भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का 'मानस हरिजन कथा' के उद्घाटन के अवसर पर सम्बोधन
दिल्ली : 24.09.2019
1. आज हम सब जिस स्थान पर मानस कथा के लिए एकत्र हुए हैं, उसके कण-कण में कस्तूरबा और बापू की स्मृतियां बसी हुई हैं। वे इस आश्रम में कई बार आकर ठहरे। इस आश्रम की स्थापना गांधीजी की प्रेरणा से, उस समय के समाज में प्रचलित ‘अस्पृश्यता’ की कुरीति को मिटाने के उनके आंदोलन के हिस्से के रूप में हुई थी।‘अस्पृश्य’ समझे जाने वाले लोगों को गांधीजी ने ‘हरिजन’ कहा और उनकी सेवा को ईश्वर की सेवा बताया। केवल बताया ही नहीं, करके भी दिखाया। सेवा की इसी भावना से गांधीजी ने 1932 में ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना की थी। इसलिए, समाज के वंचित, पीड़ित और शोषित भाई-बहनों व बच्चों की सेवा में कार्यरत इस संस्था के कार्यक्रम में आकर मैं बहुत प्रसन्न हूं।
2. मुझे बताया गया है कि यह संस्था, ग्रामीण क्षेत्रों के ग़रीब बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशिक्षण के लिए कई प्रकल्प संचालित कर रही है। मेरे एक सुयोग्य पूर्ववर्ती स्वर्गीय श्री के. आर. नारायणन की शिक्षा भी इसी संस्था के केरल स्थित आश्रम में हुई थी। आज मैंने इस आश्रम में शुरू किए गए ‘गांधी इन्टरप्रेटेशन सेंटर’ और ‘हरि कुटीर’ को भी देखा है। पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री श्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने मुझे ‘एथिक्स मैटर्स - दि टाइम इज़ नाउ’ नामक पुस्तक की प्रथम प्रति भी सौंपी है।‘नैतिकता’ पर गांधीजी सदैव बल देते थे। मुझे विश्वास है कि इन प्रकल्पों से हमारी युवा पीढ़ी और भावी पीढ़ियों तक गांधीजी का संदेश पहुंचाने में मदद मिलेगी। दूरगामी प्रभाव वाले इन प्रयासों के लिए मैं संस्था के अध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार सान्याल, उनके सहयोगियों और आप सबको बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।
3. गांधीजी के प्रति अपना गहरा सम्मान और प्रेम व्यक्त करने के लिए लोग उन्हें ‘बापू’ भी कहते थे। यह एक सुखद संयोग है कि उस गांधी बापू की कथा आज हम एक दूसरे बापू की भावपूर्ण वाणी में सुनेंगे। मैं श्री मोरारी बापू को लंबे समय से जानता हूं और मुझे उनके प्रवचनों को सुनने का अवसर मिला है। उनके साथ मेरा व्यक्तिगत संपर्क उस समय हुआ, जब मैं बिहार का राज्यपाल था। मैंने सदैव महसूस किया है कि उनकी ‘रामकथा’ हर बार कुछ नया संदेश देती है। वास्तव में, गांधीजी ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से जो संदेश, जो आदर्श दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किए हैं, वे ‘रामकथा’ की शिक्षाओं और संदेशों के पूरक हैं। समय और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन करते हुए गांधीजी ने ‘राम ’के आदर्शों को ही आगे बढ़ाया।
देवियो और सज्जनो,
4. कहा जाता है कि ‘हरि अनन्त, हरिकथा अनन्ता ’अर्थात् ‘राम’ अनन्त हैं और रामकथा’ भी अनन्त है। रामकथा केवल एक आख्यान नहीं है, वह ‘राम’ के माध्यम से मानव-जीवन के उच्च नैतिक आदर्शों को, मर्यादाओं को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने का माध्यम भी है। एकपुत्र, शिष्य, भाई, मित्र और राजा के रूप में आदर्श जीवन, मर्यादापूर्ण जीवन कैसे जिया जाए, इसके उदाहरण के रूप में‘ राम’ का जीवन प्रस्तुत किया गया है। इन मर्यादाओं को निभाने के कारण ही राम ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहलाए। गांधीजी का जीवन भी एक आदर्श जीवन का उदाहरण है।
