भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द जी का ऋषभदेव पुरम्-मांगीतुंगी में आयोजित विश्व शान्ति अहिंसा सम्मेलन के उदघाटन के अवसर पर संबोधन
नासिक : 22.10.2018
1. शान्ति के माध्यम से अहिंसा और अहिंसा के माध्यम से शान्ति का वातावरण बनाकर, संसार को विवादों और द्वेष से विरत करने की शिक्षा भगवान ऋषभदेव ने दी थी। विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और परम्पराओं के बीच सामंजस्य और मेल-जोल बनाए रखने के लिए उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। जैन परम्परा के अन्य पवित्र स्थानों के साथ-साथ, बिहार के राज्यपाल के रूप में मुझे भगवान महावीर की जन्म–स्थली - कुण्डलग्राम और निर्वाण स्थली - पावापुरी जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। और आज महाराष्ट्र में,भगवान पार्श्वनाथ और भगवान ऋषभदेव की पावन प्रतिमाओं के सानिध्य में आयोजित, विश्व शान्ति अहिंसा सम्मेलन के उद्घाटन के लिए, आपके बीच यहां आकर,मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।
2. महाराष्ट्र की धरती सामाजिक समरसता, अध्यात्म और सद्भावना की धरती रही है। इसी धरती से संत तुकाराम, संत नामदेव, गुरू रामदास, वीर शिवाजी, महात्मा ज्योतिबा फुले और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसी अनेक विभूतियों ने देश को सामाजिक सौहार्द और देश-प्रेम का संदेश दिया।
3. महाराष्ट्र में भी नासिक जिले का विशेष महत्व है। नासिक, प्रत्येक 12 वर्ष पर कुम्भ-स्नान के लिए, श्री त्रयंबकेश्वर महादेव के ज्योतिर्लिंग के लिए और श्री शिरडी धाम के लिए देश और दुनिया में जाना जाता है। यह क्षेत्र धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। नासिक की इसी भूमि पर श्री मांगी-तुंगी का यह परम पावन स्थल है। मैं नासिक और महाराष्ट्र की इस धरती को नमन करता हूं।
4. यह भी एक सुखद संयोग है कि कुछ ही दिन में महाराष्ट्र सरकार अपने कार्य-काल के चार वर्ष पूरे करने जा रही है। जन-सेवा और मानव–कल्याण हेतु किए जा रहे कार्यों के लिए मैं, महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री और प्रदेश के राज्यपाल को इस अवसर पर अग्रिम बधाई देता हूं।
5. मुझे बताया गया है कि संयम और सेवा का मार्ग अपनाकर विश्व कल्याण के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाली विदुषी ज्ञानमती माताजी की संयमावस्था के लगभग 66 वर्ष पूरे हो रहे हैं। मुझे यह जानकर भी हर्ष हुआ है कि वे 84 वर्ष की अवस्था पूरी करने वाली हैं और 2 दिन बाद 24 अक्तूबर को उनका 85वां जन्म दिन मनाया जा रहा है। मैं उन्हें बधाई देता हूं और उनके स्वास्थ्य एवं लम्बी आयु की कामना करता हूं। मैं यह भी बता देना चाहता हूं कि मैं आज आप सब तक पहुंच सका, इसके पीछे ज्ञानमती माताजी की प्रेरक भूमिका और सतत आग्रह रहा है।
6. मानव-कल्याण के लिए प्रवर्तित जैन परम्परा के मूल में‘अहिंसा परमोधर्म:’ का सिद्धान्त प्रतिष्ठित है।‘अहिंसा’ का अर्थ केवल इतना नहीं है कि किसी को मारा न जाए। अहिंसा का अर्थ है- मन, वचन या शरीर से- किसी भी रूप में किसी भी जीवधारी को पीड़ा न पहुँचाना यानि कि हमारे विचार, वाणी और व्यवहार में भी किसी प्रकार की हिंसा के लिए स्थान न हो,बल्कि प्राणीमात्र के प्रति प्रेम, दया, करुणा, सौहार्द और सम्मान का भाव हो। अहिंसा और करुणा साथ-साथ चलते हैं। करुणाभाव के बिना कोई अहिंसा धर्म का पालन नहीं कर सकता।
7. जैन परम्परा के तीन रत्न हैं- सम्यक दर्शन,सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण।पूज्य तीर्थंकरों ने धर्म को पूजा से बाहर निकालकर व्यवहार या आचरण में लाने का मार्ग दिखाया और यह समझाया कि मानव के प्रति करुणावान और संवेदनशील होना ही धर्म है। दुनिया भर में धर्म के नाम पर हो रही हिंसा को दूर करने में ये शिक्षाएं आज, पहले से भी अधिक प्रासंगिक हैं।
