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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द का लासित बॅड़फुकन की 400वीं जयंती के अवसर पर संबोधन

गुवाहाटी: 25.02.2022

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आज असम के आप सब भाई-बहनो ने जिस उत्साह और प्रेम से मेरा स्वागत किया है उसने मेरे दिल को छू लिया है। आप सब के स्नेह की स्मृति मेरे हृदय में हमेशा बनी रहेगी। 'अतिथि देवो भव' की भावना तो आप सब के संस्कार में है ही। लेकिन अपनों का स्वागत करना कोई आप से सीखे। मैं भी आप सब की तरह भारत का एक नागरिक हूं। देशवासियों के स्नेह ने मुझे प्रथम नागरिक होने का सौभाग्य प्रदान किया है। लेकिन मैं भी आप सब के अपने उस परिवार का ही एक सदस्य हूं जिसे भारत कहते हैं। इसीलिए आप ने आज जो स्वागत किया है उससे मुझे अपने परिवार के साथ जुड़ने का एहसास हुआ है। ऐसे अनोखे स्वागत के लिए मैं असम के आप सभी भाई- बहनो को हृदय से धन्यवाद देता हूं।

देवियो और सज्जनो,

यह एक ऐतिहासिक संयोग है कि आज भारत के बलिदानी योद्धाओं की स्मृति में दिल्ली में निर्मित राष्ट्रीय समर स्मारक यानि नेशनल वॉर मेमोरियल की तीसरी वर्षगांठ मनायी जा रही है और आज ही हम सब यहां,असम में, भारत माता के वीर सपूत लासित बॅड़फुकन की 400वीं जयंती मनाने के लिए एकत्र हुए हैं। भारतीय इतिहास के महानतम योद्धाओं में से एक,लासित बॅड़फुकन की स्मृति को मैं नमन करता हूं। मैं असम की इस वीर-जननी भूमि का भी वंदन करता हूं जहां इस विख्यात नायक ने जन्म लिया था।

असम के अद्वितीय आकर्षण को व्यक्त करना,भारत-रत्न डॉक्टर भूपेन हजारिका जैसे महान प्रतिभाशाली व्यक्ति द्वारा ही संभव था। असम के बारे में उनकी इस पंक्ति ने मेरे मन पर गहरी छाप छोड़ी है:

गोटेई जिबोन बिसारिलेउ,अलेख दिवख राती,

अख़ॅम् देख़ॅर दरे ने-पाऊं, इमान रखाल माटी।

अर्थात अनगिनत दिन-और-रात लगा कर जीवन भर तलाश करने के बाद भी आपको असम जैसा प्रदेश नहीं मिलेगा और यहां जैसी उपजाऊ माटी नहीं मिलेगी।

आज ही मुझे नीलाचल की पवित्र पहाड़ी पर स्थित कामाख्या आदि शक्ति पीठ में पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मंदिर में,मैंने देशवासियों की प्रगति और कल्याण के लिए, विशेषकर युवा पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रार्थना की।

श्रीमंत शंकरदेव के नाम पर इस परिसर का नामकरण सर्वथा समुचित है और सराहनीय है। श्रीमंत शंकरदेव की भक्ति,कविता और कला की अविरल धारा तथा विलक्षण योद्धा लासित बॅड़फुकन की बहादुरी और बलिदान की प्रेरक विरासत, असम की गौरवशाली परंपरा के दो महान पक्षों को दर्शाते हैं।

गुवाहाटी को ब्रह्मपुत्र का आशीर्वाद प्राप्त है। उस महानद के निकट इस स्थान में,मुझे ब्रह्मपुत्र के लिए वह लोकप्रिय असमिया प्रार्थना याद आ रही है जिसमें कहा गया है:

श्री-लुइत प्रोनाम कोरो एकइ थाइ

अर्थात केवल एक स्थान पर ब्रह्मपुत्र की पूजा करके, आप गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों सहित कई तीर्थ स्थलों की पूजा कर लेते हैं।

असम की यह धरती उन थोड़े से क्षेत्रों में से है जहां मध्यकाल में आक्रमणकारियों के सभी प्रयासों को विफल कर दिया गया था। भारत में अंग्रेजों के आगमन तक, इस भूमि पर केवल स्थानीय राजवंशों का ही शासन रहा। हमारे देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में साम्राज्य के विस्तार की अपनी मंशा को पूरा करने के लिए मुगलों ने बारंबार प्रयास किए। सन्1669 में आलाबोइ के संग्राम में असम के10,000 बहादुर सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। उसके बाद राष्ट्रवाद की भावना और भी बलवती होती गई। युद्ध में जीवित बचे लोगों ने अपनी हार से सबक सीखा और तब तक चैन से नहीं बैठे जब तक उन्होंने,इस वीरभूमि पर फिर से अधिकार नहीं कर लिया।

