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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का श्री गुरु रविदास विश्व महापीठ राष्ट्रीय अधिवेशन - 2021 में सम्बोधन

नई दिल्ली : 21.02.2021

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इस राष्ट्रीय अधिवेशन में यहां उपस्थित और देश-विदेश में बसे हुए संत रविदास के अनुयायियों तथा सभी देशवासियों को आगामी 27 फरवरी को मनाई जाने वाली श्री गुरु रविदास जयंती की मैं अग्रिम बधाई देता हूं। इस अधिवेशन के आयोजन के लिए ‘श्री गुरु रविदास विश्व महापीठ’ के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को मैं साधुवाद देता हूं कि उन्होंने भारत की राजधानी दिल्ली को इस कार्यक्रम के लिए चुना। मुझे यह जानकारी दी गई है कि इस महापीठ द्वारा श्री गुरु रविदास के सामाजिक समानता व एकता तथा मानव-कल्याण के संदेश को व्यापक स्तर पर प्रसारित करने का प्रयास पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है।

श्री गुरु रविदास जैसे महान संतों का आगमन सदियों में कभी-कभी होता है। उन्होंने केवल अपने समकालीन समाज का ही नहीं बल्कि भावी समाज के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया था। अनेक विद्वानों की मान्यता है कि संत रविदासजी की असाधारण दीर्घायु के कारण तत्कालीन समाज एवं संतों की कई पीढ़ियों को उनका मार्गदर्शन मिलता रहा।

मैं जब गुरु रविदास के जीवन दर्शन, सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों और उनकी प्रासंगिकता पर विचार करता हूं तो मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सामाजिक न्याय, स्वतन्त्रता, समता तथा बंधुता के हमारे संवैधानिक मूल्य भी उनके आदर्शों के अनुरूप ही हैं। हमारे संविधान द्वारा सुनिश्चित – समता का अधिकार, अवसर की समता, अस्पृश्यता का अंत, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता जैसे – मूल अधिकार भी संत रविदास के आदर्श समाज की ओर देशवासियों को आगे ले जा रहे हैं। इसी प्रकार, आधुनिक भारत की शासन व्यवस्था की दिशा बताने वाले हमारे संविधान में उल्लिखित अनेक नीति निर्देशक तत्व भी गुरु रविदास द्वारा सुझाए गए मार्ग का अनुसरण करते हैं। समान न्याय और निशुल्क कानूनी सहायता, काम करने की मानवोचित व्यवस्था, श्रमिकों के लिए निर्वाह व मजदूरी, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा व आर्थिक हितों से संबन्धित नीति निर्देशक तत्वों में भी श्री गुरु रविदास द्वारा प्रसारित आदर्श परिलक्षित होते हैं। हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पी बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने संत रविदास की संत-वाणी में व्यक्त अनेक आदर्शों को संवैधानिक स्वरूप प्रदान किया है। इस प्रकार, संत शिरोमणि रविदास व डॉक्टर आंबेडकर जैसे संतों व महापुरुषों को पाकर आज देश गौरवान्वित हो रहा है।

हम सब जानते हैं कि संत रविदासजी की सबसे प्रमुख शिक्षा यह थी कि हर कोई अच्छा और नेक इंसान बने तथा परिश्रम व ईमानदारी के साथ जीविकोपार्जन करे। अच्छा इंसान वह है जो संवेदनशील है, जो समाज की मानवोचित मर्यादाओं का सम्मान करता है, जो कायदे-कानून और संविधान का पालन करता है।

संत रविदास यह कामना करते थे कि समाज में समता रहे तथा सभी लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों। सबके हृदय को छूने वाले शब्दों में उन्होंने कहा है:

ऐसा चाहूं राज मैं, जहं मिले सबन को अन्न।

छोट बड़ो सब सम बसै, रविदास रहे प्रसन्न।

इस छोटे से पद में उन्होंने जो सारगर्भित उपदेश दिया है उसे यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में, आचरण में उतार लेता है तो मुझे लगता है कि उसको हम सबसे नेक इंसान कह सकते हैं।

इस पद के माध्यम से उनका अभिप्राय यही था : जहां सब का पेट भरा हो, कोई भूखा न हो, जहां पूरी तरह से समानता हो और जहां सभी सुखी हों – ऐसी व्यवस्था में ही रविदास प्रसन्न रहते हैं।

संत रविदास के जीवन और वाणी में ईमानदारी से कमाई गई जीविका का आदर्श भी दिखाई देता है। अध्यात्म और भक्ति के मार्ग पर चलते हुए भी संत रविदास ने श्रम पर बहुत बल दिया था। वे कहते थे:

