का एक ख़ास असर मेरे दिलो दिमाग पर हमेशा के लिए बना रहेगा। मैं जानता हूं कि मेरी ही तरह, हर भारतवासी को देश के उस महान सपूत पर नाज़ है जिसे अपने मुल्क से बेपनाह मोहब्बत थी।
आज के इस जलसे में, कलाम साहब की आत्मकथा ‘Wings of Fire’ की कुछ बातों का जिक्र, हमने ऑडियो के जरिए सुना। हालांकि कलाम साहब ने लिखा था कि उनके बाद उनकी कहानी ख़त्म हो जाएगी, लेकिन सच तो यह है कि उनकी कहानी कभी ख़त्म न होने वाली कहानी है। उनकी अमर-कथा का सिलसिला हमेशा-हमेशा के लिए, भारत की आने वाली पीढ़ियों के दिलो-दिमाग में बना रहेगा। जैसा कि सभी जानते हैं, कलाम साहब को बच्चों से बेहद लगाव था। वे स्कूली बच्चों से खासतौर पर मिला करते थे। उन्हें यकीन था कि आने वाली पीढ़ियां भारत के स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करेंगी। मुझे भी अपने देश की युवा पीढ़ी की काबिलियत और मेहनत पर पूरा भरोसा है। मैं ये भी मानता हूं कि भारत की तरक्की में हमारी बेटियों की अहम भूमिका रहेगी।
राष्ट्रपति होने के नाते मैं अनेक शिक्षण संस्थानों का विजिटर भी हूं। मुझे यह देखने को मिला है कि लगभग सभी हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स में हमारी बेटियां, लड़कों के मुक़ाबले बेहतर प्रदर्शन करती हैं। पिछले महीने, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, जम्मू के कॉन्वोकेशन में मैंने देखा कि सभी गोल्ड मेडल्स बेटियों ने ही जीते। इस साल के सिविल सर्विसेज के इम्तिहान में भी टॉप थ्री पोजीशन्स हमारी बेटियों ने ही हासिल की हैं। हमारी बेटियों के आगे बढ़ते हुए ये कदम आने वाले भारत की सुनहरी तस्वीर पेश करते हैं।
देवियो और सज्जनो,
इस सेंटर के वाइस प्रेसिडेंट जनाब एस. एम. खान ने कलाम साहब के प्रेस सेक्रेटरी के ओहदे की जिम्मेदारी तो बखूबी निभाई ही थी, उन्होंने कलाम साहब पर एक अच्छी किताब भी लिखी है। उस किताब में यह ज़िक्र आता है कि कलाम साहब रोज़‘कुरान’ और‘गीता’ का पाठ करते थे। वे वीणा भी बजाया करते थे। महाभारत के किरदारों में वे विदुर को सबसे अधिक पसंद करते थे क्योंकि विदुर में नाइंसाफी के खिलाफ संजीदगी के साथ आवाज उठाने की हिम्मत और सलाहियत थी। यह कहा जा सकता है कि कलाम साहब इंडो-इस्लामिक कल्चर की एक आदर्श मिसाल थे।
डॉक्टर कलाम संत तिरुवल्लुवर के उपदेशों को अक्सर लोगों के साथ साझा करते थे। अपनी मशहूर किताबIgnited Minds में उन्होंने एक ऐसे ही उपदेश का उल्लेख किया है जिसका तर्जुमा कुछ इस तरह किया जा सकता है:"ज्ञान और विवेक यानी इल्म-ओ-इदराक ऐसे हथियार हैं जो इंसान को बर्बादी से बचाते है। उनकी ताकत से इंसान का अंदरूनी किला इतना मजबूत हो जाता है कि उस पर कोई भी दुश्मन क़ाबिज़ हो ही नहीं सकता।”
देवियो और सज्जनो,