आलाबोइ के संग्राम के दो वर्ष बाद ही वीरता की प्रतिमूर्ति,लासितबॅड़फुकन ने जवाबी आक्रमण किया। वर्ष1671 में सरायघाट के ऐतिहासिक संग्राम में न केवल औरंगजेब की सेना की पराजय हुई,बल्कि वह पराजय पूर्वोत्‍तर में मुगलों की विस्तारवादी नीतियों के ताबूत पर अंतिम कील साबित हुई। सभी इतिहासकार एकमत से वीर योद्धा लासितबॅड़फुकन की रणनीतियों और अनुकरणीय सैन्य संचालन की प्रशंसा करते हैं। शत्रु सेना की विशाल संख्या से विचलित हुए बिना उस निर्णायक युद्ध में लासितबॅड़फुकन की सेना विजयी हुई। सेना-नायक लासितबॅड़फुकन की अतुलनीय व्‍यूह-रचना और उनके सैनिकों की बहादुरी का परिणाम यह रहा कि भारत का यह हिस्सा कभी भी मुगलों के अधीन नहीं हुआ।

बालक लासित का जन्‍म 24 नवंबर1622 को हुआ था। आगे चलकर वे अहोम साम्राज्य के सेनापति,अर्थात'बॅड़फुकन' के पद तक पहुंचे। उनके लिए देश परिवार से बढ़कर था और देशभक्ति के मार्ग पर चलते हुए वे किसी भी बलिदान से नहीं हिचके।

असम के लोगों के बीच उनकी अनेक गाथाएं प्रचलित हैं। 24 नवंबर के दिन उनकी जयंती, राज्‍य भर में, 'लासित दिवस' के रूप में मनाई जाती है।

देशवासियों के हृदय में लासित एक राष्ट्र-नायक के रूप में विराजमान हैं। वर्ष1999 में, नेशनल डिफेंस एकेडमी,पुणे में ‘लासित बॅड़फुकन स्वर्ण पदक पुरस्कार’ की स्थापना की गई, जो प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ कैडेट को दिया जाता है। उसके बाद,एन.डी.ए. परिसर में उस महान योद्धा की एक प्रतिमा का अनावरण किया गया। सन 2018 में मुझे वीर लासित बॅड़फुकन की प्रतिमा से शोभायमान एन.डी.ए. के परिसर में जाने और पासिंग-आउट-परेड का मुआयना करने का अवसर मिला था। मुझे विश्वास है कि भविष्य में भारत के बहादुर सैनिकों के लिए लासित बॅड़फुकन प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।

देवियो और सज्जनो,

इस समय हम अपनी आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। सरकार ने'आज़ादी का अमृत महोत्सव'के तहत अनेक कार्यक्रम आयोजित किए हैं। देशवासी और विशेष रूप से हमारे युवा,उत्साह के साथ इन कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं। ऐसे आयोजनों से हमें अपने अतीत से जुड़ने और अपने इतिहास से पुनः गुजरने का अवसर प्राप्त होता है। जब हम अपने स्वतंत्रता आंदोलन की ओर देखते हैं,तब हम राष्ट्रपिता महात्‍मा गांधी,बाबासाहेब आम्बेडकर और लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई जैसी अनेक विभूतियों का स्‍मरण करते हैं। तब हमें यह भी पता चलता है कि स्वतंत्रता के लिए हमारा संघर्ष1857 से बहुत पहले से ही चलता रहा है। वस्तुत: सत्रहवीं शताब्दी में ही भारत माता को बंधनमुक्त कराने के लिए युद्ध करने वालों में लासित बॅड़फुकन और छत्रपति शिवाजी जैसे वीर योद्धा थे जो सदा के लिए पूजनीय हैं।

हमारे शूरवीरों और वीरांगनाओं ने तथा उनके आदर्शों ने हमारे वर्तमान को यह स्‍वरूप दिया है। हमें उन भूली-बिसरी विभूतियों की स्‍मृति को ताज़ा करना चाहिए। जहां तक ​​लासित बॅड़फुकन जैसे महान सेना-नायक का प्रश्न है ,तो मुझे लगता है कि उन्हें हमारे देश के हर घर में लोकप्रिय बनाने के लिए और भी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इसलिए, लासित बॅड़फुकन की 400वीं जयंती के इन भव्य समारोहों के आयोजन के लिए, मैं असम के मुख्यमंत्री, श्री हिमंत बिस्व सरमा और उनके सहयोगियों को बधाई देता हूं। इस तरह के आयोजनों के माध्यम से युवा पीढ़ी को अपनी विरासत से जुड़ने और देशभक्ति की भावना को आत्‍मसात करने का अवसर प्राप्‍त होता है। ऐसे महा-नायकों की स्‍मृति में बनाए जाने वाले स्‍मारकों द्वारा हमारे देशवासियों को अतीत से प्रेरणा मिलेगी। इसी भावना के अनुरूप असम सरकार द्वारा आलाबोइ रण-क्षेत्र में एक युद्ध स्‍मारक का निर्माण करने और 05 अगस्‍त के दिन को आलाबोइ संग्राम दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। महान योद्धा लासित बॅड़फुकन की देशभक्ति का उत्‍सव मनाते हुए,हम सब उस शौर्य और पराक्रम का उत्‍सव मना रहे हैं जिसने राष्ट्र-प्रेम की भावना को हमारे हृदय में जीवित रखा है।

देवियो और सज्जनो,

मैं एक बार फिर, महान सेनानायक लासित बॅड़फुकन की स्मृति में इस भव्य समारोह के आयोजन के लिए श्री हिमन्त बिस्व सरमा और उनके सहयोगियों को बधाई देता हूं। साथ ही,मैं आप सबको और असम के सभी लोगों को इस समारोह में उत्साहपूर्वक भाग लेने के लिए बधाई देता हूं। आप सबको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं!

धन्यवाद,

जय हिन्द!