5. गांधीजी के मन में रामनाम के प्रति श्रद्धा के बीज बोने वाली उनकी दाई रम्भा थी। इसका उल्लेख गांधीजी ने खुद अपनी अपनी ‘आत्मकथा’ में किया है। आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक तीनों तरह की कठिनाइयों में रामनाम मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा बनता है, ऐसी श्रद्धा गांधीजी ने अपने लेखों में प्रकट की है।
6. गांधीजी रामनाम को जीवन का आधार और आत्मा का संबल मानते थे। और, यह भी मानते थे कि केवल राम का नाम लेना ही पर्याप्त नहीं है। नाम जपने के साथ-साथ परिश्रम भी जरूरी है। गांधीजी कहते हैं कि –‘मनुष्य के विकास के लिए परिश्रम करना अनिवार्य है। फल का विचार किये बिना परिश्रम करना जरूरी है। रामनाम या वैसा ही कोई पवित्र नाम जरूरी है- महज लेने के लिए ही नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि के लिए, प्रयत्नों को सहारा पहुंचाने के लिए और ईश्वर से सीधे-सीधे रहनुमायी पाने के लिए। इसलिए राम नाम का उच्चारण कभी परिश्रम के बदले काम नहीं दे सकता। वह तो परिश्रम को अधिक बलवान बनाने और उसे उचित मार्ग पर ले चलने के लिए है।’
देवियो और सज्जनो,
7. मुझे बताया गया है कि यह कथा गांधीजी की जयन्ती के दिन अर्थात् 02 अक्तूबर को पूरी होगी। उसी दिन हम सभी भारतवासी एक महत्वपूर्ण संकल्प पूरा करने जा रहे हैं। यह संकल्प है - स्वच्छ भारत मिशन का। देश की जनता ने लगभग पांच वर्ष पहले गांधीजी की जयन्ती के दिन यह प्रण किया था कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर, 2019 तक, भारत को स्वच्छ बनाने का अपना अभियान मिल-जुलकर पूरा करेंगे। स्वच्छ भारत मिशन में युवाओं ने, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। स्वच्छता के मिशन में उत्कृष्ट योगदान करने वाले ऐसे ही कुछ व्यक्तियों और संगठनों को इसी महीने की 6 तारीख को दिल्ली के विज्ञान भवन में सम्मानित करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ था।
8. गांधीजी के अनुसार स्वच्छता का योगदान स्त्री-पुरुष समानता और मानव गरिमा की रक्षा में भी है। उन्होंने जीवन-भर स्त्रियों की गरिमा की रक्षा के लिए कार्य किया। निजी जीवन में भी वे हमेशा इसका ध्यान रखते थे। मेरी भी यही मान्यता है कि बेटियों को, महिलाओं को बराबरी का, बल्कि उच्चतर स्थान दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति स्वयं भी ऊंचा उठता है। आज मैंने इस आश्रम में कस्तूरबा की प्रतिमा के दर्शन भी किए हैं। गांधीजी के व्यक्तित्व को संवारने और उनके कार्यों को आगे बढ़ाने में कस्तूरबा का महत्वपूर्ण योगदान था।‘बा और बापू’ पुस्तक की प्रस्तावना में ठीक ही लिखा गया है कि -‘बापू को बापू बनाने में, बा का बहुत बड़ा हाथ था।’ स्वयं बापू ने बा के अवसान के बाद कहा था कि -‘अगर बा का साथ न होता, तो मैं इतना ऊंचा उठ ही नहीं सकता था।’
9. भारत में जन्म लेने से गांधीजी भारत के तो हैं ही, लेकिन आज वे सभी देशों के हैं, पूरी मानवता के हैं। पूरा विश्व उनका स्मरण एक ऐसी ‘महान आत्मा’ के रूप में करता है, जिसने ‘अहिंसा’ और ‘सत्याग्रह’ जैसे जीवन-मूल्यों पर चलकर दिखाया। गांधीजी का जीवन एक महाकाव्य है, एक महागाथा है। दुनिया भर के अनेकों देशों में करोड़ों लोग, यह गाथा सुन रहे हैं और इससे प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं। देश-विदेश में जहां कहीं मैं गया हूं, मैंने जन-साधारण से लेकर राष्ट्र-प्रमुखों तक में गांधीजी के प्रति आदर का भाव देखा है। मुझे विश्वास है कि जिस आदर और सम्मान के साथ आज रामकथा सुनी जाती है उसी भावना के साथ अब से कई सदियों बाद लोग गांधीजी की कथा सुनेंगे और उनकी गाथा से प्रेरणा लेंगे।
10. गांधीजी के संदेश और उनकी कीर्ति सभी के लिए हितकारी हो, कल्याणकारी हो, इसके लिए मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।