कलाम साहब जितना ज़ोर साइंस पर देते थे, उतनी ही अहमियत वे रूहानियत को भी देते थे। आम लोगों में साइंस के लिए रुझान पैदा करना उनका एक मिशन था। इस मिशन को उन्होंने बाकायदा एक ऑर्गेनाइजेशन के जरिए आगे बढ़ाया। लेकिन यह बात भी गौर-तलब है कि वे सभी धर्मों के संतों और फकीरों से मिलते थे और उन से कुछ-न-कुछ जानने की कोशिश करते थे। उनकी लिखी किताबों में एक छोटी सी किताब है जिसका नाम है, ‘Building a New India’. उस किताब के एक चैप्टर का टाइटल है ‘Learning from Saints and Seers’. उस चैप्टर में उन्होंने संतों और दरवेशों से अपनी मुलाकातों का जिक्र किया है और उनके विचारों को सम्मान के साथ प्रस्तुत किया है। कलाम साहब साइंस और फल सफा तथा डेवलपमेंट और एथिक्स को बराबर की अहमियत देते थे।
कलाम साहब के साथ दो चीजें बड़े सहज तरीके से जुड़ी हुई हैं। और वे दो चीजें हैं: उनकी नेकी और उनकी शोहरत। उनकी नेकी से मुतास्सिर होकर लोगों ने इतना लिखा और कहा है कि अगर उन सबको इकट्ठा किया जाए तो कई वॉल्यूम की एक किताब बन जाएगी।
कलाम साहब ने लिखा है कि मैं देशवासियों से भारत की महानता को समझने और उसे अपनाने की गुजारिश करता हूं। वे कहते थे किसी भी ताकतवर मुल्क में तीन खास बातें होती हैं। पहली बात है कि जो कुछ मुल्क ने हासिल किया है उस पर फख्र करना। दूसरी बात है-भाई-चारा बनाए रखना। और तीसरी बात है-मिलजुल कर काम करने की सलाहियत। वे चाहते थे कि हमारे देशवासी, भारत के महान लोगों की कहानियों को अपनी यादों में ताजा रखें और उनसे नसीहत लें। वे यह भी कहा करते थे कि जो भी मुल्क आगे बढ़े हैं उनमें मिशन की भावना रही है। इसलिए जो भी काम करना हो उसे एक मिशन की तरह पूरा करने का जज्बा होना चाहिए। वे चाहते थे कि हम सब अपने देश के ताने-बाने को मजबूत बनाने के लिए लगातार एकजुट होकर आगे बढ़ते रहें।
वे देश-प्रेम यानि वतन से मोहब्बत को सबसे बढ़कर मानते थे। वे कहा करते थे कि जब ए.आर.रहमान‘वंदे मातरम’ गाते हैं तो उनकी आवाज हर देशवासी की रूह तक पहुंचती है। भारत के हर गांव और शहर को, भारत के हर शहरी को वे खुशहाल और मजबूत देखना चाहते थे और इसके लिए हमेशा कोई न कोई प्रोग्राम या स्कीम बनाते रहते थे तथा उसे अमल में लाने की कोशिश में भी लगे रहते थे।
कलाम साहब चाहते तो‘नासा’ में या दुनिया के किसी भी मुल्क में बहुत बड़े ओहदे पर काम करके ढेर सारी दौलत कमा सकते थे। उनके पास ऐसे ऑफर भी आते थे। लेकिन उन्होंने देश में ही रहकर, साइंस–खासकर डिफेंस, स्पेस साइंस और कम्यूनिकेशन - के क्षेत्र में भारत की सेल्फ़ रिलायंस या खुद-मुख्तारी का रास्ता मजबूत किया। उन्होंने भारत के पश्चिमी और पूर्वी समुद्र के रेतीले तटों पर जो प्रोजेक्ट अंजाम दिये हैं वे हमारी सेल्फ़ रिलायंस का परचम हैं। ओडिशा से लगे समुद्री तट के पास एक द्वीप पर कलाम साहब के मार्गदर्शन में एक अत्याधुनिक मिसाइल टेस्टिंग रेंज विकसित किया गया है। कलाम साहब के सम्मान में, ओडिशा की राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की सहमति से सन 2017 में, उस द्वीप का नाम बदलकर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आइलैंड रखा है। एक बड़ा सादा सा लेकिन मानीखेज शेर है जो मुझे लगता है कि कलाम साहब पर बिलकुल ठीक बैठता है:
वतन की रेत, मुझे एड़ियां रगड़ने दे (Maykindly read twice)
मुझे यकीं है, कि पानी यहीं से निकलेगा।