8. भारत अनादि काल से शान्ति और अहिंसा का अनुगामी और प्रणेता रहा है। यहां सभी धर्मों में अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और शान्ति की स्थापना के लिए मैत्री, संतुलन और सहिष्णुता का मार्ग सुझाया गया है। हमें यह सिखाया गया है कि पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों के साथ भी हिंसा नहीं करनी है। और यह भी बताया गया है कि नदियों, तालाबों एवं अन्य जल-स्रोतों को गंदा नहीं करना है। भारत में हिंसा के स्थान पर अहिंसा को मानव व्यवहार के केन्द्र में रखा गया है।
9. भगवान महावीर ने अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों के साथ-साथ‘अपरिग्रह’को विशेष महत्व दिया था। ‘अपरिग्रह’ का अर्थ है-जीवन निर्वाह के लिए अति आवश्यक वस्तुओं के अलावा और कुछ ग्रहण न करना। मानव-जाति अपनी निरन्तर बढ़ती जरूरतों के लिए दुनिया प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रही है। संचय की प्रवृत्ति और संसाधनों का निर्मम उपभोग बढ़ता जा रहा है। जिसके कारण प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन हो रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन जैसी अनिष्टकारी स्थितियां पैदा हो रही हैं। इनसे बचने के लिए केवल मनुष्यों और प्राणियों के साथ ही नहीं बल्कि प्रकृति के साथ भी सम्यक व्यवहार करना होगा, ये सीख भी हमें जैन परम्परा से मिलती है। आज विश्व शान्ति को केवल राजनीतिक ही नहीं अपितु प्राकृतिक कारणों से भी खतरा पैदा हो रहा है। अहिंसा एवं करुणा की भूमिका, इन खतरों को दूर करने में निस्संदेह महत्वपूर्ण है।
देवियो और सज्जनो,
10. मुझे प्रसन्नता है कि भारत सरकार ने इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं। बेघरों को घर, निर्धनों को शौचालय और बैंकिंग की सुविधा, ग़रीब महिलाओं को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन और 10 करोड़ ग़रीब परिवारों को 5 लाख रुपए तक के इलाज़ की सुविधा जैसे सभी कार्य– मानवीय करुणा से प्रेरित कार्य हैं। नदियों को प्रदूषण-मुक्त करने के लिए‘नमामि गंगे’,वायु-प्रदूषण कम करने के लिए 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य, रेल-लाइनों के विद्युतीकरण और मेट्रो नेटवर्क के विस्तार के पीछे भी प्रकृति एवं पर्यावरण की रक्षा का ध्येय ही प्रमुख है।
11. महात्मा गांधी भी अहिंसा एवं शान्ति के प्रबल अनुयायी और समर्थक थे। वे मानते थे कि इस पृथ्वी पर लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तो संसाधन उपलब्ध हैं,उनके लालच की पूर्ति के लिए नहीं। इस प्रकार से वे भी ‘अपरिग्रह’में विश्वास करते थे। जैन परम्परा सहित भारत की सनातन परम्परा में भी‘अहिंसा’ केन्द्रीय भाव के रूप में प्रतिष्ठित है। गांधी जी ने अपने राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों के साधन के रूप में इसे अपनाया,और नई परिस्थितियों में ‘अहिंसा’ को नए आयाम प्रदान किए। यह भी सुखद संयोग है कि अहिंसा के ऐसे पुजारी, गांधी जी की 150वीं जयंती मनाने का हम सबको सुअवसर मिला है।
देवियो और सज्जनो,
12. विश्व शान्ति एवं अहिंसा सम्मेलन की आयोजन समिति को और इससे जुड़े सभी लोगों को मैं बधाई देता हूं कि उन्होंने एक ऐसे विषय को इस सम्मेलन के लिए केन्द्र में रखा जो आज की दुनिया के लिए परम आवश्यक है। आप सब के प्रयास सफल हों, विश्व में हिंसा के स्थान पर अहिंसा का और अशान्ति के स्थान पर शान्ति का वातावरण बने, ऐसी मेरी शुभकामना है।