श्रम कउ ईसर जानि कै, जउ पूजहि दिन रैन।

‘रविदास’ तिन्हहिं संसार मह, सदा मिलहि सुख चैन।।

यानि श्रम को ही ईश्वर जानकर जो लोग दिन-रात श्रम की पूजा करते हैं उन्हें संसार के सभी सुख-चैन प्राप्त होते हैं।

देवियो एवं सज्जनो,

उस समय के अनेक राज परिवार संत रविदास के श्रद्धालु थे। परम सिद्ध की अवस्था प्राप्त कर चुके संत शिरोमणि गुरु रविदास समाज के सभी वर्गों से अगाध श्रद्धा और सम्मान मिलते रहने के बावजूद निरंतर कर्म-रत रहे। ऐसा कहा जा सकता है कि श्रम-साधना उनकी अध्यात्म-साधना का सर्वाधिक महत्वपूर्ण हिस्सा थी, उसकी आधारशिला थी।

देवियो एवं सज्जनो,

संत रविदास की महिमा को अनेक तत्कालीन संतों व महाकवियों ने अपने-अपने शब्दों में व्यक्त किया है। कबीर साहब कहते हैं, "संतन में रविदास संत हैं” अर्थात गुरु रविदास संतों में भी श्रेष्ठ संत हैं। संतों की प्राचीन परंपरा का उल्लेख करते हुए कबीर साहब उन्हें ध्रुव और प्रह्लाद जैसे सर्वश्रेष्ठ भक्तों की श्रेणी में स्थापित करते हैं। गुरु नानक और संत रविदास के सत्संग के अनेक विवरण पाए जाते हैं। श्री गुरुग्रंथ साहिब में संत रविदास के लगभग चालीस पद संकलित हैं। संत रविदास को अपना गुरु मानते हुए मीराबाई कहती थीं: मीरां ने गोविंद मिल्या जी, गुरु मिल्या रैदास। ऐसी मान्यता है कि चित्तौड़ में ‘रविदासजी की छतरी’ तथा ‘रविदासजी के चरण-चिह्न’ का निर्माण मीराबाई के द्वारा कराया गया था। श्रद्धालु जनों के लिए वे तीर्थ स्थान हैं। संत रविदास के जीवन से जुड़ी अनेक कथाएं लोक-परंपरा का हिस्सा बन चुकी हैं और उनसे लोगों में प्रेरणा का संचार होता है। हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने संत रविदास के सम्मान में जो कविता लिखी उसमें वे संत गुरु रविदासजी के चरण छूकर उन्हें नमस्कार करते हैं।‘निराला’ जी की कविता के कुछ अंश इस प्रकार हैं:

ज्ञान के आकार, मुनीश्वर थे परम

धर्म के ध्वज, हुए उनमें अन्यतम .....

कर्म के अभ्यास में, अविरत बहे.....

चरण छूकर कर रहा मैं नमस्कार।

 

महाकवि ‘निराला’ ने संत शिरोमणि रविदास के प्रति पूरे समाज का आदर-भाव अपनी कविता में व्यक्त कर दिया है।

देवियो व सज्जनो,

गुरु रविदास के अनुयायी आज भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हमारे देश के अनेक राज्यों में अलग-अलग नामों से अपनी पहचान‌ बताने वाले संत रविदास के श्रद्धालुओं ने देश-विदेश में मंदिरों, गुरुद्वारों, छतरियों और अन्य सुविधाओं का निर्माण किया है।

मेरा मानना है कि जो‌ मानव-मात्र की समानता और एकता में विश्वास रखता है और जो सभी प्राणियों के प्रति करुणा और सेवा का भाव रखता है, ऐसा प्रत्येक व्यक्ति गुरु रविदास का अनुयायी होता है। मानवता का कल्याण इसी में है कि हम सभी लोग, संत शिरोमणि रविदासजी के बताए मार्ग पर चलते हुए अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को आगे बढ़ाएं।

संत शिरोमणि रविदासजी जैसे महान संत, समान रूप से, आपके हैं, हमारे हैं और पूरी मानवता के भी हैं। उनका जन्म भले ही किसी विशेष समुदाय, संप्रदाय या क्षेत्र में हुआ हो लेकिन संत ऐसी सभी सीमाओं से ऊपर उठ जाते हैं। संत की न कोई जाति होती है, न संप्रदाय होता है और न ही कोई क्षेत्र होता है। पूरी मानवता का कल्याण ही उनका कार्य क्षेत्र होता है। इसीलिए, संत का आचरण सभी प्रकार के भेद-भाव तथा संकीर्णताओं से परे होता है।