कुछ लोगों के ज़हन में हजरत इस्माइल और ज़मज़म के मुक़द्दस पानी की तारीख़ भी उभरी होगी। मैं नेकी और रूहानियत से जुड़े सभी मजहबों के ऐसे तमाम वाकयात के अज़ीम किरदारों को सलाम करता हूं।
देवियो और सज्जनो,
कलाम साहब की आत्मकथा ‘विंग्स ऑफ फायर’ हर देशवासी को पढ़नी चाहिए, खासकर नौजवानों को। ये किताब कई भाषाओं में छप चुकी है। मैं यह भी चाहूंगा कि हमारे नौजवान कलाम साहब की अनमोल नसीहतों को अपने जीवन में ढालें। अपने टीचर्स की इज्जत करना और अपने घरवालों से लगाव बनाए रखना, उनकी कहानी में बार-बार ज़ाहिर होता है। उनके साथ काम करने वाला छोटा-बड़ा हर इंसान, उनके साथ लगाव महसूस करता था। जीवन की सादगी और ख़यालात की बुलंदी उनकी पहचान रही है।
देवियो और सज्जनो,
मुझे बताया गया है कि जुलाई 2007 में कलाम साहब ने आपके सेंटर में एक तकरीर की थी। उस साल 1857 की जंग-ए-आज़ादी का 150वां साल बीतने की यादगार में उन्होंने कुछ अहम बातें कही थीं। भारत को एक मजबूत देश बनाने के अपने नजरिए को उन्होंने साझा किया था। उन्होंने इस बात पर खास ज़ोर दिया था कि भारत एक समृद्ध, सेहतमंद, सुरक्षित, शांतिपूर्ण और खुशहाल मुल्क बने जो हमेशा sustainable growth के रास्ते पर चले। आजकल हम भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस उत्सव का एक पहलू स्वाधीनता सेनानियों और आजादी के बाद के भारत के सफर को याद करना भी है। मैं चाहूंगा कि इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर कुछ ऐसे काम करे जिनसे कलाम साहब के और उन वैज्ञानिकों के बारे में जिन्हें खुद कलाम साहब ने ‘five mighty souls’ कहा है, उनके बारे में नयी पीढ़ी में जानकारी बढ़े। कलाम साहब ने जिन महान वैज्ञानिकों का ज़िक्र किया था, उनके नाम हैं प्रोफेसर विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीश धवन, प्रोफेसर ब्रह्म प्रकाश, प्रोफेसर एम.जी.के. मेनन और डॉक्टर राजा रमन्ना। नेशन-बिल्डर्स की कहानियों में हमारे वैज्ञानिकों की कहानियां खासतौर से शामिल की जानी चाहिए। आज से एक हफ्ते बाद यानि 27 जुलाई के दिन हमारे देशवासी कलाम साहब की पुण्य-तिथि के अवसर पर उनका सादर स्मरण करेंगे। 15 अक्तूबर के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है। मैं चाहूंगा कि इस्लामिक सेंटर द्वारा कलाम साहब से जुड़ी इन तारीखों के दिन, हर साल, लोगों में, खासकर नौजवानों में, विज्ञान की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए प्रोग्राम किए जाएं। मेरा विचार है कि ऐसा करके आपका सेंटर कलाम साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करेगा।
कलाम साहब भारत को केवल एक विकसित देश के रूप में ही नहीं बल्कि एक महाशक्ति के रूप में देखना चाहते थे। उन्होंने सन् 2020 तक भारत को एक विकसित देश बनाने काख़ाकापेश किया था। मुझे पूरा यकीन है कि जब हमारी आजादी के 100 साल पूरे होंगे तब हमारी अगली पीढ़ी भारत को एक महाशक्ति के रूप में पूरी दुनिया के सामने स्थापित कर चुकी होगी। 2047 का वो भारत, हमारे महान स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का, और कलाम साहब के सपनों का भारत होगा।
धन्यवाद,
जय हिन्द!