संत रविदास ने अपनी करुणा और प्रेम की परिधि से समाज के किसी भी व्यक्ति या वर्ग को बाहर नहीं रखा था। यदि ऐसे संत शिरोमणि रविदास को किसी विशेष समुदाय तक बांध कर रखा जाता है तो, मेरे विचार से, ऐसा करना, उनकी सर्व-समावेशी उदारता के अनुरूप नहीं होगा। इसी प्रकार, डॉक्टर आंबेडकर के संबंध में भी यह कहा जा सकता है कि समाज एवं राष्ट्र-निर्माण के उनके व्यापक प्रयासों के विषय में जन साधारण को भली-भांति अवगत कराने की आवश्यकता है। वास्तविकता यह है कि बाबासाहब आंबेडकर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुत व्यापक और विशाल था। उन्होंने देश के हर नागरिक, उसकी हर समस्या तथा उसके समाधान के लिए अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया था। इस प्रकार, डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर एक सच्चे देशभक्त और आधुनिक भारत के अग्रणी राष्ट्र-निर्माता थे।

इसलिए, सभी देशवासियों के लिए अपनी सोच और दृष्टिकोण में बदलाव लाना आवश्यक है। आज के इस महोत्सव जैसे आयोजनों में समाज के सभी वर्गों की सहभागिता सुनिश्चित करने के प्रयास होने चाहिए। इस दिशा में आप सबको पहल करनी चाहिए। यदि आप सब, सभी समुदायों को शामिल करने का प्रयास करते रहेंगे तो वे लोग, आज नहीं तो कल, आपके साथ जरूर आ जाएंगे और आपका अनुसरण करेंगे। मैं समाज के सभी वर्गों के प्रमुख सदस्यों से यह अपेक्षा करता हूं कि ऐसे सामाजिक कार्यक्रमों में समाज के सभी वर्गों की सहभागिता सुनिश्चित करें। इससे देश में सामाजिक समता और समरसता को बढ़ाने में मदद मिलेगी। और जब सभी वर्गो के लोग ऐसे कार्यकर्मों में एकत्रित होंगे तो हम संत रविदास के उपदेशों का अधिक से अधिक प्रचार कर सकेंगे।

इस महोत्सव में उपस्थित आप सभी लोग जानते हैं कि गुरु रविदासजी ने समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त सुखमय समाज की कल्पना की थी और उसे बे-गमपुरा नाम दिया था। उन्होंने कहा था:

बेगमपुरा सहर को नांउ,

दुखु अंदोहु नहीं तिहि ठांउ।

अर्थात:

बे-गमपुरा उस शहर का नाम है जहां किसी भी तरह के दुख या भय के लिए कोई स्थान नहीं है।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने, संत रविदास के बे-गमपुरा के वर्णन वाले पद को, समाजवाद की प्रस्तावना कहा था। समता पर आधारित बे-गमपुरा एक ऐसा शहर है जहां किसी भी प्रकार का दुख या ग़म नहीं है। श्री गुरु रविदास की परिकल्पना में, ऐसी आदर्श नगरी में कोई खौफ, लाचारी या अभाव नहीं होता है। वहां सर्वदा सबका भला होता है और सही विचारों पर आधारित कानून की हुकूमत चलती है। वहां सभी मनुष्य एक समान हैं। वहां श्रम की प्रधानता होने के कारण हमेशा समृद्धि बनी रहती है। ऐसे नगर की परिकल्पना का समर्थन करने वाले लोगों को ही श्री गुरु रविदास अपना सच्चा साथी मानते थे।

वस्तुतः, संत शिरोमणि रविदास, बे-गमपुरा शहर के रूप में, अपने देश भारत की परिकल्पना की अभिव्यक्ति कर रहे थे। वे समता और न्याय पर आधारित देश के निर्माण के लिए अपने समकालीन समाज को प्रेरित कर रहे थे। आज हम सभी देशवासियों का यह कर्तव्य है कि हम सब ऐसे ही समाज व राष्ट्र के निर्माण हेतु संकल्पबद्ध होकर कार्य करें और संत रविदास के सच्चे साथी कहलाने के योग्य बनें।

संत शिरोमणि रविदासजी की स्मृति को नमन करते हुए, मैं इस अधिवेशन में पधारे आप सभी लोगों को पुनः बधाई देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!